अप्रत्यक्ष रुप से

अप्रत्यक्ष रुप से

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"सुनो, गावँ से चाचा जी का फोन आया था, बाबा रात में नहीं रहे।"

"अरे,अचानक, देवर जी को भी खबर करो।"

"हां, रीमा और रति को भी खबर कर देता हूँ।"

दीनबंधु जी के दोने बेटे, और बेटियाँ सपरिवार गाँव पहुँची, अन्तिम यात्रा, दाह संस्कार के बाद तेरहवीं की गई अब सारे रिश्ते दार जाने लगे।

अब घर में बेटे और बेटियों का परिवार ही था। वो भी जाने की तैयारी में था। गाँव का घर चाचा की देख रेख में छोड़ लगभग सबने जाने की तैयारी कर ली।

छोटी बेटी रति ने कहा "मां और बाबू की फोटो अगर साथ में कोई न ले जाय तो मैं ले जाती हूँ।"

"दोनों की फोटो की चार कॉपी बनवा लेते है, सभी के पास मां बाबू की फोटो रहेगी।" रीमा बोली।

"बिल्कुल ठीक, चलिये दीवार से मां की फोटो उतार ले। फिर कॉपी करवा लेते है।" छोटे बेटे ने कहा।

जैसे ही दीवार से मां की फोटो उतारी गई, फोटो के पीछे से बहुत से तह किये कागज गिरे। ये कागज वो पत्र थे जो दीनबंधु जी ने अपनी पत्नी उर्मिला को उसके मृत्यु के बाद लिखे थे।

उर्मिला की मृत्यु के बाद सभी बच्चे, अपने अपने शहर चले गये। उन लोगों ने अपने पिता से ज़िद भी की। अकेले कैसे रहेंगे" हम लोगों के पास थोड़े थोड़े दिन साथ में रहेंगे तो आपका मन लगा रहेगा"। पर दीनबंधु जी ने मना कर दिया। इस घर से जिन्दगी जुड़ी है। तुम्हारी मां की यादें है। नातेदार है। तुम लोग आते रहना।

बच्चो ने फिर ज्यादा ज़िद नहीं।

रति ने एक कागज़ की तह खोली,"अरे ये तो बाबू की लिखावट है।"

पढ़ने लगी

प्रिय उर्मि

आज सुबह से हर बात में तुम्हारी याद आ रही है। अभी तुम्हें गये एक माह ही तो हुआ है। किचन में तुम्हारी चूड़ियो की आवाज आहट देती है। घर में तुम्हारे पल्लू की सरसराहट हवा में घुलती है। लगता अभी उस कमरे से निकल कर आओगी। कैसे अचानक चली गई तुम पर अब भी मेरे पास हो प्रत्यक्ष नहीं अप्रत्यक्ष रुप में।

दूसरा कागज रमा ने खोला।

"उर्मि आज दीनानाथ और उसकी पत्नी खीर बना कर लाये थे। दीनू की पत्नी कह रही थी"जेठ भईय्या,दीदी जैसी खीर तो नहीं बनी पर आज आपका जन्म दिन है।दीदी हर बार आपके लिये खीर बनाती थी"।मैं तो अपना जन्मदिन भूल ही गया था।

दीनू मेरा बहुत ख्याल रखता है। बच्चों के भी फोन आते रहते है और फिर तुम तो में रे साथ हो न अप्रत्यक्ष रुप से।

छोटे ने कागज खोला पढ़ने लगा।

आज हमारी शादी की साल गिरह है। मैंने तुम्हें, तुम्हारी फोटो ही सही माथे पर लाल सिन्दूर लगा दिया है। फूलों की माला तुम पर बहुत सुन्दर लग रही है। मैंने भी नीली शर्ट पहनी है। याद है पिछली शादी की वर्ष गांठ पर मेरे लिये लाई थी।

हाँ हाँ बाज़ार से मिठाई भी मँगवा ली है। यहाँ बच्चो को खिला दूँगा। तुम चिंता न करो। जोर शोर से मनाएंगे ये वर्ष गांठ भी तुम हो न मेरे साथ प्रत्यक्ष रुप से।

