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Pankaj Priyam

Romance

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Pankaj Priyam

Romance

अनलिखी चिट्ठी

अनलिखी चिट्ठी

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मेरे प्रिय मित्र


बहुत वर्षों से तुम्हें पत्र लिखने की तमन्ना दिल में दबाए बैठा था। तुम्हें बहुत कुछ कहना चाहता था मगर कभी तुमने नहीं सुना तो कभी मैंने नहीं कहा। कई बार हिम्मत की तुम्हें खत लिखने की मगर लिख न सका। तुम जब पास होती थी तो लब खामोश पड़ जाते थे। जब दूर होती थी तो दिल बेचैन हो जाता था। कई बार कहना चाहा की पहली ही नजर में तुझ से कितना प्यार हो गया था। तुम मेरी पहली मोहब्बत, मेरा पहला अहसास थी। वो मेरा प्यार ही था जो तुझ से मिलने उतनी दूर तुम्हारे घर तक चला आता था। तुझे एक पल देख लेने की तड़प में सड़क पर तुम्हारी गाड़ी के गुजरने का इंतजार करता था। मगर तुम शायद मेरी मोहब्बत को समझ नहीं पाई या जानबूझकर न समझने का नाटक किया मेरे लिए आज भी अबूझ पहेली बना हुआ है। 

तुम्हारा वो हँसकर बातें करना, मेरा ख्याल रखना और कदम से कदम मिलाकर चलना, क्या सब यूँ ही .. या फिर कुछ और था तुम्हारे दिल मे? तुमने जब मेरा पत्र वापस किया तो मेरा दिल टूट गया , इसलिए फिर कभी लौटकर तुम्हारे पास नहीं गया।

लेकिन कोई ऐसा लम्हा नहीं बिता जब तुम्हें याद नहीं किया। तुम्हारे बारे में हर किसी से पूछता, कोई आधा सच तो कोई पूरा झूठ बोल मुझे तसल्ली दे जाता। आखिर तुमने ऐसा क्यूँ किया ? यह सवाल आज भी मेरे दिल को कुरेदती है।

हो सके तो मेरे इस सवाल का जवाब ज़रूर देना। 


तुम्हारा 

पंकज



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