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Nandini Upadhyay

Inspirational

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Nandini Upadhyay

Inspirational

अंतर्द्वंद

अंतर्द्वंद

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    " मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ "? क्यों ...? "क्यों मुझे ही सहन करना पड़ता है सब "। ऐसा क्यों हो रहा है अब मैं क्या करूंगी कहां जाऊंगी ? तुमने तो कह दिया की चली जा यहाँ से। मगर कहां ? माँ पापा के पास भी नहीं जा सकती। मगर यहाँ रहना मेरे आत्मसम्मान को गवांरा नहीं देगा। फिर क्या करूं? मैं कब से सहन कर रही हूं यह सब। मगर अब तो हद हो गई। हर समय शराब के नशे में मारपीट गाली-गलौज। सब कुछ फिर भी सहन करती थी। आज आशुतोष ने सारे पड़ोसियों के सामने घर से निकाल दिया अब नहीं बर्दाश्त होता। कहने को तो हम हाई सोसाइटी में रहते हैं। मगर तुम्हारी हरकतें तुम्हारी सोसायटी से मेच नही खाती है आशु। सुबह उठकर वह माफी मांगेगा और ऐसे शो करेगा जैसे रात को कुछ हुआ ही न हो, हर बार यही तो होता है, मैं कुछ बताने की कोशिश करूँगी तो ध्यान ही नही देंगा, इतना प्यार जतायेगा, और उसकी फरमाइशें, मैं कुछ बोल ही नही पाती, मगर हर रात को वही सब चालू।

अब मैं थक गई हूं यह सब सहते सहते, अब नहीं सह सकती। अकेली जाऊंगी कहाँ, किसके घर, इस परदेश में कौन है मेरा अपना। यह सब मैं नहीं जानती थी मगर अब निश्चय कर चुकी हूं की मैं उसके साथ नहीं रहूंगी बहुत बेइज्जती सह ली। कभी कभी मुझे यह लगता था कि आशु जो रात को करता था उसे सुबह याद रहता था, मगर बहाने बनाता है की उसे कुछ याद नही। क्योंकि उसके माफी मांगने के बाद उसके होठों की तिरछी हंसी मुझे अंदर तक छिल देती है। क्योकि वह जानता है, वह कुछ भी कर लेगा और मैं उसे माफ कर दूंगी। मगर आज उसने मेरे साथ साथ मेरे परिवार वालों को भी गालियां दी है। 

यही चीज मुझे सहन नहीं हुई।मगर अब करूंगी क्या ? कितनी खुश थी शादी के बाद मगर इस आदमी ने तो मुझे पूरी तरह से तोड़ के रख दिया अब मुझे इसे दिखाना होगा कि मैं भी कुछ कर सकती हूं। इतनी टैलेंटेड होने जे बावजूद शादी के दूसरे दिन से मेरी नौकरी छुड़वा दी। और मैंने भी खुशी खुशी छोड़ दी मगर आज पछतावा होता है, मैं अपने पैरों पर खड़ी होती तो ऐसा बिल्कुल नहीं होता। अगर मेरे पैसे आते तो मुझे दबके नही रहना पड़ता। अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है। मैं अभी भी कर सकती हूं, और जवाब दे सकती हूं। वह खुद भी सोच रहा है कि कल तक सब सही हो जाएगा। मैं वापस आ जाऊंगी, यह सब सहने के लिए।

मगर मैं नहीं आऊंगी। तुम अब अकेले रहना, तन्हा। तुम कितना भी गिड़गिड़ाओगे मैं नही आने वाली तुम्हारी दुनियां में आशु। तो क्या हुआ मैं तुमसे प्यार करती हूं, तो क्या हुआ जो माँ, पापा को नाराज कर मैंने तुमसे शादी करी थी, वह सब मैं भूल जाऊंगी, सब भूल जाऊंगी, इतने मैं किसी के झंझोड़ने की वजह से सिमा उठ जाती है, अरे बीबीजी आप बाहर क्यो सो रही हो साहब कहाँ है, दूधवाला था। "अंदर होंगे", सिमा ने कहाँ, और बाहर की तरफ देखा चहल पहल चालू हो चुकी थी, कोई मॉर्निंग वॉक, कर रहा था तो कोई पेपर पढ़ रहा था। इतने में आशुतोष की आवाज आयी सिमा वहां क्या कर रही हो इधर आओ तब तक वह दूध ले चुका था। सिमा उसके पास आती है और कहती है आशु मैं जा रही हूँ यहाँ से दूर बहुत दूर और एक जोरदार चांटा उसके गाल पर मारती है। सभी लोग देखने लगते है और सिमा घर के अंदर चली जाती है अपना समान पैक करने।

आखिर स्याह रात्रि के बाद, सीमा ने उषा की नई किरणों में कदम रखा।


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