बड़े ने कागज की तह खोली।

खुश हो जाओ उर्मि, हमारे बड़े के बेटे ने दसवीं बोर्ड में टॉप किया है। बड़ा कह रहा था मां इसे डॉक्टर बनाने की कहती थी, ये डॉक्टर ही बनेगा। इस बार तुम्हारे चारों बच्चे घर आये थे। कितनी रौनक रही थी। तुम भी तो मुस्कराती रहती थी, फोटो में और मेरे साथ अप्रत्यक्ष रुप से।

एक कागज की तह और खुली।

उर्मि मिठाई खिलाओ, तुम्हारी रति बेटी के दूसरी बिटिया हुई। उसकी सास ने फोन किया बताया"गुड़िया बड़ी सुन्दर है, बिल्कुल अपनी नानी पर गई है"रति भी बोली"बाबू गुड़िया मां जैसी दिखती है" रति मुझे बुला रही थी की गुड़िया को देख आऊं। ऐसा करो तुम हो आओ। देख आओ अपना प्रतिबिंब। थोड़े समय रह लूंगा तुम्हारे बुवा, जल्दी लौट आना।

पत्रों को पढ़ बच्चो की आँखे भीगने लगी।

अगला कागज रति ने उठा लिया।

उर्मि बच्चे बहुत याद आते है। रीमा की तबियत ठीक नहीं है। तुम्हें तो पता है बचपन से ही बहुत नाज़ुक है वो। मन होता है उसे देख आऊं पर यहाँ तुम्हे अकेला कैसे छोड़ दूँ। रीमा के पास तो वहाँ पूरा परिवार है। यहाँ तुम्हारे पास कौन रहेगा। मैं जानता हूँ कितनी डरपोक हो तुम। कॉकरोज को देख चिल्लाने लगती। अरे एक खुशखबरी तो रह गई, तुम्हारे छोटे लाड़ले का प्रमोशन हो गया है। बड़े अफसर हो गये है वो। क्या, हनुमान मन्दिर में लड्डू चढ़ा आऊं। बिल्कुल सरकार, आपका हुक्म सिर माथे पर।

अगला पत्र-

अब जिन्दगी जीने का मन नहीं करता, नहीं नहीं परेशानी क्या कुसुमा खाना बना जाती है, रानी भी घर का काम कर जाती बराबर। दीनू और उसकी पत्नी भी आ जाते है। उर्मि बस मन ऊचाट हो गया। तुम अपने साथ सारी खुशियाँ ही ले गई। तुम कन्हैया की भक्त हो न ? कृष्ण की मीराउनसे प्रार्थना करो,में री तारीख भी तय करा लो। जल्दी ही अपने पास बुला लो। धीरे धीरे इस घर से मोहभंग हो रहा है। कब तक तुम्हारी तस्वीर से बात करुँ बोलो। मैं और उत्तर दोनों मैं ही देता हूँ। अब सहा नहीं जाता। न जाने कितने दिन तुम्हारे इस अप्रत्यक्ष रुप के साथ जीना है। मन बच्चो में भटकता है पर उनके पास न जाऊंगा। अब तक यादों की गठरी पीठ पर ढोयी है। उसे यहीं इस घर में छोड़ कर जाना चाहता हूँ अब तुम्हारे पास आना चाहता हूँ। उर्मि मेरी सिफारिश करो न अपने कन्हैया से।

बच्चो ने सारे पत्र समेट कर वैसे ही तह कर रख दिये। कुछ समय सब चुप रहे। थोड़ी देर बाद बड़े उठे मां की तस्वीर जहाँ दीवार पर लगी थी वापिस लगा दी। तह किये सारे पत्र तस्वीर के पीछे पूर्ववत रख दिये। छोटे ने पिता की तस्वीर भाई को पकड़ाई, बड़े ने उसे ठीक मां के बगल से दीवार में लगा दी।


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