असफलताएं -सफलता का मार्ग
असफलताएं -सफलता का मार्ग
मैं एक रिटायर्ड डॉक्टर हूँ, आज ही मेरे बेटे के अस्पताल का उद्घाटन था। मेरा बेटा बच्चों का स्पेशलिस्ट है। उस की पत्नी एक गाइनेकोलॉजिस्ट है, उनका एक बेटा भी है जो पांच साल का है।
आज सुबह से हॉस्पिटल में बहुत चहल पहल थी, दिन भर मिलने जुलने वालों की भीड़ के कारण काफी थकान हो गयी थी। मेरी पत्नी तो थक हार के पहले ही सो गयी, मैं भी बस सोने जा ही रहा था कि इतने में मेरा पोता कमरे में आया और कहानी सुनने की ज़िद करने लगा। असल में कई बार जब रात में मरीज़ों के कारण उसके मम्मी पापा बिजी होते हैं तो वो मेरे पास आ के कहानी सुन के ही सोता है। एक बार तो मैंने उसे मना कर दिया पर जब वो नहीं माना तो मैंने कहा कि चलो आज मैं तुम्हें राजा रानी की कहानी न सुनकर तुम्हारे पापा की कहानी सुनाता हूँ।
राजन (मेरा बेटा ) जब १५ साल का था तो पढ़ाई में बहुत होशयार था। दसवीं क्लास में उसके काफी अच्छे नंबर आये थे और उसने मेडिकल सब्जेक्ट ले लिए। अकादमी भी ज्वाइन कर ली और खूब मेहनत से पढ़ने लगा, हम सब को ये उम्मीद थी के उसका ऍम बी बी एस में सिलेक्शन आराम से हो जायेगा। पर जब रिजल्ट आया तो उसके कुछ नंबर काम रह गए थे, वो बहुत मायूस हुआ, तब मैंने उसे ढाढ़स बंधाया कि कोई बात नहीं हम एक बार और तैयारी करेंगे और अगली बार ज़रूर कामयाब होंगे।
इस बार उसने और जी जान से लग कर तैयारी की पर दूसरी बार भी वो ऍम बी बी एस में सिलेक्शन पाने से चूक गया। दूसरी बार भी ऍम बी बी एस में एडमिशन न मिलने के कारण वो अब काफी डिप्रेस हो गया था, मैंने उसे अपने पास प्यार से बैठाया और पूछा क्या वो तीसरी बार तैयारी करना चाहेगा ? उसने कहा के वो तैयारी करना तो चाहता है पर अगर इस बार भी न हुआ तो क्या होगा।
तब मैंने उसे उस राजा की कहानी सुनाइ जो १३ बार अपने दुश्मन से हारने के बाद एक गुफ़ा में बैठा होता है और लड़ने का सारा होंसला छोड़ चुका होता है। उसे तभी फर्श पे एक मकड़ी दिखती है जो बार बार अपने जाल तक पहुँचने के लिए दीवार पर चढ़ती है और गिर जाती है। पर काफी बार ऐसा करने के बाद वो अपने जाल तक पहुँचने में सफल हो जाती है, राजा उस मकड़ी से सबक ले के अपनी सेना फिर इकठ्ठी करता है और इस बार वो जीत जाता है।
कहानी सुनने के बाद मुझे लगा कि राजेश का मन अब थोड़ा ठीक हो गया है, उसने मज़ाक में मुझसे पूछा के पापा क्या मुझे भी पी ऍम टी १३ बार देना पड़ेगा। मैंने उसे गले से लगा लिया।
इस बार राजेश ने खूब डट कर पढ़ाई की और उसे ऍम बी बी एस में सीट मिल गयी, बाद में उसे ऍम डी में भी अच्छी सीट मिल गयी।
इतने में मैंने देखा कि अंकुर (मेरा पोता )सो रहा था, शायद वो कहानी के बीच में ही कहीं सो गया था। मैं भी राजेश की बचपन की यादों में खोता हुआ कब सो गया पता ही नहीं चला।
