Bhavna Jain

Drama

3.6  

Bhavna Jain

Drama

अफसोस

अफसोस

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दिसंबर का महीना था और गाड़ी की सभी फॉर्मेलिटी पूरी करते- करते दिन ढल गया था। आज अनिल और मीरा ने नई गाड़ी खरीदी थी। कई दिनों से संजोया हुआ एक सपना पूरा हुआ था। दोनो खुश तो थे मगर एक कमी भी महसूस हो रही थी। काश इस खुशी के मौके पर अपने भी साथ होते। मीरा अतीत की यादों में खो गई। तभी अनिल ने हॉर्न बजाकर मीरा का ध्यान भंग किया। चलो आज बाहर ही खाना खाते हैं। तुम भी थक गई होगी अब जाकर बनाओगी भूख भी लग रही है। वैसे भी काफी लेट हो गया है।

ठीक है तो ऐसा करते हैं पूनम भाभी के बच्चों को भी साथ में ले लेते हैं वह काफी दिनों से सेलिब्रेशन की प्रतीक्षा में है। ऐसा कहते हुए मीरा ने पूनम भाभी को फोन मिलाया। पूनम भाभी के फोन उठाते ही मीरा ने अपनी खुशी जाहीर की। भाभी हमने कार ले ली। बाहर खाना खाने जा रहे हैं। सोचा बच्चों को भी साथ में ले लें। पूनम भाभी जो एक सुलझी हुई समझदार महिला थीं बोली, "अरे आप इंजॉय करो ना बच्चों को फिर किसी दिन घुमा लाना"। फिर मीरा के जोर देने पर उन्होंने हां कर दी। दोनों ने घर से बच्चों को लिया और एक रेस्टोरेंट के बाहर गाड़ी रोक दी। खाना खाकर जब मीरा वापस गाड़ी की तरफ आ रही थी तो अनिल ने मीरा को शॉल ओढ़ाया, "कुछ तो ध्यान रखा करो अपना आज वैसे भी बहुत सर्दी है।"

रात के करीब 9:00 बज रहे थे।

प्रिया ने कहा, "अंकल चलो ना पान खाते हैं। " ठीक है आज पान पार्टी भी करतें हैं " कहते हुए अनिल ने गाड़ी निकाली और सब पान वाले की तरफ चल दिए। कुछ ही दूर पहुंचने पर उन्होंने देखा रास्ते पर दो - चार लोग खड़े हुए थे। अनिल ने हॉर्न बजाया तो एक आदमी पास आकर बोला, "भाई साहब आप गाड़ी थोड़ा साइड से निकाल लें। किसी ने एक कुत्ते के बच्चे को अपनी गाड़ी से ठोक दिया है। बेचारा बहुत जख्मी है। यह सुनते ही मीरा गाड़ी से उतर गई और उस बच्चे के पास पहुंच गई। अनिल भी गाड़ी को साइड में पार करके मीरा के पास पहुंच गया।

ओह ! इसकी हालत तो काफी खराब दिख रही है। खून भी वह रहा है। "इसे उड़ाने के लिए किसी के पास कोई कपड़ा है" मीरा ने भरे गले से लोगों से पूछा। तभी पास के बंगले से दो चार लोग और निकल आए और उन्होंने कुछ कपड़े दे दिए। "लेकिन मैं उडाऊंगी नहीं, मुझे बहुत डर लगता है।"

कपड़े देते वक्त उस औरत ने कहा। मीरा ने झट से उनसे वह कपड़े लिए और दो - तीन कपड़ों की तय बनाकर उस पर उस बच्चे को लेटा दिया। और एक कपड़ा उसे ऊपर से उड़ा दिया। "किसी ने हेल्प एन सफरिगं केयर पर फोन किया है क्या", अनिल ने भीड़ में पूछा"। हाँ मैंने किया तो था लेकिन उनकी ऐम्बूलेन्स सर्विस 9 - 9 की होती है तो वह सुबह ही आ पाएंगे " भीड़ में से किसी ने जबाब दिया। रात के लगभग 9:45 बज गए थे। ठंड के कारण सारे क्लीनिक बंद हो गए थे। सिर्फ सफरिंग केयर सेन्टर ही था जहां उसे इलाज मिल सकता था। "मगर रात भर इतनी ठंड में यह मर जाएगा। इस को यहां नहीं छोड़ सकते। मीरा ने आशा भरी निगाहों से अनिल की तरफ देखा।

