Renu Poddar

Drama Inspirational

5.0  

Renu Poddar

Drama Inspirational

अंतरात्मा

अंतरात्मा

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डरी सहमी अपने कपड़ों को समेटते हुई सी नीरा...मुश्कील से ही उठ पायी । सर में भयंकर दर्द हो रहा था । किसी तरह रसोई में अपने लिए एक कप चाय बनाने गई | सामने वाले फ्लैट से गाने की आवाज़े आ रही थी । रेडियो में नीरा का पसंदीदा गाना बज रहा था..."जब कोई बात बिगड़ जाए, जब कोई मुश्किल पड़ जाए । तुम देना साथ मेरा....पर आज ये गाना सुनते-सुनते उसकी आँखों से झरझर आंसू बह रहे थे। क्या ऐसे ही साथी की उसने कल्पना की थी ? सावंली- सलोनी सी नीरा की शादी को एक साल होने को आया था । कॉलेज के समय में जहाँ उसकी सारी सहेलियां अमीर घराने के हैंडसम लड़के से शादी करने के सपने देखती थी....वहीं नीरा एक ऐसा जीवन साथी चाहती थी जो सीधा-साधा, सुलझा हुआ हो, उन दोनों का अच्छा तालमेल हो, वो दोनों एक-दूसरे की इच्छाओं का सम्मान करें...बस इतने से ही ख्वाब थे नीरा के । 


ज़िन्दगी की राह इतनी कठिन है...इसमें जैसा चाहो वैसा तो बहुत ही कम खुशनसीबों को मिलता है । नीरा के पापा जब वो आठ साल की थी, तभी चल बसे थे । नीरा और उसकी बहन को उसकी माँ ने बहुत मुश्किल से पाल-पोस कर बड़ा किया था । कॉलेज के बाद नीरा नौकरी करना चाहती थी पर तभी उसकी चाची उसके लिए विजय का रिश्ता लेकर आ गयी । विजय खानदानी रईस था । उसकी पहली पत्नी से उसका तलाक हो चुका था । सबको तो यही बताया गया था कि उसकी पत्नी का किसी और से चक्कर चल रहा था । विजय नीरा से उम्र में 15 साल बड़ा था । नीरा इस शादी के लिए बिलकुल तैयार नहीं थी । नीरा ने अपनी माँ को लाख समझाने की कोशिश की कि ऐसे तलाकशुदा व्यक्ति से वो शादी नहीं करना चाहती । "चाहे गरीबी में रह लूंगी पर अपने से उम्र में इतने बड़े व्यक्ति से कैसे शादी करू माँ, समझने की कोशिश करो"। उसकी माँ ने उसे अपनी मज़बूरी का वास्ता देते हुए कहा "इतने अच्छे घर से रिश्ता आया है, मांग कर ले रहे हैं, तुझे । सर-माथे पर रखेंगे...कहीं और तेरी शादी करुँगी तो लम्बी-चौड़ी दहेज़ की रकम कहाँ से लाऊंगी । अभी मुझे तेरी बहन का भविष्य भी बनाना है । मैं अब इतनी बिमार रहने लगी हूँ, मेरी ज़िन्दगी का क्या भरोसा...कल को तेरे साथ कोई ऊंच-नीच हो गई तो मैं तो किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रह जाऊंगी"। मैंने तुझे जन्म दिया है, तुझे ऐसे किसी के भी पल्ले नहीं बाँध दूंगी । तेरी चाची ने अच्छी तरह देखभाल कर ही हमें यह रिश्ता बताया है"। नीरा मज़बूरी वश इस शादी को तैयार हो गई । शादी की सभी तैयारियां विजय के परिवार ने पूरे ज़ोर-शोर से की आस-पास के लोग नीरा को भाग्यशाली मान रहे थे कि लड़के वाले एक जोड़े में ही लड़की को विदा करा कर ले गये । विजय ने नीरा की बहन की शादी करने की भी ज़िम्मेदारी अपने सर ले ली ...जिससे नीरा को बहुत तसल्ली हुई । 



शादी की पहली रात को नीरा शरमाई-सकुचाई सी पलंग के एक कोने में बैठी हुई विजय की राह तकती रही....जब दो बजे तक भी विजय नहीं आया तो बेचारी ना जाने कब नींद की आगोश में चली गई । चार बजे के करीब कुछ आवाज़ों ने उसकी नींद भंग कर दी । वह घबरा कर उठ बैठी सामने विजय लड़खड़ाता हुआ बुरी तरह नशे में धुत्त उसकी तरफ चला आ रहा था ।

नीरा डर के मारे पलंग में ही गड़ी जा रही थी । विजय ने बैठकर नीरा से बात करने की ज़रूरत भी ना समझी और उसके ऊपर किसी वहशी दरिंदे की तरह टूट पड़ा । नीरा असहाय सी बनी छटपटाती रही । आज उसके सारे सपने तार- तार हो गए थे । आपसी सहमती क्या होती है...उससे तो शायद विजय का दूर-दूर तक कोई नाता नहीं था । अपनी भूख शांत कर के वह एक तरफ लुढ़क गया । 



