अर्धनारीश्वर तत्व
अर्धनारीश्वर तत्व
विश्व में सभी ज्ञानी जन इस बात को स्वीकार करते हैं ईश्वर तत्व सर्व गुण संपन्न है , इसका अर्थ यह हुआ कि सभी में ईश्वरीय गुण विद्यमान है | यहां संसार में सिर्फ दो ही चेतना तत्व ( मुख्य गुण) मौलिक हैं एक नर और एक मादा इसका अर्थ ये हुआ ये दोनो तत्व ईश्वर में और ईश्वर से ही प्राप्त होने ही चाहिए अगर नारी तत्व नही तो फिर कैसा ईश्वर क्योकि नारी सृजक तत्व है और पुरुष बीज तत्व है . ईश्वर का सबसे महत्वपूर्ण गुण सृष्टि सृजन है सृजन का प्रथम सोपान अंकुरण है अंकुरण अर्थात बीज का चैतन्यीकरण इस अंकुरण के लिए बीज और अंकुरण अनुरुप परिस्थिति दोनों होना आवश्यक है | अर्थात नर तत्व और नारी तत्व दोनों का होना ही जीवन के अंकुरण का उद्भव व परिणाम है
अकेले नर या नारी द्वारा सृष्टि सृजन असंभव है अतः ईश्वर तभी सृष्टिकर्त्ता हो सकता है जब उसमे नर मादा दोनों तत्व समाहित हो। अब जब सर्वमान्य है कि ईश्वर ने ही सृस्टि रचना की है तो अवश्य ही ईश्वर अर्धनारीश्वर हैइसी भाव को चरितार्थ करता है शिव का विश्वविख्यात रुप अर्धनारीईश्वर और थोड़ा कम प्रचलित विष्णु का त्रिपुरसुंदरी मोहिनी रुप।
चूंकि हिन्दू धर्म तार्किक सिधान्तो पर आधारित है इस लिये ब्रम्ह ( शाक्त पंथ में शिव और वैष्णव पंथ में विष्णु) दोनो को पुरुष रूप और नारी दोनों ही रूप में पूजा जाता है शिव तो अर्ध नारीश्वर है हीविष्णु जी भी मोहिनी रूप में पूज्य है विष्णु जी को तो परिपूर्ण नारी विश्वमोहिनी रूप को मातृत्व सुख भी प्राप्त है इसलिये विष्णु को जहां पूर्णपुरुष मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में पूजा जाता है तो वही विष्णु जी को शिवपुत्र की माँ मोहिनी रूप में भी पूजा जाता है! लौकिक विचार करिये की जिसकी छाती पर स्तन नहीं होगा वह माँ बनकर बच्चे को दुग्ध प्राशन की अनुभूति कैसे प्राप्त करेगा और जिसको ममता रस भरा स्तन नहीं होगा वो माँ बनकर जीवन रस कहाँ से पिला पायेगा जो जीवन रसग्रन्थि से वंचित होगा उसमे मातृत्व ममता वात्सल्य पालन पोषण के गुण कहाँ से आएगा।
उसी तरह जो पुरुषत्व से वंचित होगा उसमें पुरूषोचित गुण पालन पोषण सुरक्षा आदि कहाँ से आएगा ,इसी तरह जो माता पिता दोनो के गुणों से परिपक्व नहीं होगा वह कैसा पालक कैसा पालनहार कैसा ईश्वर अतः ईश्वर अर्धनारीश्वर शिव है विश्वमोहिनी विष्णु है!
