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Aparajita Mishra

Others

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Aparajita Mishra

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देवी

देवी

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जब देवता राक्षसों का अंत करने में असमर्थ हो गए, तब शक्ति का उद्भव हुआ। देवी जो सभी कलाओं,अस्त्रों और शस्त्रों में निपुण थीं, उन्होनें सृष्टि का उद्धार किया। ईश्वर ने फिर दैविक शक्तियों को आम स्त्री में निहित किया।

"स्त्री" जिसने समय समय पर अपने पराक्रम, कुशलता, साहस, बुद्धि, कर्तव्य, दया, करुणा, ममता और सहनशीलता का परिचय दिया।

इस देश में आज भी 90 फीसदी लोग देवी के विभिन्न रूपों को पूजते हैं। उसके क्रोध से बचने के लिए, उसे प्रसन्न करने के लिए और अपनी सभी मनोकामनाएँ पूरी करने के लिए व्रत, उपवास, पूजा-पाठ, हवन, कन्या भोज का आयोजन करते हैं। पर अफसोस यह है कि मेरे इस सांस्कृतिक विरासत से परिपूर्ण देश में उसी नारी, देवी या स्त्री का हरण करने से हिचकिचाते भी नहीं हैं।

हर स्तर पर स्त्री को कम आँकते हुए उसे हीन दृष्टि से देखते हैं। कमज़ोर ठहराते हैं। अलग-अलग तरीकों से उसे तोड़ने की कोशिश करते हैं।

क्या हो ऐसे समाज और लोगों का अगर वही स्त्री चंडिका का रूप धर विनाश करने निकल पड़े! अगर वही स्त्री ममता, दया, करुणा की चुनरी उतार, अपने त्रिशूल से नरसंहार करने निकल पड़े!

आज विश्व महिला दिवस पर मैं बस इतना ही कहना चाहूँगी कि ऐसा सब कुछ करने की क्षमता एक स्त्री वाकई रखती है अगर माँ दुर्गा की तरह ही वो सभी कलाओं, अस्त्रों और शस्त्रों में खुद को दक्ष बनाए। आधुनिक दुनिया में आधुनिक हथियारों और चातुर्य से अपनी रक्षा स्वयं करे। फ़िर कलयुग का एक भी राक्षस उसकी ओर आँख उठा के देख भी नहीं पाएगा।


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