किसी भी लड़की के लिए शादी के बाद की पहली रात बहुत खास होती है पर नीरा के लिए तो यह एक भयंकर सपने से कम नहीं थी । नीरा एक तरफ बैठी हुई रोती रही सुबह नीरा ने जाकर अपनी सास के पैर छुए तो उन्होंने उसे बहुत ही भारी साड़ी और ज़ेवर के दो-तीन डिब्बे देते हुए कहा "जल्दी से जाकर तैयार हो जाओ, मुंह दिखाई की रस्म के लिए लोग आते ही होंगे"। नीरा कुछ बोलने की स्थिति में नहीं थी...वह चुपचाप अपने कमरे में जाकर तैयार होने लगी । तैयार हो कर जब नीरा बाहर आई तो किसी की आँख उसके ऊपर से हट ही नहीं रही थी । उसकी सास ने उसे एक तरफ बिठा दिया और उसका मुंह ढख दिया । शहर की जानी-मानी हस्ती होने की वजह से उनके घर में ऐसा लग रहा था...जैसे पूरा शहर ही उमड़ पड़ा हो । जो भी नीरा को देखता उसकी तारीफ़ किये बिना नहीं रहता...बहुत से लोग आपस में कानाफूसी कर रहे थे की "लंगूर के हाथों में हूर...सब पैसे का खेल है, जो इस उम्र में भी इसे इतनी खूबसूरत और संस्कारी पत्नी मिल गयी"। जब भी कोई नीरा के पास जाकर उसकी तारीफों के पुलिंदे बांधता...नीरा हल्का सा मुस्कुरा देती । यह बात विजय को अंदर तक झुलसा रही थी । सबके जाने के बाद नीरा जब अपने कमरे में गई, विजय उससे बिलकुल नहीं बोला । नीरा ही अपनी शादी की शुरुआत अच्छी यादों से करना चाहती थी इसलिए वो ही विजय के पास गई  उससे बात करने पर विजय ने उसे पीछे धकेलते हुए कहा "तुम चरित्रहीन हो, मुझे तुमसे घृणा हो रही है"। नीरा ने प्रश्नभरी निगाहों से उससे पूछना चाहा कि "ऐसा क्या कर दिया मैंने, जो ऐसा बोल रहे हो"? पर विजय ने बिना उसके बोले ही कहा "कैसे सबके साथ घुल-मिल रही थी । नीरा ने उसे समझाते हुए कहा "वो सब आपके जान-पहचान वाले थे । अगर मैं सबको नज़रअंदाज़ करती तो सब मेरे बारे में क्या सोचते"। 

