Shalini Dikshit

Drama

5.0  

Shalini Dikshit

Drama

अंतिम पत्र

अंतिम पत्र

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बसंत की शर्मीली धूप खिली हुई है, एकदम सरसों जैसी पीली- पीली सरिता अपने क्वार्टर के लॉन में धूप में बैठ कर खिले हुए गुलाब को देख रही है। एकदम डार्क मैरून रंग का गुलाब पुरा खिला हुआ है और एक कली भी है साथ में।

पीछे कुछ खुसर -फुसर महसूस हुई तो वह पीछे मुड़ी, हॉस्टल की कुछ लड़कियां खड़ी हुई थी जैसे कुछ कहना चाहती हों।

"हाँ बोलिए आप लोग।" सरिता बोली।

"मैम हम एक गुलाब तोड़ना चाहते हैं। " दीया ने हिम्मत करके कहा।

"क्यों ?" सरिता ने सवाल किया।

"रोज डे।" शिल्पा के मुंह से निकल गया।

"हाँ तो क्या हुआ? रोज कोई तोड़ने की चीज है ?" चलो भागो यहां से सरिता ने डांट दिया।

"मैंने कहा था ना, मैम क्या जाने रोज डे, प्रपोज डे, वह तो है ही इतनी खड़ूस नहीं देंगीं एक भी फूल।" रूबी दबी आवाज में बोली।

सभी बड़बड़ करती हुई चली गईं मन में गुस्सा भरे हुए।

सरिता ने भी सब सुन लिया था, पर कुछ कहा नहीं। उसे अपने हॉस्टल की लड़कियों से बहुत प्रेम था, लेकिन वार्डन होने के नाते सख्ती भी करना बहुत जरूरी था, तभी सभी के साथ सख्त व्यवहार रखती थी।

वह सोच कर मुस्कुरा दी कि मैम क्या जाने रोज डे, प्रपोज डे, सच ही तो कह रही थीं लड़कियां सरिता ने सोचा। उसके समय में सिर्फ वैलेंटाइन डे ही पता था यह सब डे तो बाद में ज्यादा प्रचलित हुए हैं। अनायास वह अपने उस खास वैलेंटाइन डे में पहुँच गई। उस दिन कालेज का माहौल कितना अलग था, रंग-बिरंगे लहराते दुपट्टे और उन दुपट्टे में फंसा लड़कों का दिल इसी तरह सिद्धार्थ का दिल भी उसके साथ उलझ गया था और सरिता को इस बात का अंदाजा हो गया था लेकिन वह अनजान बनी हुई थी, जैसे कुछ समझती ही नहीं है की सिद्धार्थ के दिल में क्या चल रहा है। भगवान ने लड़कियों को छठी इंद्री दी है, जो किसी के अंदर कुछ चलने से पहले ही भाँप लेती हैं और उसको वहीं रोकना है या बढ़ावा देना है; जैसा उनकी मर्जी होती है वैसा ही व्यवहार करती हैं। सरिता भी वही कर रही थी क्योकि वह भी सिद्धार्थ को पसंद करती थी। लेकिन कहेगी नहीं वह, कहना तो सिद्धार्थ को ही पड़ेगा।

उस दिन वैलेंटाइन डे था सरिता क्लास के बाहर पहुँची ही थी कि सिद्धार्थ आ गया, सिद्धार्थ दो साल सीनियर है तो उसकी क्लास अलग है लेकिन आज सरिता के इंतजार में पहले से ही खड़ा था। आज सभी अपने में ही बिजी हैं, कोई किसी पर ध्यान नहीं दे रहा है । गुलाब सरिता की तरफ आगे बढ़ा कर मुस्कुराते हुए सिद्धार्थ बोला, "मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ।"

वह हाँसते हुए आश्चर्य के साथ बोली, "शादी और अभी?"

"अरे अभी नहीं पढ़ाई के बाद ,जब मैं जॉब करने लगूंगा तब।"

"जी मैं भी यही चाहती हूं।" सरिता झट से गुलाब हाथ में लेकर क्लास के अंदर भाग गई।

मोबाइल की रिंग ने सरिता का ध्यान भंग कर दिया उसने फोन उठाया तो बेटे सिद्धांत का फोन था।

"मॉम !आज मेरी एनडीए की ट्रेनिंग का पहला टर्म पूरा हो गया।"

"बहुत अच्छे! बेटा शाबाश !"

फोन पर सिद्धांत की आवाज सुनकर वह बहुत खुश हो गई थी। अंदर कमरे में जाने के लिय उठी तभी कुछ लड़कियां फिर से आ गईं।

"हाँ बोलो! अब क्या है?" सरिता ने सवाल किया।

सरिता की उम्र निकल गई थी इसी हॉस्टल में, लेकिन इस बार का बैच कुछ ज्यादा ही तेज है वरना तो लड़कियां बात करने में घबराती थीं।

"मैम शाम को हम लोग बाहर जाना चाहते हैं।" भीड़ में से कोई लड़की बोली।

"हाँ तो जाओ, टाइम का ध्यान रखना, टाइम से आ जाना।" सरिता ने कहा।

"मैम हम परमिशन माँगने आए हैं कि हम आज छः बजे से थोड़ा लेट आएं; मैम प्लीज !" लड़कियों ने एक साथ एक स्वर में कहा।

"अच्छा तो कितने बजे आने का इरादा है तुम लोगों का?"

