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Priyanka Shrivastava "शुभ्र"

Drama

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Priyanka Shrivastava "शुभ्र"

Drama

अंडे देने वाली मुर्गी

अंडे देने वाली मुर्गी

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आज मैं बहुत खुश हूँ। अलादीन का चिराग जो मिल गया। हुआ ये कि आज मेरे पति आपने आदत के अनुसार कैब में अपना पर्स छोड़ कर उतर गए। हर बार की तरह मैं उनके पर्स को लेकर उतरी। पर इस बार उनसे पहले मैं उतरी थी और दुबारा झांक कर देखा कि कहीं इन्होंने पर्स या मोबाइल तो नहीं छोड़ दिया और पर्स मिला। घर में आने के बाद काफी देर तक उन्हें याद नहीं आई। लगभग तीन चार घन्टे के बाद जब मार्केट निकल रहे थे तो पर्स की याद आई। कैब से मैं पहले उतरी थी अतः उन्होंने सोच लिया कि आज पर्स गुम हो गया। अब तो उनके होश उड़ गए। पैसे से ज्यादा कीमती तो आजकल ए टी एम कार्ड होती है। फिर हर बार की तरह मैं गुस्सा दिखाते हुए लम्बे चौड़े भाषण के साथ पर्स वापस किया। आज ये खुश हो दिलदार बन गए और कहा जाओ एक दिन के लिये ये पर्स तुम्हारा। ए टी एम कार्ड भी है, पैसा भी जो मन में आए खरीदो मैं कुछ नहीं पूछूँगा। अब तो मेरे खुशी का ठिकाना नहीं क्योंकि ये तो चिराग के जिन्न के बराबर था।

जो चाहें सो खरीद सकते थे पर यहाँ एक शर्त थी दिनभर में एक बार ही कार्ड का प्रयोग करना था। 

खुद अच्छी खासी कमाती हूँ, जो दिल में आता खरीदती भी हूँ। पर आज की खरीददारी की खुशी ही कुछ और थी। मैं बैठ कर अपने खरीददारी की लंबी चौड़ी लिस्ट बनाने लगी। अब उस लिस्ट को काट छाँट करनी पड़ी ताकि सब चीज यदि एक ही शॉप से खरीदूंगी तभी कार्ड एक बार प्रयोग कर सारा सामान ले सकती थी। कुछ सामान तो एक जगह मिल रहे थे पर कुछ सामान ऐसे थे जिनके लिए मुझे दूसरे शॉप में जाना ही पड़ता। अतः लिस्ट पुनः बनने लगी। कभी साड़ी खरीदने को सोचती तो कभी सूट तो कभी स्वेटर।

अंत में सोचा ये सब तो कितना भी खर्च करूँ कम में ही हो जाते हैं। इन्हें तो मैं अपने पैसे से भी ले सकती हूँ और अकसर लेती भी हूँ। क्यों न गोल्ड का कुछ ले लूँ। 

गोल्ड का ध्यान आते चल दी अपने पुराने दुकान। तरह तरह के सेट देखने लगी। एक नवरत्न का सेट पसन्द किया तभी मेरी प्रिय सहेली तृप्ति उसी दुकान में आ गई। वो मेरी बहुत अजीज थी। उससे मैं सारी बात शेयर करती थी। जब उसे जिन्न की कहानी पता चली तो उसने कहा -" अरे यहाँ से क्यों ले रही हो ब्रांडेड ज्वेलरी लो।" अब मैं कल्याण ज्वेलर पहुँच गई।

कल्याण ज्वेलर में भी अनेक सेट देखी। कभी नेकलेस पसंद आता तो कभी कंगन। मुझे एक सेट पसंद आया जिसमें नेकलेस के साथ कंगन भी था। मैंने एक बार पति से पूछ लेना उचित समझा। उन्होंने हँस कर कहा -" आज तो कार्ड तुम्हारा है और उसमें उतना रुपया भी है कि तुम्हारी खाइस पूरी हो जाए। फिर पूछना क्यों। जो मन में आए ले लो।"

