अनाम रिश्ता
अनाम रिश्ता
नेहा को कुछ कुछ होश आ रहा था, उसने धीरे- धीरे अपनी आंखे खोली , तो अपने बैड के सामने एक आइना रखा पाया। नेहा जब तक कुछ समझ पाती उसने खुद को उस आईने में देखा, उसके माथे पर महरून रंग की बड़ी बिंदी और मांग में लाल रंग का सिंदूर दिखा।
नेहा को लगा, मानो वह कोई सपना देख रही हो, उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था, वह सिस्टर सिस्टर ,करने लगी। उसकी आवाज सुन ड्यूटी पर तैनात नर्स लगभग भागती हुई आई।
नेहा को तीन दिनों के बाद होश में देख, सिस्टर शोभा बहुत खुश हो गई।
नेहा ने सिस्टर शोभा से पूछा -- सिस्टर यह मेरे माथे पर बिंदी और मांग में सिन्दूर ,किसने लगाया ?
सिस्टर शोभा - मैंम हम उनको नहीं जानते ।
नेहा ( गुस्से में) - यह मज़ाक आप लोग, मेरे साथ कैसे कर सकते हैं ?
सिस्टर शोभा - मैंम, हमने उनको बहुत मना किया था, मगर वह जिद पे अड़े थे।
नेहा - आखिर कौन था वह ? क्या नाम बताया उसने अपना ?
सिस्टर शोभा - माफ कीजिए अपना नाम तो नहीं बताये, मगर बोले, इसको कुछ नहीं होगा। यह मरेगी नहीं, नहीं मर सकती मेरी मोटी, कुतिया ।
यहाँ ड्यूटी पर डाक्टर भारद्वाज थे उस समय। सर तो बहुत गुस्सा भी हुऐ , बोले तमीज़ से बात करिये मिस्टर, एक तो सारे नियम ताक पर रख कर अन्दर आने दिया तुमको और तुम एक औरत को ( जो बचेगी भी या नहीं) सबके सामने गाली दे रहे हो। सर के ऐसा कहते ही वह रोने लग गया और बोला यह मुझसे मिले बिना नहीं मर सकती, नहीं मरेगी यह डाक्टर । नहीं मर सकती मेरी मोटी, कुतिया।
ऐसा कहते- कहते, वह फफक -फफक कर रोने लग गया और बोला आपको कुतिया शब्द गाली लग रहा है ना , मगर आप इसका सही मतलब नहीं जानते। इसी पागल ने मुझे इस शब्द का सही मतलब बताया। इसका मेरे लिए प्यार इतना निस्वार्थ, निश्छल, और इतना सच्चा था कि मैं इसको इसी नाम से पुकारने लगा। आपको पता है, पहली बार तो यह भी गुस्सा हो गई थी मुझसे। दो दिन तक तो बात ही नहीं की मुझसे । बहुत छोटा सा बच्चा है इसके अन्दर, जो दुनिया के हर छल-कपट, चालाकियो से दूर है।
फिर अचानक मुझसे बोला - सिस्टर कही से एक महरून बिंदी और सिन्दूर मंगवा दो मुझे।
तभी डाक्टर अनीता राउन्ड पर आ गई। और मुझसे पूछने लगी यह कौन है ? क्या कर रहा है यह यहां ?
मैं कुछ कह पाती इससे पहले ही वह डाक्टर अनीता से बोलने लगा -- मैंम आपके पर्स में बिंदी होगी ना, एक दे दीजिए, मुझसे इसका खाली माथा नहीं देखा जा रहा।
डाक्टर अनीता - आपको बात करने की तमीज़ नहीं है क्या ?
