अनचाहा डाटा
अनचाहा डाटा
"पापा देखो मेरा मोबाइल नहीं चल रहा, बार- बार हैंग..." कहते हुए शिवम ने पापा के बेडरूम में प्रवेश किया
"तू और तेरी मम्मी....दोनों एक जैसे हो" राकेश बोला
"अब मैंने क्या किया है, इसके मोबाइल को तो मैंने हाथ भी नहीं लगाया." बीमारी की अवस्था में, सरिता ने लेटे लेटे कहा
"मैं कहाँ कह रहा हूँ कि तुमने मोबाइल को कुछ किया है" राकेश ने सरिता की ओर देखकर कहा
"पापा क्या आप भी...अब इसमें मम्मी कहाँ से...."
"तुम दोनों ही एक जैसे हो...कभी मेरी ओर भी देख लिया करो," सरिता के पास बैठते हुए राकेश ने कहा
"मेरा मतलब है, ये जो तुम दोनों पुरानी बातों और चीज़ों को संभाले रखते हो न, वो ही आगे चल कर तकलीफ़ देती है। एक बार अनचाही चीज़ों को हटा कर देखो, मोबाइल क्या ज़िन्दगी भी मस्त चलेगी..."
"मतलब.?" सरिता और शिवम ने एक साथ पूछा
"जिस तरह फ़ालतू सामान को घर से निकल देते हैं, उसी तरह, बेटा तुम जो अपने मोबाइल में पुरानी तस्वीरें और सन्देश भर लेते हो और उन्हें डिलीट नहीं करते, वो ही तकलीफ़ देते हैं।"
कुछ रुक कर राकेश फिर बोला "ऐसे ही तुम्हारी मम्मी....ये जो दूसरों की बातों को दिल से लगा कर ग़म पाल लेती है, वो ही बातें इसे बीमार कर देती हैं..."
"आज ही तुम दोनों अनचाहा डाटा डिलीट कर दो और फिर देखो जिंदगी के मज़े... " राकेश ने मुस्कुराते हुए कहा
शिवम और सरिता ने एक दूसरे की ओर देखा और मुस्कुराते हुए हाँ में सिर हिलाया।
"बेटा, तुम शाम को और सरिता तुम 10- 15 दिन बाद बताना..." नसीहत देकर हंसते हुए राकेश काम पर निकल गया।