उस दिन का दिन था और आज का दिन था विजय ने एक पल नीरा को चैन की सांस नहीं लेने दी | बिना वजह शक करना, चरित्रहीन होने का इलज़ाम लगाना और फ़िर अपना गुस्सा निकालने के लिए कसाई की तरह नीरा को मारना । वह ना किसी से बात कर सकती थी, ना कहीं जा सकती थी । अगर विजय के साथ भी कहीं जाती थी तो हर पल विजय की निगाहें नीरा को ही घूरती रहती थी । पिंजरे में कैद पंछी की तरह हो गई थी नीरा की ज़िन्दगी । आजकल विजय नीरा की छोटी बहन शीना को भी गन्दी नज़रों से देख रहा था...बिना किसी कारण के शीना को अपने घर बुलाता और उससे अकेले में ले जाने की कोशिश करता था । पानी अब सर से ऊपर निकल चुका था । नीरा को विजय की पहली पत्नी के बारे में पता चला कि विजय ने उसका भी जीना मुश्किल कर दिया था और एक दिन उसे मार दिया पर सारे में उसके घर से चले जाने की बात कह कर उसे ही बदनाम कर दिया । कोई कुछ पूछना भी चाहता तो विजय और उसके परिवार के  दबदबे के आगे कोई कुछ बोल ही नहीं पता था । नीरा किसी मौके की तलाश में थी जब वो विजय का पूरी दुनिया के सामने पर्दाफाश कर सके...इसके लिए उसने विजय द्वारा किये गए उसके ऊपर अत्याचार अपने फोन में रिकॉर्ड कर रखे थे...क्यूंकि वह जानती थी सिर्फ उसके कहने भर से तो किसी की हिम्मत नहीं होगी विजय के ख़िलाफ़ कोई कदम उठाने की । नीरा ने बहुत सोच समझ कर ही यह फैसला लिया था कि आज जो स्त्री समाज के उथान समारोह में विजय को सम्मानित किया जायेगा । वहीं पर ही वह सबको बतायेगी की क्या इज़्ज़त है...विजय की नज़रों में एक स्त्री की क्यूंकि नीरा हर तरफ से हताश हो चुकी थी...उसकी सास ने कह दिया था "हमारे घर में विजय के आगे कोई कुछ नहीं बोल सकता और अगर वो तुझे दुनिया वालों की गन्दी निगाहों से बचा कर रखना चाहता है तो इसमें क्या परेशानी है... क्यूँ तू ऐसे काम करती है, जिससे उसे बोलने का मौका मिलता है | नीरा के लिए यह सब बातें असहनीय हो गई थी । उधर उसकी माँ ने भी कह दिया था "तेरे कुछ भी गलत कदम उठाने से तेरी बहन की भी ज़िन्दगी तबाह हो जायेगी । शादी के बाद एक लड़की के लिए ससुराल ही उसका घर है । हमारे से किसी मदद की कोई उम्मीद मत रखियो"। नीरा का मन करता था अपनी माँ से चिल्ला-चिल्ला कर कहे "पहले मुझे दलदल में धकेल दिया...अब बाहर भी नहीं निकालना चाहती" पर वो सब कुछ अंदर ही अंदर सोच कर रह जाती थी । आज महिला उथान केंद्र के समारोह में विजय नीरा को भी अपने साथ ले गया था समारोह में जब अतिथी का नाम पुकारा गया तो पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज गया । विजय को जब सम्मानित करने के लिए स्टेज पर बुलाया गया और बताया गया कैसे वो हर साल लाखों रुपया महिलाओं के उथान के लिए उनके केंद्र को देता है तो विजय फूला नहीं समा रहा था । जब विजय से चंद लाइनें बोलने को कहा गया तो उसने बड़ चढ़ कर कहा कि "स्त्री हर रूप में आदर की हकदार है...चाहे वो माँ हो, पत्नी हो, बहन हो या बेटी हो । अगर कोई भी उसके सम्मान को ठेस पहुंचता है...तो वो घृणा का पात्र है और उसके खिलाफ ज़रूरी कार्यवाही करनी चाहिए" तभी पीछे से रोने-चिल्लाने की आवाज़ें आने लगी । जब सबने उस तरफ देखा था तो सबका मुंह खुला का खुला रह गया । नीरा ने अब तक जो भी रिकॉर्ड किया था सब वहां दिखाने के लिए चलवा दिया था । उसमें विजय नीरा को बुरी तरह मार रहा था और उसके ऊपर बेबुनियाद इलज़ाम लगा रहा था...तभी नीरा स्टेज पर आई और विजय के हाथ से माइक लेते हुए बोली "देख ली आप सबने इस आदमी की सच्चाई...जो आदमी औरत को अपनी वासना पूर्ति का साधन मात्र मानता हो, वो क्या किसी औरत की इज़्ज़त करेगा । इतनी निर्दयता से तो कोई किसी जानवर को भी नहीं मारता होगा जिस निर्दयता से पिछले एक साल से यह मेरे साथ पेश आ रहा है । मेरे हँसने, मेरे रोने, मेरे आने-जाने ही नहीं मेरे बोलने तक पर इस आदमी का अधिकार है । यह आदमी मेरी बहन को भी गन्दी निगाह से देखता है । इसकी नज़र में किसी भी औरत की कोई इज़्ज़त नहीं है । इसने अपनी पहली पत्नी को भी मार डाला और भी ना जाने कितनी औरतों की इज़्ज़त के साथ खेलता है ये दरिंदा । ये इंसान कहने लायक ही नहीं है..यहाँ भी यह चंदे के बदले औरतों की चाहत रखता है । इस केंद्र के भी कुछ लोग इसके साथ मिले हुए हैं जो इसकी इच्छाओं का ध्यान रखते हैं" कहते कहते नीरा की आँखों से झरझर आंसू बह निकले । नीरा ने अपने को संभालते हुए कहा "मुझे नहीं पता आगे मेरे साथ क्या होगा...मुझे न्याय मिलेगा भी की नहीं पर मैं सबकी तरह चुपचाप सब सहन कर के ऐसे आदमी को बढ़ावा नहीं देना चाहती थी...इसलिए आज हिम्मत जुटा कर यह सब कह पाई"।


अचानक से पूरा हॉल तालियों की आवाज़ से गूंज गया । वहां जितने भी मीडिया के लोग थे सब अधिक जानकारी के लिए नीरा की तरफ दौड़ गये । विजय समित महिला केंद्र के दो- तीन अधिकारियों को पुलिस ने अपनी गिरफ्त में ले लिया । केंद्र के लोगों ने नीरा से उनके केंद्र का कार्यभार संभालने का निवेदन किया और साथ ही केंद्र की तरफ से उसके रहने का प्रबंध करने का आश्वासन दिया । नीरा आज अपने फैसले पर खुश थी...अगर आज वो अपने डर से बाहर नहीं निकलती तो कभी उसकी जीत मुमकिन नहीं हो पाती । उसके इस एक फैसले ने बहुत सी लड़कियों की ज़िन्दगी बर्बाद होने से बचा ली....


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