Bhawna Kukreti

Drama

4.9  

Bhawna Kukreti

Drama

अपना ख्याल रखा करो।

अपना ख्याल रखा करो।

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इस नये शहर मे आते ही वो बीमार पड़ गयी। दो दिन से घर मे लेटे-लेटे उसे बोरियत होने लगी थी। नहा-धो कर आज वह एक नये, खुले केफे मे आई थी।कल शाम ही उसने इसके बारे मे सुना था की यहां गरम कॉफ़ी के साथ आप मन पसंद राइटर्स की किताबें पढ सकते हैं।


वो बिल्कूल कोने की टेबल पर बैठी। यहां कोई डिस्ट्र्बंस नही था और पूरे केफे मे नजर जाती थी। उसने कॉफी ऑर्डर की और वाल पर सजी किताबें देखने लगी " मीडियम शिप, दी हैल्प, रोबिन विल्लियम बायोग्राफी" सब उसकी रुचि की किताबें थीं।उसने बायोग्राफी उठायी। 


रोबिन विल्लियम की जुमांज़ी बचपन मे कई बार देखी थी। उसके असमय चले जाने और डिप्रेशन मे होने की बात से वो हैरान रह गई थी कैसे हर वक्त पर्दे पर ,आस-पास, फेल्लो ऐक्टर्स और क्रू मेंबरस के साथ हँसता-हँसाता इन्सान इतना तन्हा हो सकता है!!"


"एक्सक्युज़ मी सर! " वेटर सामने बैठे एक बुजुर्ग आदमी से बोल रहा था। उस आदमी के कान से ईयर प्लग निकला हुआ था।"सर ?" उसने थोड़ा और झुक कर उस आदमी को कहा। आदमी ने उसको देखा और कान में ईयर प्लग सही से लगाया। वो उसके कान की सुनने की मशीन थी। वेटर को उसने ऑर्डर किया और फिर एक छोटी से डायरी नुमा चीज को देखने लगा।


वो रोबिन विल्लियम को पढना चाहती थी मगर उसका मन अब इधर नही था।बार-बार नजर उस बुजुर्ग की ओर जा रही थी। वो इस खाली केफे मे अपनी दुनिया मे खोया दिख रहा था। शायद घर से जल्दी मे निकला होगा, एक पैर मे पेन्ट का कोना मोज़े के अन्दर घुआ हुआ था। एक कॉलर स्वेटर के अन्दर था और चश्मा सर पर चढ़ा था। उसने जेब से एक लेडीज़ रुमाल निकाल कर अपनी आँखों को पोछा । और कुछ देर उस रुमाल को निहारा। फिर एक गहरी साँस भर के फिर उस डायरी जैसी कॉपी के पन्ने पलटने लगा ।कभी चेहरे पे उदासी आती तो कभी मुस्करहट। जाने क्यूँ सहसा उन बुजुर्ग के प्रति बहुत सारा अनुराग उसके मन मे भर आया। स्वत: ही उठ गयी और उसकी ओर बढ़ गई। 


उसकी टेबल पर आकर उसने उन्हे देखा ,वे छोटी सी पुरानी डायरी सी एल्बम थी ।जिसमे किसी सुन्दर सी महिला की ब्लैक ऐंड व्हाईट तस्वीर थी जिसेमे वे खोये हुए थे। बार-बार आँखें मल रहे थे " घर से निकला करें, तों एक बार खुद को आईने मे देखा करें। और ये चश्मा आँखों के लिये है जनाब , सर के लिये नही" उसने उनके सर का चश्मा उनकी आँखों मे उतारा और उनके कॉलर को सही किया और मोज़े से पेन्ट का कोना बाहर निकाल कर कहा "अपना ख्याल रखा करो।" वे मुस्करा कर देखने लगे। " मुझे पता है तुम कौन हो ?" कह कर उन्होने उसे एक भीगी सी मुस्कान दी।उसका दिल एकाएक भर आया और उसने उन्हे गले से लगा लिया। उन्होंने भी अपनी गिली आँखें पोछी।उसकी भी आँखें भर आईं। फिर उस से वहाँ रुका नहीं गया। अपनी टेबल पर पेमेंट रख कर वो निकल गई।


कुछ देर बाद उस बुजुर्ग के पास उसके बेटे बहू और पोते आ गये।आज बुजुर्ग के विवाह की 50 वीं वर्षगांठ थी।उन्होने उन सब को बताया की कैसे एक लड़की के व्यवहार से उनका मन शांत हुआ कि उनकी पत्नी आज भी उनके साथ है। सब भाव विह्वल हो उठे।उसकी पत्नी को गुजरे बस छ: महीने ही हुए थे। उसने उनकी पत्नी के अन्दाज़ मे वो ही सब कहा था जो उनकी पत्नी अक्सर ऑफिस जाने से पहले उन्हे कहा करती थीऔर "अपना ख्याल रखा करो।" ये उनकी पत्नी के आखिरी शब्द थे।


इधर वो अपने रुम मे खिड़की के पास बैठी आसमां को देख रही थी ।वो समझ गयी थी की आज फिर वो मीडियम बनी है। उसकी आँखें आज फिर नम और दिल भरा भरा सा था। उसने पूरी घटना को फिर से याद किया।उसे याद आया की जब वो वाल को देख रही थी तो उसकी नजर" मीडियम शिप और द हैल्प " नाम की किताबों पर पड़ी थी।वो मुस्करा उठी। "ओके,थैंक्स फ़ॉर चूजिंग मी युनिवर्स " वो बुदबुदाई।







मीडियम- आत्मा का किसी को माध्यम बना कर प्रियजन को संदेश देना।


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