सफर

सफर

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अपने नाम के अनुरूप ही सुनयना बहुत सुंदर थी। बचपन से उसे अपनी सुंदरता पर बहुत नाज था। सजने सँवरने का शौक बहुत खर्चीला था। अपने दोस्तों के साथ घूमने फिरने का शौक पूरा नहीं हो पाता था। उसके बाबूजी सामान्य किसान थे। बमुश्किल घर का खर्च चल पाता था ऐसे में बेटी के नाज नखरे कहाँ से उठाते। पॉकेट खर्च को लेकर सुनयना का रोज अपने माँ बाप से झगड़ा होता था। बाबूजी बहुत समझाते की चादर के हिसाब से ही पांव फैलाना चाहिए। लेकिन वो बहुत जिद्दी भी थी। जैसे तैसे स्कूल की पढ़ाई की तो बगल के ही गांव में शादी हो गई। पति जमशेदपुर में एक फैक्ट्री में काम करता था। शादी के बाद वह भी शहर चली गयी। शहर की चकाचौंध में सुनयना और डिप्रेस होने लगी। लोगों के रहन सहन और अपने जीवन की तुलना कर कुढ़ने लगी। पति से भी रोज किचकिच होती।

पड़ोस में एक लड़का अमित रहता था,उसका रहन सहन औरों से बिल्कुल अलग था। खर्च बेहिसाब, रोज पार्टी करता और कीमती गाड़ियों में घूमता। धीरे धीरे सुनयना उसके प्रति आसक्त होती गयी। अमित भी अकेला था,अक्सर उसे खाने पर अपने घर पर बुला लेती। रमेश सीधा साधा दिनभर फैक्ट्री में व्यस्त रहता और सुनयना अमित के सैरसपाटे में निकल जाती। रमेश को जब इसका पता चला तो घर मे खूब झगड़ा हुआ। एक दिन सुनयना अमित के साथ घर छोड़कर भाग गई। कुछ दिनों तक दूसरे शहर में खूब ऐश मौज की। अमित ने मानो सारी जन्नत दे दी थी।

जिन खर्चों के लिए वो अपने पिता और पति के आगे गिड़गिड़ाती रहती थी वो अब मनमाफ़िक खर्च करती थी। एक दिन अमित ने किसी काम से बाहर जाने की बात कह कर चला गया। अगले दिन अमित का दोस्त रितेश होटल में आया और कहा कि अमित ने उन्हें अपने साथ लाने को कहा है आप चलिए। अमित अभी कलकत्ता में है और कुछ दिन वहीं रहना है। सुनयना उनके साथ चल पड़ी एक अनजान सफर पर। कलकत्ता पहली बार गयी।

वहां की ऊंची ऊंची बिल्डिंग को देख आंखे चौंधिया गयी। रितेश कहाँ ले जा रहा था उसे कुछ पता नही। एक भीड़भाड़ वाली गली में ऊपर एक घर में ले गया। थोड़ी देर में अमित को लेकर आने की बात कहकर रितेश चला गया। बन्द कमरे में सुनयना अमित का इंतजार करती रही लेकिन वो शामतक नहीं आया। उसने बाहर निकल कर देखा तो उस घर मे ढेरों लड़कियां थी जो सजधर कर बालकनी में खड़ी थी। उसे समझते देर नहीं लगी कि वह कौन सी जगह पहुँच गयी है। उस घर की मालकिन ने बताया कि अमित एक दलाल है जो उसके लिए काम करता है। उसने सुनयना को 50 हजार रुपये में बेच दिया। सुनयना दहाड़ मारकर रो पड़ी,जिसे प्यार किया,जिसके लिए घरबार छोड़ा उसी ने इतना बड़ा छल किया। उस दिन के बाद न तो अमित आया और न ही सुनयना उस देहरी से बाहर निकल सकी। बन्द कमरे में उसकी किस्मत पर ताला लग चुका था जिसकी चाबी उसने खुद खोई थी दौलत की चकाचौंध वह जिस सफर पर चल चुकी थी वह बिल्कुल ही अनजान था।


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