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Laxmi Yadav

Drama

3  

Laxmi Yadav

Drama

अमलतास

अमलतास

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170

आज सबेरे से ही मुहल्ले मे हर कही लोगों का समूह इमली का ही जिक्र करने में लगा था। सुरभि अपनी परछती में खड़े होकर अपने आजानुलुम्बित केश सुखा रही थी। उसने भी अपने मंझले देवर के मुख से सुना कि इमली की तबीयत ज्यादा खराब है। भोर में उसे लेकर उसके परिवार वाले अस्पताल गए है। पर इसके साथ एक और अफवाह फैल रही कि इमली को जहर दिया गया..... 


सुरभि यादों के गलियारे में विचरण करने लगी, 

इमली नाम लेते ही एक हँसती खिलखिलाती, गोरी चिट्टी, सब ओर दौड़कर उधम मचाने वाली और फूलों व पशुओं से प्यार करने वाली परी समान बच्ची का चेहरा आ जाता है। इमली का जन्म तब हुआ जब मैं नई नवेली दुल्हन थी। इमली की दादी आई थी बर्फी देकर अपने घर लक्ष्मी आगमन की खुश खबरी देने। मेरी सास और मैं नामकरण मे उनके घर गए थे। बासमती भाभी तो परी समान बेटी को पाकर फुला नहीं समा रही थी। आखिर तीन बेटों के बाद आँचल मे जन्मी थी ये बच्ची। कहते है तीसरी बेटी राज कराती है माता पिता का भाग्य संवारने आती है। भगवान ने उसे गजब की खूबसूरती दी थी। थोड़ी बड़ी हुई तो ज्यादातर मेरे ही यहाँ खेलती थी। उसे अमलतास के पीले रंग के फूल बहुत पसंद थे। वो अक्सर अपने गुलाबी छोटी सी फ्रॉक में फूल चुनकर ले आती थी। मैं भी फूलों का सब गहना बना कर उसे पहनाकर सजाती थी। फूलों का ताज, कंगन, हार और पायल यह सब पहन कर खिलखिलाती थी तो स्वर्ग से उतरी परी लगती थी। फिर वह स्कूल जाने लगी। तीनों भाई की लाडली थी वो। तीसरी कक्षा तक वो सामान्य थी। पर एक दिन स्कूल की सीढ़ियों से गिर गई। तीन दिन बेहोश रहने के बाद उसे होश तो आया पर डॉक्टर ने जो इमली के बीमारी के बारे में बताया उसे सुनकर पूरे परिवार के होश उड़ गये। डॉक्टर के अनुसार सीढ़ियों से गिरने की वजह से इमली के मस्तिष्क की नस दब गई। इस वजह से इमली का शरीर तो प्राकृतिक रूप से विकसित होगा पर मस्तिष्क का विकास नहीं होगा। उसके बाद से इमली की जिंदगी बदल गई.... 

थोड़े दिनों में इमली का नाम पगली में बदल गया। स्कूल जाना बंद हो गया। सब संगी साथी बड़े होकर उससे बिछड़ गये। इमली की मासूम शरारत अब परिवार के चिढ़ में बदल गई। मेरा घर तो बेचारी मानो भूल ही गई थी। जो अमलतास के फूल उसे बेहद प्रिय थे, उसे वो देख भी नही पाती थी। एक दिन मैं उनके घर गई वो पीले फूल लेकर इस आस में की शायद एक बार फिर उसकी खिलखिलाहट देख सकूँ। मैंने देखा इमली को एक कमरे मे बांध कर रखा था। मैंने उसे अमलतास के पीले फूल दिखाये। उसके हाथ खोले पर वो बुरी तरह उन फूलों को नोचने लगी। मैं वहाँ से चली आई क्योंकि मुझसे वह दृश्य देखा ना गया। 

समय अपनी गति से चलता रहा। सभी भाइयों की शादी हो गई और वो अलग होते गए। बासमती भाभी अकेली अपनी अविकसित जवान बेटी के साथ रह रही थी। उनके पति भी परलोक सिधार गए थे। पर उन्होंने इमली के नाम अपनी पूरी पेंशन की राशि, जीवन बीमा की रकम और घर कर गए थे। इसलिए बासमती भाभी को काफी राहत थी। पर भाइयों को बहुत तकलीफ होती थी। शायद इसीलिए ये अफवाह फैल रही थी। 

अचानक मेरे देवर की आवाज़ मेरे कानों में आई " भाभी, इमली गुजर गई... " सुरभि की तंद्रा भंग हुई। 

वो देख रही थी की कफन में सोई इमली मानो अभी जन्मी बच्ची है। जैसे वो कह रही हो "मैं जीना चाहती थी पर..... "

जैसे ही इमली का शव गली से गुजरने लगा वैसे ही हवा का झोंका आया और अमलतास के पीले फूल बरसने लगे....... 

कोई समझे ना समझे पर इमली का अमलतास के फूलों का प्यार और फूलो से सजी आसमां की परी इमली सुरभि की यादों में सदा के लिए समा गई..... 



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