धरोहर
धरोहर
इस बार फसल अच्छी हुई है। सभी गांव वाले पेट भर खाएंगे। ठाकुर साहब ने राहत की सांस ली। "धनिया... फसल को तीन भागों में बांट दो। " जैसा वो हमेशा करते थे। एक भाग अपने परिवार के लिए रखते। दूसरा गांव वालों को बांट देते, और तीसरा गांव में बने मंदिर के लिए जाता था।
गांव में प्रसिद्ध मंदिर था। जो उनके पूर्वजों द्वारा बनवाया गया था। जिसमें दूर-दूर से यात्री दर्शन के लिए आते थे। ठाकुर साहब ही उनके रहने - खाने की व्यवस्था करते थे।
गांव में हर तीज त्यौहार की रौनक देखते ही बनती थी। ठाकुर साहब पूरे गांव की परिवार सी ही देखभाल करते थे। चारों तरफ खुशहाली का वातावरण रहता था। सब कुछ सही चल रहा था। परंतु हाय री किस्मत... अचानक गांव में बारिश होना बंद हो गई। धीरे-धीरे अकाल और भुखमरी की स्थिति हो गई। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए कई लोग शहर चले गए।
"चलो, ठाकुर साहब ! यहां अब कुछ नहीं रखा "
"नहीं भैया, मेरे पूर्वजों की धरोहर है यह मंदिर ! इसे छोड़कर कैसे जायें। यही जन्मे हैं। और मरना है तो यहीं मर जाएंगे।" कहते हुए ठाकुर साहब ने झाड़ू उठाई और मंदिर की सफाई करने लगे।