अपराध
अपराध
"कौन है ?"
"मैं हूँ पिताजी, दरवाजा खोलिए।"
"मैं कौन ?"
"अरे मैं, आपका बेटा।"
"मेरा कोई बेटा नहीं, चले जाओ यहॉँ से।" अंदर से नफरत भरी आवाज आयी।
"क्या बात कर रहे हैं पिताजी, दरवाजा खोलिए। अब तो कानून ने भी मुझे बलात्कार के आरोप से बरी कर दिया है।" उसने फिर दरवाजा खटखटाकर कहा।
"कानून ने भले कर दिया हो। लेकिन मैं कानून नहीं बाप हूँ। आखिर मेरे घर भी बेटी है, तुम्हारे अपराध ने पहले ही पूरे परिवार के हाथों पर कालिख पोत दी है।" अंदर से एक पिता की दृढ़ आवाज आई।