तभी पीछे से एक युवक की आवाज आई, "मैंने एक डॉक्टर को फोन किया है मगर वह अभी किसी शादी को अटेंड कर रहे हैं तो उन्हें लगभग एक से डेढ़ घंटा लग जाएगा"। अनिल ने कुछ देर सोचा और पास खड़े एक आदमी से पूछा कि सफरिंग केयर सेंटर यहां से कितनी दूर है। "लगभग 12 से 14 किलोमीटर है, परंतु रात का समय है आप क्यों परेशान होते हो " उस आदमी ने अनिल को कहा। आधा घंटा बीत चुका था, मीरा ने उस युवक को एक बार फिर से डॉक्टर को फोन करने को कहा मगर उन्होंने मैसेज किया कि वह नहीं आ पाएंगे। 

हम और देर नहीं कर सकते मीरा खुद से बुदबुदायी और अनिल के पास जाकर बोली, "हमें अभी इसे सफरिंग केयर सेंटर ले जाना होगा "| अनिल ने कुछ सोचा और गाड़ी

में बैठे बच्चों को घर पर फोन करके बताने को कहा कि हम थोड़ा लेट हो जाएंगे। घर वाले चिंता ना करें। मीरा ने उस बच्चे को अपनी गोद में उठाया। उसके पीछे वाले पैर पूरी तरह से जख्मी थे। और उनसे खून भी बह रहा था। मीरा ने अपना रुमाल उसके पैर पर बांध दिया। और वह सेंटर की तरफ चल पड़े गाड़ी में पूरी तरह से शांति थी। बच्चा भी मीरा की गोद में थोड़ी देर सो गया। लेकिन अचानक स्पीड ब्रेकर आने से उसकी नींद उचट गई। और वह करहाने लगा। मीरा उसको बोलने लगी, " तुम चिंता मत करो अभी बस थोड़ी ही देर में हम हॉस्पिटल पहुंच जाएंगे। वहां डॉक्टर तुम्हें देखेगा। दवा देगा और थोड़े दिन में तुम बिल्कुल ठीक हो जाओगे"। वैसे तो सर्दी की रातें बडी सुहानी लगती हैं मगर उस दिन वह मीरा को बहुत परेशान कर रही थी। कोहरे की वजह से रास्ता ढूंढने में भी बहुत परेशानी हो रही थी। 

इस बीच बच्चों के घर से बार - बार फोन आ रहा था। कहां पहुंचे, कितना समय लगेगा, जल्दी करो, बगैरह बगैरह। मगर मीरा का ध्यान उन सब बातों पर नहीं जा रहा था। उसे तो बस जल्द से जल्द उस बच्चे का इलाज करवाना था। थोड़ी ही देर में वह सेंटर पहुंच गए। अनिल उस बच्चे को लेकर डॉक्टर के पास अंदर जाने लगा तभी मीरा बोली, " भी तुम्हारे साथ चलती हूं "। 

 " नहीं तुम बच्चों के साथ रहो। रात काफी हो गई है बच्चे अकेले में डर जाएंगे। अनिल ने मीरा को विश्वास दिलाते हुए कहा वह सब सम्भाल लेगा। क्या वह सही होगा। उसको कितना दर्द हो रहा होगा। इस तरह के कई सवाल मीरा को गाड़ी में बैठे - बैठे परेशान कर रहे थे। वहीं एक उम्मीद भी थी कि कम से कम हम डॉक्टर के पास आ गए। देर सवेर सब ठीक हो ही जाएगा। अगर डॉक्टर बोलेगा तो हम उसे अपने साथ घर ले जाएंगे। कुछ ही दिनों में वो ठीक हो जाएगा। मीरा कई तरह से खुद को ढांढस बधाने का प्रयास कर रही थी। परंतु एक अनजानी सी बेचैनी, एक अंजाना सा डर उसे परेशान कर रहा था। इस बीच उसने कई बार अनिल को फोन कर लिया था। लेकिन अनिल फोन नहीं उठा रहा था। भगवान सब सही करना, उसके दर्द को कम करना। फिर वह भगवान से प्रार्थना करने लगी। तभी थोड़ी देर में अनिल आता दिखा। उसका चेहरा बहुत परेशान दिख रहा था। " क्या हुआ डॉक्टर ने क्या कहा, उसका ट्रीटमेंट शुरू हो गया, तुम्हें इतना समय कैसे लग गया " ऐसे कई सारे सवाल मीरा अनिल से पूछने लगी। लेकिन अनिल बहुत ही खामोश था। 

