अनजान मंजिल

अनजान मंजिल

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"क्या कर रहे हो ?" —रात के अँधेरे में मैथिली का मैसेज कर्ण के मोबाइल स्क्रीन पर एक मधुर सी मैसेज टोन के साथ चमक उठा। 

"कुछ नहीं, बस तुम्हारे मैसेज का इंतजार।" —कर्ण ने जवाब टाइप किया। 

"क्यों ? हर बार मुझे ही मैसेज क्यों करना पड़ता है, तुम मैसेज क्यों नहीं कर सकते ?" —मैथिली का शिकायत भरा मैसेज फिर से चमक उठा। 

"मुझे डर लगता है तुमसे कहीं बुरा न मान जाओ" —कर्ण ने मैसेज टाइप किया। 

"बेकार की बात नहीं, ये क्यों नहीं कहते कि किसी और से बात कर रहे थे।"

"नहीं बाबा ऐसा कुछ नहीं मैं तो बस टाइम पास विडिओ देख रहा था।"

"तो करो टाइम पास मैं सोने जा रही हूँ।" —ये लिखकर मैथिली ऑफलाइन हो गई। 

कुछ देर कारण ब्लैंक मोबाइल स्क्रीन को देखता रहा और फिर उसने मैसेज टाइप किया— "मैथिली सो गई क्या ?"

एक मिनट, दो मिनट, तीन मिनट, चार मिनट। 

"क्या है ? सो जाइये।" —मैथिली का मैसेज फिर चमक उठा। 

कर्ण के चेहरे पर मुस्कान आ गई और शुरू हुआ दोनों के बीच मैसेज, वॉयस मैसेज का अनवरत सिलसिला जो छह महीने पहले शुरू हुआ था। छह महीने गुजर जाने के बावजूद भी कर्ण; मैथिली से अपने रिश्ते को कोई नाम नहीं दे पाया था। इन गुजरे छह महीनो में दोनों छह जन्मो की लड़ाईया लड़ चुके थे, छह जन्मो का रूठना मनाना कर चुके थे।

आठ महीने पहले धन्वन्तरी कैंसर इंस्टिट्यूट की ओ पी डी में दो दर्जन पेसेंट, जीवन से हारे; थके-थके से अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। ल्यूकेमिया से पीड़ित कर्ण और मैथिली को ब्लड कैंसर वार्ड में ले जाया गया और एडमिट भी कर लिया गया। मैथिली सेकंड फ्लोर पर प्राइवेट रूम में थी और कर्ण सेवंथ फ्लोर पर प्राइवेट रूम में। हफ्ता दस दिन बाद साथ आये परिवार के लोग जा चुके थे। अब वो थे, ट्रीटमेंट के विभिन्न सेसन थे। ऐसे ही सेसन्स में दोनों मिले, दुःख सुख की बाते हुई। मोबाइल नंबर लिए दिए गए, हफ्तों लगे कर्ण को पहली कॉल करने में। डॉक्टर्स मोबाइल के सीमित प्रयोग की सलाह देते रहे और उनके बीच बातो का सिलसिले बढ़ते गए। कैंसर हार रहा था, डॉक्टर्स उम्मीद कर रहे थे कि साल के अंत में दोनों अपने घर जा सकेंगें। 

अस्पताल में अंतिम दिन, आज मैथिली को डिस्चार्ज कर दिया गया है, उसका बेटा और पति उसे लेने आ चुके है, मैथिली ने मैसेज करके बताया। 

कर्ण ने बाय, टी सी लिखकर मैसेज भेजा और जवाबी मैसेज का इंतजार करने लगा जो कभी नहीं आया। 

एक सप्ताह बाद उसे भी डिस्चार्ज कर दिया जायेगा, उसकी पत्नी और बेटी उसे लेने आ रहे है। एक अनजान सफर जो छह महीने पहले शुरू हुआ था आज उसका अंत हो चुका है। जिस सफर की कोई मंजिल न थी आज उसका अंत हो चुका था। 


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