वह बोला - मैंम, मैंने कोई बदतमीजी नहीं करी, मैं बस अपने प्यार का माथा ऐसा सूना - सूना नहीं देख सकता। एक बात और यह अक्सर मज़ाक- मज़ाक में मुझसे कहती थी कि जब भी मैं मरू , आपके नाम के सिन्दूर के साथ ही अग्नि मे मिलू । यह मर तो नहीं सकती मुझे देखे बिना। और फिर रोने लग गया।
किसी को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे, क्योंकि उसके आंसूओ में कहीं भी झूठ नहीं था। उसका प्यार तुम्हारे लिए इतना ज्यादा सच्चा दिखा ,कि डाक्टर अनीता ने खुद मुझे बिंदी और सिन्दूर लाने के लिए भेजा।
डाक्टर अनीता - सिस्टर शोभा, यह लीजिए सौ रूपये और जल्दी से दोनो सामान ले कर आईये। और आप मिस्टर तब तक बाहर बैठिये।
मैं जब सामान ले कर वापस आई तो देखा वह आदमी डाक्टर अनीता के ही केबिन में बैठा था और डाक्टर
अनीता उसकी बात को बहुत ध्यान से सुन रही थी।
मैंने बाहर से ही डाक्टर अनीता को इशारा कर दिया कि सामान आ गया है। डाक्टर अनीता ने मुझे आपके पास जाने को कहा।
मैं सामान ले कर आपके पास आ गई, थोड़ी देर में डाक्टर अनीता भी उसके साथ कमरे में आ गई।
वह पागलो की तरह आपको ही देख रहा था, मानो उसके ऐसे देखने से आप आंखे खोल देंगी । इतने में डाक्टर अनीता ने कहा - जल्दी करिए, यह अस्पताल के नियम के खिलाफ काम हो रहा है। वह बोला बहुत समय बाद देख रहा हूँ, यह पागल हर समय कुछ ना कुछ पूछती ही रहती थी, और जब मैंं जवाब नहीं देता था तो तुरन्त गुस्सा हो जाती थी। आज मैं चाहता हूँ कि यह मुझसे सवाल करे तो चुप चाप लेटी है, कितना समय हो गया इसको मुझसे लड़ाई किये हुये।
डाक्टर अनीता फिर बोली - जल्दी करिये।
उसने रोते हुए, कांपते हाथो से आपके माथे पर बिंदी लगाई और मांग में सिन्दूर भर कर आपके माथे को चूमा और आपसे चिपक कर बहुत रोया। हम और डाक्टर अनीता भी रो पड़े । अचानक वह थोड़ा सा सकपकाया, वह आपसे चिपक कर रोने में शायद भूल गया था कि हम दोनों वहीं खड़े हैं। वह एक दम से खड़ा हो गया और डाक्टर अनीता को धन्यवाद देते हुए बोला - यह मेरा विजिटिंग कार्ड है, इसको होश आते ही मुझे बता दीजिएगा। और मैं कह रहा हूँ इसको जल्द ही होश आऐगा।
यह कह कर वह चला गया।
डाक्टर अनीता ने हमसे कहा - अजब ही है यह दोनो प्रेमी। पता नही क्यो, अजनबी होते हुए भी, इनके लिए हर नियम तोड़ने से भी नहीं हिचकी मैंं। फिर जैसे उनको कुछ याद आया तो बोली..
डाक्टर अनीता - सिस्टर शोभा एक आइना भी इनके सामने रख दीजिए।
यह सब बता कर जब सिस्टर शोभा ने नेहा की तरफ देखा ,तो नेहा की आंखे आंसुओ से भरी पड़ी थी। ऐसा लगा वह रोते - रोते कुछ बोली। शायद गन्दे, खडूस
मैंने पूछा - नेहा मैंम, अगर आपको बुरा ना लगे तो उनका नाम पूछ सकती हूं, वह बोली हब्बू, फिर खुद ही हंस दी और बोली अनुराग । उनका नाम अनुराग है।
इतनी देर में डाक्टर अनीता भी वहां आ गई और बोली यह तो चमत्कार ही हो गया। नेहा, हम सबने तो उम्मीद छोड़ दी थी तुम्हारे बचने की। कल अचानक वह आया और एक सिर्फ उसको ही विश्वास था कि तुम बचोगी । गजब है तुम दोनों का प्यार। आज से पहले ,रुहानी रिश्तो पर बिल्कुल भी विश्वास नहीं था, मगर आज हो गया। तुम दोनों का अनाम रिश्ता, जो समाज के सारे बंधनो से मुक्त, मगर फिर भी तुम दोनों की आत्मा एक दूसरे से इतने अटूट धागे से बंधी हुई। तुम्हें पता है, वह यहां अपने किसी दोस्त के रिश्तेदार को देखने आया था, जिनका कमरा तुम्हारे बगल वाला ही है। उसने इस कमरे से जाते हुये, तुम्हारे इत्र की खुशबू से, तुम्हारे यहां होने का अनुमान लगाया। वह सीधा रिसेप्शनिस्ट के पास गया और बोला रूम नंबर 3 में क्या नेहा एडमिट है ?
इतने साल बाद भी वह तुम्हें तुम्हारे इत्र से पहचान गया, इससे पता चलता है कि कितना गहरा था तुम दोनों का रिश्ता, इस पर नेहा बोली - मैंम था नही है, हम भले मिले नहीं कुछ साल, मगर दिल से, दिमाग से, आत्मा से मैं उसके सिवा किसी और की नहीं हो सकी।
नेहा यह सब कह ही रही थी कि अचानक उसे अपने हाथों पर कुछ बूंदो के गिरने का एहसास हुआ, यह बूंदे आंसू नहीं थे, सालो से मन मे दबी, छिपी भावनाएं थी, जो पिघल रही थी। नेहा धीरे से बुदबुदाई - हब्बू। उस निर्मल सन्नाटे को चीरती हुई एक मधम सी आवाज़ आई - मोटी, साली, कुतिया।