आपातकाल
आपातकाल
एक जंगल में यह आपातकाल मंत्रणा बैठक है। सभी पशु उपस्थित हैं। पक्षी समुदाय भी इखट्टा है। मंत्रिमंडल में सभी तजुर्बेदार, दक्ष मंत्री एवं अलग-अलग समुदायों के राजा एकत्र हैं। जल्द ही सबसे बुद्धिमान, चतुर, दूरदर्शी एवं बुजुर्ग उल्लू बाबा सबको संबोधित करेंगे। भीड़ में हलचल है। सभी अचंभित और सजक हैं। कुछ कानाफूसी हो रही है। लगता है कोई बड़ी घटना घटी है।
अरे! देखो बाबा आ गए हैं। सब चुप हो जाओ।
बाबा का सम्बोधन शुरू हुआ। “ मेरे प्रिय बंधुओं। आप सब असमंजस में होंगे की आख़िर इस तरह आप सबको मैंने यहाँ एकत्रित होने को क्यूँ कहा! विषय गंभीर होने की वजह से ही मैंने आप सबको कष्ट दिया है। कल शाम सूत्रों से पता चला है कि किसी भयंकर संकट के कारण मनुष्यों नें घर से बाहर निकलना बंद कर दिया है। आवाजाही में काफ़ी कमी देखी गई है। ऐसा लगता है कि सतर्कता के तहत ऐसा किया जा रहा है। शायद किसी जैविक युद्ध से लड़ रहा है मनुष्य। वह अभी डरा हुआ है और अकेला पड़ गया है। इसीलिए मेरी आप सभी को यही राए है कि इस समय का सदुपयोग करें। बेखौफ़, शिकार के डर से मुक्त हो कर आप बाहर विचरण करें। अपनी चहचाहट से मनुष्यों को अपनी उपस्थिति दर्ज कराएं। हमारी परंपरा रही है मनुष्य के जीवन में रस घोलने की। चाहे फ़िर मनुष्य इसकी कद्र न भी करे। रोज़ मर्रा की भाग दौड़ में मनुष्य कहीं खो गया है। प्रकृति से दूर हो चुका है। इस प्रकृति का आनंद उठाने में उनकी सहायता करें। उन्मुक्त भाव से हम सदा अपने हौसलों कि उड़ान उड़ते आए हैं, आइये मनुष्य को भी यह सिखाएँ। अगर कोई अपने विचार सामने रखना चाहता है तो रख सकता है। मैं यह अब आप पर छोड़ता हूँ कि आप क्या करना चाहते हैं। "
यह सब सुनने के बाद श्वान समुदाय के राजा ‘कुमार’ ने कहा, “ यह सूचना तो मुझे भी दी गई कि कल से सड़कों पर भारी वाहनों और बेतरतीब दौड़ती गाड़ियों की आवाजाही बहुत कम हो गई है। इसके कारण किसी भी शिशु या वयस्क की जान नहीं गई है। वरना मनुष्य में इतना सब्र कहाँ कि वह हमें सड़क पार करने या ख़ुद का बचाव करने का मौका दे, वह तो रौंधता हुआ चला जाता है।"
राजा ने आगे कहा, “वह तो हमारे कई भाइयों को राष्ट्रीय उद्यानों की सड़कों पर भी कुचल कर चला जाता है।" सबने इस पर हामी भरते हुए सिर हिलाया।
तभी बूढ़े शेर ने कहा “जंगल की यह खूबसूरत दुनिया मैंने भी देखी है। पर हमेशा मनुष्य ने इसकी सुख शान्ति में ख़लल डाला है। वह जब चाहता है इन जंगलों को काट देता है, हमारा शिकार कभी खाल या कभी दाँत के लिए करता है। हमारी निर्मम हत्या करने वाला यह मनुष्य फ़िर आज अपनी मृत्यु से खौफज़दा क्यूँ है? क्यूँ इतने एहतियात बरत रहा है? उसने हमारे चीते भाइयों को भी पूरी तरह ख़त्म कर दिया है। जब तक मनुष्य ख़ुद इस दर्द से नहीं गुज़रेगा तब तक हमारा दर्द कभी नहीं समझेगा। ” यह बात सुन कर हाथी और गैण्डों की आंखों में आँसू आ गए। और चारों तरफ “हाँ, हाँ“ का सहमति स्वर गूंज उठा।
यह सब सुनने के बाद बुज़ुर्ग उल्लू ने कहना शुरू किया, “मेरे प्रिय साथियों, किसी महापुरुष ने हम सब को सीख दी है कि "क्रूरता का उत्तर, क्रूरता से देने का अर्थ अपने नैतिक व बौद्धिक पतन को स्वीकार करना है। “ उन्होंने यह भी कहा है "आंख के बदले आंख पूरे विश्व को अंधा बना देगी." तो अब आप सब ही बताएँ कि क्या हमें इन नैतिक मूल्यों पर अमल नहीं करना चाहिए!” यह सुन कर सभा में काफ़ी समय के लिए सन्नाटा छा गया।
अंततः यह निर्णय लिया गया कि जिस प्रकार सदियों से सभी प्राणी मनुष्यों के सच्चे मित्र रहे हैं, आज भी उसी भाँति सब उसका साथ देंगे। अपने प्यार और अपनेपन से उसकी चिंताओं और भय को हर लेंगे। उसके अकेलेपन को दूर करेंगे। पर एक वायदा वो भी मनुष्यों से लेना चाहते हैं कि जिस प्रकार आज मनुष्य अपने जीवन को खो
देने के डर से घर तक अपनी सभी सीमाओं को धैर्य से बांध कर बैठा है, उसी प्रकार वह कभी-कभी ऐसा कुछ
वातावरण को सुरक्षित रखने के लिए भी करे। समय-समय पर उसके कम वाहन प्रयोग और औद्योगिक शट-डाउन से वायु प्रदूषण कम होगा। हवा साफ होगी। पानी कम गंदा होगा। शोर कम मचेगा,
और सबके जीवन में चैन लौट आएगा।
