अपना
अपना
पता नहीं वो अपना सा क्यों लगता है!
है अंजान,पर उम्मीदों के सागर सा वो लगता है।
कहता अंतरमन कि आज का नहीं यह परिचय,
पीछे कहीं छूटा कोई सपना अधूरा...यूँ लगता है।
मासूम हँसी उसकी, लाती खुशी मुझ तक है,
उसको मालूम, न ख़बर ..न एहसास कोई यह समझता है।
सुकूं का आईना है चेहरा उसका, है तलाश इसकी मुझे भी,
जाने कब वो आए ..इंतज़ार बस उस घड़ी की।
