रिश्तों की पोटली
रिश्तों की पोटली
कोमल के व्यवहार में आये परिवर्तन को देख प्रेम हैरान था। उससे बात किये बगैर जो एक पल भी नहीं रह पाती थी आज नजरें बचा रही थी। कोमल की शादी के करीब दो साल बाद प्रेम और कोमल की दुबारा मुलाकात हुई तो वह बिल्कुल अजनबियों सा व्यवहार कर रही थी। दिनरात फोन कर बातें करने को जिद करती और अब स्थिति ये है कि सामने भी चुपचाप थी। उसकी चुप्पी प्रेम को खाये जा रही थी। जो कभी उससे सलाह लिए कोई काम नहीं करती थी, आज अपने मन की मालकिन बनी हुई थी। शादी के बाद कितनी बदल गयी थी वो। जिसे कभी अपना भगवान मानती थी अब
आखिर प्रेम ने ही चुप्पी तोड़ी।
"तुम इस कदर बदल जाओगी मुझे अंदाजा नहीं था।"
"आखिर तुम मुझसे बातचीत क्यों नहीं कर रही हो।"
कोमल ने खुद में ही खोये हुए कहा "बस यूँ ही मन नहीं करता।"
"क्या अब हमारा रिश्ता खत्म हो गया.मेरे बिना तो तुम्हें एक पल भी मन नहीं लगता था। अब क्या हो गया। "
"शादी के बाद रिश्ते बदल जाते हैं। मैं भी बदल गयी हूँ।"
"ठीक है लेकिन कुछ रिश्ते कभी बदलते नहीं। तुम्हारा यह व्यवहार मुझे तकलीफ देता है। तुम्हें अच्छा लगता है क्या ?"
"अब मुझे आपके दर्द-तकलीफ से क्या मतलब। मेरा अब अपना परिवार है। रिश्ते बदल गए हैं। अब रिश्तों की नई पोटली मिल गयी है।"
"हाँ सही कहा तुमने, जरूरत के हिसाब से अब रिश्ते बदलने लगे हैं। तुम भी बदलते रिश्ते का एक किरदार भर हो. सम्भालो रिश्तों की नई पोटली को। कभी जरूरत पड़े तो पुरानी पोटली को भी खोल लेना कभी।