अपना अपना आसमाँ
अपना अपना आसमाँ
आज फिर हमेशा की तरह घर में चहल पहल थी। प्रीति को देखने लड़के वाले आने वाले थे। गंगाधर जी ने प्रीति को बुला कर कहा
“ देख बिटिया, बत्तीस की हो चली है तू, अब ब्याह नहीं करेगी तो कब करेगी ? वो लोग कुछ भी कहें, तू बस रिश्ते के लिये हाँ कर देना “
शाम को सोमेश का परिवार आया, सबने उनकी खूब आवभगत की, परन्तु बात वहीं अटक गई जहाँ पिछले आठ सालों से अटकती रही है।
सोमेश के पिता बोले
“ मेरा बेटा मुम्बई में नौकरी करता है और प्रीति दिल्ली में, अब सोमेश तो इतनी अच्छी नौकरी छोड़ेगा नहीं ऐसे में प्रीति को नौकरी छोड़नी होगी....”
प्रीति ने स्पष्ट शब्दों में उत्तर दिया
“ मेरी सरकारी नौकरी है, पिछले सात सालों से कॉलेज में प्रोफ़ेसर हूँ....मैं अपनी नौकरी नहीं छोड़ सकती”
और वह कमरे से जाने लगी। तभी सोमेश के शब्द उसके कानों में पड़े..
“ पापा, आजकल सभी को अपने अपने सपनों के आसमाँ तलाश करने का हक़ है, मुझे प्रीति पसंद है...उसे नौकरी छोड़ने की कोई आवश्यकता नहीं, मैं अपना स्थानान्तरण दिल्ली करवा लूँगा, मेरी कम्पनी का ऑफ़िस दिल्ली में भी है। “
प्रीति ने मुड़ कर सोमेश को देखा और हौले से मुस्कुरा दी। दोनों के परिवार वाले एक दूसरे को मिठाई खिलाने में व्यस्त हो गये। प्रीति और सोमेश के दिलों में प्रेम का नवांकुर फूट पड़ा था ।