खुशी से आँखों में चमक आ गई। बिल बनवाने का सोचते सोचते मुझे लगा - पैसा पति का हो या अपना, चीज ऐसी होनी चाहिए जिसे हम बेधड़क पहन सकें। ये तो इतना भारी है कि पहनने के लिए अवसर ढूंढने पड़ेंगे। इससे अच्छा है मैं डायमण्ड का सेट ले लूँ। ऐसे भी मेरे पास डायमंड का अच्छा सेट नहीं। कुछ दिनों पहले कॉलेज की एक सहेली के साथ तनिष्क गई थी तो वहाँ बिल्कुल नए तरह का डायमंड सेट देखी थी। चलो वहीं चलती हूँ। और मैं तनिष्क के शो रूम चल पड़ी।


तनिष्क शो रूम में क्या हाल हुआ क्या बताऊँ। जब दुकानदार को मालूम पड़ा कि मेरा कोई लिमिट नहीं तो वह भी दिल खोल कर एक से एक सेट दिखाने लगा। उफ्फ जिंदगी में कभी उतना सेट दुकान में भी एक साथ नहीं देखी थी।

जी में आ रहा था हर सेट को गले में लगा कर आनन्द लूँ। पर अफसोस गले में लगाती भी तो देखने वाले पति तो साथ नहीं थे। अब मुझे उनकी याद आने लगी। क्योंकि कभी-कभी जब उनके साथ जाकर कुछ भी खरीदती तो वे ध्यान से देखते और अपनी राय देते। ये अच्छा लग रहा है तुम पर, ये अच्छा नहीं लग रहा है। कितनी बार होता जो मुझे बहुत पसंद आता उसे ये मना कर देते।

कहते देखने में सुंदर है पर पहनने पर उतना नहीं खिल रहा। एक दो बार तो मैं खीज भी गई थी उनके मना करने से और जो वे पसंद किए उसे ही बेमन से लेकर आ गई। पर जब उसे कभी भी पहनती तो जो भी देखता , देखते रह जाता और जरूर पूछता कहाँ से ली? मेरी एक साड़ी जिसे इनकी जिद्द पर मैं बिल्कुल बेमन से ली थी उसे देख कर मिसेज अखौरी ने कहा -'भई एक बार तो मुझे तुम्हारे पति के साथ जाकर शॉपिंग करनी ही पड़ेगी। उनकी पसंद लाजवाब है।'

मैंने हार कर पति को फोन किया और कहा इतना मंहगा गहना मैं किसी और के साथ तो ले नहीं सकती। और आप जानते ही हैं कि दस हजार की साड़ी भी मैं आपके बिना नहीं खरीदती तो लाखों की ज्वेलरी कैसे ले लूँ। प्लीज तनिष्क में आ जाइए न। उनका जवाब मुझे पता था -" आऊँगा, जरूर आऊँगा पर मेरा बटुआ रूपी जिन्न गायब हो जाएगा, सोच लो।" मैं बहुत सोची और घर वापस आ गई। क्योंकि दादी-नानी से सुना था जिन्न से कोई चीज नहीं मांगते। वो दे तो देते हैं पर वो टिकता नहीं और आगे जाकर कहीं न कहीं उनका दंड भुगतना पड़ता है। मुझे अंडे देने वाली मुर्गी को हलाल करने की कहानी भी अच्छी तरह से याद थी। मैं वापस आकर पति को उनका बटुआ वापस कर दिया और कहा आप साथ चल कर जो खरीदो जब खरीदो वो मंजूर ये बटुआ नहीं।

पति ने मुस्कुरा कर गले से लगा लिया। दूसरे दिन एक डायमंड सेट मेरे गले में था।

प्रियंका श्रीवास्तव 'शुभ्र'

नोट - अपने एस्प लाख कमाओ, करोड़ो खर्च करो पर पति का बटुआ जब हाथ लगे तो उसकी बात ही कुछ और होती है।


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