अपना अपना नजरिया
अपना अपना नजरिया
एक जंगल में एक बहुत पुराना बरगद का पेड़ था। उसकी घनी छाया में विश्राम करने के ध्यान से एक घुड़सवार वहां रुका। घुड़सवार सेना का कोई सरदार लगता था। घोड़े से उतरते समय ही उसकी निगाह पेड़ की एक शाखा के साथ बंधी एक ढाल पर जा पड़ी, जो कि बहुत ही ख़ूबसूरत दिखाई पड़ती थी। ढाल की खूबसूरती ने सरदार को बहुत प्रभावित किया। उसकी निगाहें ढाल से उठना ही न चाह रही थी।
वह आप ही आप बोल उठा, “वाह , कितनी सुन्दर ढाल है। और रंग भी कितना प्यारा है, खून सा सुर्ख लाल।”
उसी समय विपरीत दिशा से एक अन्य सैनिक सरदार भी वहाँ पहुँचा। जब उसने पहले घुड़सवार को टकटकी लगाये ऊपर की और देखते पाया, तो उसकी निगाहें भी ऊपर की ओर चली गई और जैसा की ढाल की खूबसूरती के कारण होना था वैसा ही हुआ, ढाल की खूबसूरती ने उसे भी बाँध लिया मगर ढाल का रंग लाल नहीं, हरा था। इसीलिए उसने पहले वाले सैनिक सरदार से कहा, “महाशय, ढाल को वाकई बड़ी ही ख़ूबसूरत हैं परन्तु इसका रंग तो हरा है, लाल नहीं जैसा की आप कह रहे हो।”
दूसरे सैनिक सरदार की यह बात सुनकर पहले सरदार ने क्रोधित हो कर कहा, “मैं तुम्हारी तरह बेवकूफ नहीं की हरे और लाल रंग में भी फर्क न कर सकूँ ? ढाल का रंग लाल है, हरा नहीं।”
पहले सरदार को इससे और भी अधिक क्रोध आया और उसने कहा, “यह मुर्ख प्राणी कहाँ से आया है जो हरे रंग को लाल बताकर मुझसे बहस कर रहा है।”
बस इसी बात पर दोनों की अनबन हो गई और दोनों अपनी-अपनी बात पर अड़े रहे। कहासुनी के बाद नौबत लड़ाई तक आ गई। दोनों ने तलवारें खींच ली और एक-दूसरे पर वार करने लगे और संयोग ऐसा हुआ कि एक ही समय दोनों को एक-दूसरे की तलवार लगी और दोनों घायल होकर जमीन पर गिर पड़े। परन्तु गिरने के साथ ही दोनों की स्थिति बदल गई। पहला सरदार वहाँ जा गिरा, जहाँ से खड़े होकर दूसरे सरदार ने ढाल को देखा था और दूसरा सरदार वहाँ पर गिरा, जहाँ शुरु-शुरु में पहला सरदार आकर रुका था।
दोनों ने एक बार फिर नजरें उठा कर ढाल की ओर देखा। और यह क्या, दोनों ढाल के और देखते ही हैरान रह गए, दोनों ही सैनिक अपने स्थान पर सही थे। वास्तव में ढाल एक और से लाल रंग की तथा दूसरी और से हरे रंग की थी। दोनों को अब पश्चाताप हुआ। मगर अब क्या हो सकता था ? देखते ही देखते दोनों के प्राण पखेरू उड़ गए।
सीख- हमें किसी भी चीज को हर नजरिये से देखना चाहिए। सिर्फ एक नजरिया देखकर फैसला नहीं सुनाना चाहिए।