अनदेखा सपना
अनदेखा सपना




रानियां अपने माथे पर हाथ रखकर परेशान अवस्था में बैठी हुई थी। कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अब आगे भविष्य का क्या होगा जिंदगी किस मोड़ पर ले आई है ना रोते बन रहा है ना चुप रहते, क्या करूं, कहां जाऊं इसी असमंजस में वह जार जार रो पड़ी।
रानियां का पति एक शक्कर की मिल में गन्ना ढुलाई का काम करता था। गन्ना ढुलाई करते करते एक दिन एक ट्रक के नीचे उसका एक पैर आ गया। गरीब होने की वजह से और पैसों की कमी से ठीक से इलाज ना होने की दशा में उसका एक पांव काटना पड़ा। फल स्वरुप शक्कर की मिल से भी नौकरी जाती रही उसकी। घर में दो बच्चे जो अभी स्कूल ही जाने लायक थे उनकी पढ़ाई पर भी विपदा आन पड़ी। रानियां पढ़ी-लिखी भी नहीं थी कि कहीं कोई नौकरी कर पाती। नौकरी करती भी कैसे ,अपाहिज पति को और बच्चों को घर में अकेला छोड़कर कोई छोटा-मोटा काम भी नहीं कर सकती थी समझ नहीं आता था उसके परिवार का पालन पोषण कौन करेगा। जो थोड़े बहुत पैसे और इक्का-दुक्का गहने थे वह सब पति की बीमारी के बलि चढ़ गए। अब तो घर में फार्कों की नौबत आ गई थी।
एक दिन रानियां घर के बाहर यूं ही उदास आंसू बहा रही थी कि उसकी गांव के आंगनबाड़ी सरकारी संस्था में नौकरी करने वाली सुनीता दीदी उधर से गुजर रही थी। रानियां को रोते देख वहीं रुक कर रानियां की हालचाल पूछने लगी। रानियां की परेशानी जानने के बाद उन्होंने उसको ढांढस बंधाया और आंगनबाड़ी स्कूल में आने को बोला। रानियां कभी आंगनबाड़ी स्कूल नहीं गई थी। पर सुनीता दीदी की बात मानकर जब वहां पहुंची तो उसने देखा बहुत सारी महिलाएं तरह-तरह की काम वहां सीख रही थी। तब सुनीता दीदी ने रानियां को समझाया,
देखो रानियां यह लोग भी पढ़ी-लिखी नहीं थी इनको भी कोई काम नहीं आता था मगर वक्त की मार ने इनको घर से निकाला और इनको हिम्मत दी। आंगनबाड़ी के इस स्कूल में आकर इनको सरकार द्वारा मिली सारी सुविधाएं प्राप्त हुई। अभी तो यह सब काफी कुछ पढ़ना भी सीख गई हैं साथ ही रोजगार की बहुत सारी चीजें भी यहां पर सिखाई जाती हैं। कई महिलाएं सीख कर अपना रोजगार कर भी रही है। रानियां मै गांव की हर औरतों से ही यह बात बोलती हूं उन को जागरूक करने की कोशिश करती हूं और कहती रहती हूं कि खुद को सक्षम बनाओ आज दुनिया कहां से कहां जा रही है औरतें कितना नाम कर रही हैं। जब मैं इस आंगनवाड़ी स्कूल में आई थी तब यहां एक भी महिला नहीं आती थी मैंने सब को समझाने की कोशिश करी , मेरे बहुत से प्रयासों के बाद तब एक महिला आई और जब उसने आंगनबाड़ी के फायदे देखें तो उसने दूसरी महिला को इसके फायदे के बारे में बताया और आज इन सब ने मिलकर एक और एक ग्यारह की मिसाल कायम कर दी है। तुम स्कूल आना शुरू करो तब तक परिवार के लिए कतई चिंतित मत हो सरकार द्वारा दिए जा रहे सभी संसाधन मैं तुम को उपलब्ध कराऊंगी। और मैं भी जितनी मदद हो सकेगी वह मदद करूंगी तुम्हारी।
रानियां एक नए जोश के साथ घर के सारे काम निपटा कर अपने पति को खिला पिलाकर अपने बच्चों को स्कूल भेजकर नियमित रूप से आंगनबाड़ी स्कूल आने लगी। रानियां ने पढ़ना भी सीखा एवं रोजगार के रूप में सिलाई सीख कर अपनी एक सहेली के साथ मिलकर सरकार द्वारा रोजगार लोन ले कर दो सिलाई मशीन खरीदी।
आज रानियां बहुत खुश थी उसका वह सपना जो उसने सपने में भी नहीं देखा था वह पूरा होने जा रहा था उसका बुटीक, जिसका उद्घाटन उसने सुनीता दीदी के हाथों से ही करवाया।
सुनीता दीदी को उसने अनेकोनेक धन्यवाद दिया क्योंकि उनके जागरूक करने की वजह से ही वह अपनी जिंदगी मे अपनी एक नई पहचान बना पाई।