"आठ बजे तक पक्का आ जाएंगे मैम। प्लीज !"आरती बोली।

"ह्म्म्म !" सरिता ने घड़ी देखी कि एक बज रहा है।

"अच्छा तुम सब तीन बजे कैंपस में मिलो, मुझे कुछ बातें पूछनी हैं फिर देखते हैं क्या करना है।"

"पता नहीं क्या प्रवचन सुनना पड़ेगा मैं जानती थी, जाने नहीं देंगी मैम।" आरती दुखी हो बोली।

"वही तो खुद का तो कोई है नहीं, इतनी खड़ूस है।" रुचि बोली।

"अरे है कैसे नहीं, उनके रूम में देखी तो है कितनी बड़ी फैमिली फोटो लगी है इतनी प्यारी सी।" नेहा बोली।

"हाँ फैमिली फोटो तो लगी है।"

"तो फिर इनके नेचर के कारण ही बिचारे जल्दी भगवान को प्यारे हो गए होंगे।" यह सब बक-बक करती लड़कियां चली गई।

सरिता अंदर चली गई कुछ खाने का इंतजाम करने, वरना तीन बजे लड़कियां फिर आ जाएंगी। आज इन सब लड़कियों के कारण उसका मन भी बार-बार अतीत की गलियों में ही चला जा रहा है। कितनी खुश थी कि सिद्धार्थ का चयन आर्मी में हो गया है जब तक ट्रेनिंग पूरी करके उसको पोस्टिंग मिलेगी तब तक इसका भी एम एस सी हो जाएगा; फिर दोनों शादी कर लेंगे। घर के लोग भी लगभग तैयार ही थे।

लेकिन शादी से पहले कारगिल युद्ध उनकी खुशियों को लील गया सिद्धार्थ को हमेशा हमेशा के लिए उससे जुदा कर दिया। जिस दिन सेना की तरफ से सिद्धार्थ का आखिरी पत्र सरिता के घर आया सब चकित रह गए पत्र पर सिद्धार्थ का नाम देखकर।

सेना का ऐसा भी कोई नियम होता है वह नहीं जानती थी की जंग पर जाने से पहले सैनिक से एक पत्र लिखवाया जाता है आखिरी पत्र के रूप में, कि अगर वह शहीद हो गया तो फिर वह पत्र उसके उस व्यक्ति को दे दिया जाएगा। सिद्धार्थ ने विनती करके दो पत्र लिखे थे एक अपनी माँ के लिए और दूसरा सरिता के लिए।

सरिता के पत्र में लिखा था, अगर मैं शहीद हो जाऊँ तो तुम अपना परिवार बसा लेना मेरी यही आखिरी इच्छा है।

"मैम! हम आ गए हैं।" बाहर से लड़कियों की आवाज आई।

ओह इतनी जल्दी तीन बज गया सरिता मन ही मन में गड़बड़ाई।

"हाँ! मैं आ रही हूं अभी।" सरिता अंदर से ही बोली।

सरिता के बाहर आते ही सब लड़कियां चुपचाप खड़ी हो गईं।

"तो तुम लोग घूमने जाना चाहते हो ?" सरिता ने सवाल किया।

"जी मैम।" सब कोरस में बोली।

देखो बच्चों यह घूमना -फिरना मित्रता सब ठीक है, लेकिन इन सब के चक्कर में पढ़ाई को कभी नजरअंदाज मत करना और अभी से ही इस प्रेम, प्यार के बारे में मत सोचना अभी तुम सब बहुत छोटे हो समझे और हमेशा कभी भी कहीं भी जाओ अपने घर और संस्कारों को ध्यान में रखो और दायरे में रहो। अगर तुम इन सब बातों को ध्यान में रखने का वादा करती हो तो आज, सिर्फ आज के लिए मैं तुम लोगों को आठ बजे तक बाहर घूमने की परमिशन देती हूँ।

"जी मैम ध्यान रखेंगे।" सब एक साथ बोली।

"एक बात और कहनी है।" सरिता ने कहा।

"जी मैम।"

"कोई भी मेरी बातों को प्रवचन और उपदेश का नाम नहीं देगा।"

सब सर झुका कर हस पड़ी और खुशी से चली गईं क्योंकि परमिशन मिल गई थी घूमने जाने की।

नौकरी मिलने के बाद सबसे पहले सरिता एक अनाथ आश्रम से बच्चे को गोद ले आई थी उसका नाम रखा सिद्धांत। उसको सिद्धार्थ की अंतिम इच्छा जो पूरी करनी थी परिवार बसाने की अब वह एक फौजी की बिन ब्याही विधवा अपने बेटे सिद्धांत के साथ रहती है। भला हो फोटोशॉप का कि आज उसके पास एक फैमिली फोटो भी है जिसमें तीनों एक साथ हैं।

लड़कियों के जाते ही सरिता अपने खिले हुए गुलाब के पास गई "हैप्पी रोज डे मेरे सिद्धार्थ।" बोलते हुए उसने गुलाब को बड़े प्यार से छुआ।

पिछले बाइस सालों में यह गमला कभी खाली नहीं रहा हमेशा गुलाब का पौधा इसमें लगा होता है और खिलते फूलों को देखकर सरिता खुश होती है और सिद्धार्थ को महसूस करती है।


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