तभी अचानक फोन बजा। पूनम भाभी का था। वह काफी परेशान हो रही थी। बहुत रात हो गई थी। "चलो घर चल कर बात करते हैं पूनम भाभी भी परेशान हो रही है" अनिल ने यह कहते हुए गाड़ी घर की ओर घुमा दी। लेकिन मीरा से रहा नहीं गया। "अनिल मुझे पहले बताओ क्या हुआ। डॉक्टर ने क्या कहा। " अरे बोला ना घर जाकर बात करते हैं, "अनिल ने भारी आवाज में कहा। नहीं कुछ तो गलत है, प्लीज मुझे बताओ वरना गाड़ी रोको मैं खुद जाकर पूछती हूं। ठीक है रूको मैं बताता हूँ। डॉक्टर ने कहा उसकी हालत बहुत खराब है। उसके पिछले दोनों पैर टूट गए हैं। खून काफी बह गया है और उसकी स्पाइन में गहरी चोट है। जिसके कारण वह अगर बच भी जाएगा तो कभी ठीक से जिंदगी जी नहीं पाएगा। और रगड़ रगड़ कर जिंदगी जीने का क्या फायदा इसलिए,,,,,"इसलिए क्या मीरा ने बहुत डरी हुई आवाज में अनिल से पूछा। इसलिए डॉक्टर ने कहा है कि उसे एक इंजेक्शन लगाएंगे जिससे वह शांति से मर पाएगा। वरना उसकी पूरी जिंदगी तड़प और दर्द में ही निकलेगी। अनिल बोलता जा रहा था। मगर मीरा सुन्न हो गई थी। "तुम सुन रही हो मीरा, हमसे जो हुआ हमने किया", अनिल ने मीरा को झकझोरते हुए कहा। तभी एक चीख उठी, " तुम ऐसा कैसे होने दे सकते हो अनिल, गाड़ी सेंटर की तरफ लो मुझे उनसे बात करनी है। मैं देखभाल करूंगी उसकी जिंदगी भर।

अनिल ने मीरा की हालत देखते हुए कोई बहस नहीं की और गाड़ी सेंटर की ओर घुमा दी। जैसे वह सेंटर पहुंचे मीरा भागती हुई डॉक्टर के पास गई। "डॉक्टर कैसा है वह, आपको कोई भी डिसीजन प्रेशर में लेने की जरूरत नहीं है, आप उसका ट्रीटमेंट करें, मैं करूंगी उसकी देखभाल, आप उसकी चिंता ना करें, कहते - कहते मीरा का गला भर आया। मगर शायद देर हो चुकी थी। डॉक्टर उसे इंजेक्शन दे चुके थे। तभी अनिल भी वहां पहुंच गया। वह मीरा को अपने साथ गाड़ी में लेकर आ गया। और वह घर की तरफ चल पड़े।

गाड़ी में बहुत अफसोस वाली शांति थी। जैसे ही वह घर पहुंचे पूनम भाभी के हस्बैंड पार्किंग में ही मिल गए, " अरे आपको क्या जरूरत थी इतनी रात को वहाँ जाने की। ऐसे एक्सीडेंट तो होते ही रहते हैं। बेवजह बच्चे इतनी देर तक परेशान हो गए। मीरा ने कुछ जवाब नहीं दिया और वह सीधे निकल गई।

क्या सच में हमने जो किया वह गलत था। क्या हमें सच में भरी सर्दी में जख्मी हालत में औरों की तरह उसे वहीं सड़क पर ही छोड़ देना चाहिए था। वहां भी तो उसको मरना ही था। अनिल सोचता हुआ घर की सीढियां चढ़ने लगा।


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