असहमति

असहमति

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“एक रात की ही तो बात है सिम्मी, मेरा प्रमोशन हो जायेगा सिम्मु सिर्फ एक रात...”


”पागल हो तुम, पत्नी हूँ तुम्हारी पति हो तुम या दलाल? सात फेरे अग्नि के लिए तुमने मेरे साथ क्या सोचा था मेरी इज्जत और मेरे सपने पूरे करोगे। नमक-रोटी खा लूंगी पर दूसरे आदमी का स्पर्श छी: घिन आ रही है। राहुल आज महसूस हुआ तुम्हारी भोली सूरत के पीछे एक पापी इंसान छुपा है।”


"सिम्मू मैं आने वाले भविष्य की सोच रहा हूँ।”


"भाड में जाय भविष्य, मेहनत करो।”


"यार मेरे दोस्तों की पत्नियाँ भी सहमति से अपने पतियों का साथ दे रही है, प्रमोशन सैलरी पैकेज लाजवाब!”


"आत्मा मर चुकी है सबकी, रहो आराम से मैं पाँव की जूती नहीं और हां मैं एक बात बता दूं मैं माँ बनने वाली हूँ। आज ही रिपोर्टें आई पर मैं ऐसे इनसान के साथ नहीं रह सकती जो अपनी पत्नी का सौदा करे मैं जा रही हूँ।"


और सिम्मी अटैची लेकर चली गई। राहुल पछता रहा था एक गलती के लिए और सिम्मी की असहमति अनजानी डगर पर।


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