Jagrati Verma

Drama Tragedy Thriller

4  

Jagrati Verma

Drama Tragedy Thriller

अमीरा(भाग-२)

अमीरा(भाग-२)

4 mins
247


आंखों में अपनी बेटी से मिलने की खुशी थी तो मन में एक बोझ भी था। सोचता कितने सालों बाद वह अमीरा से कैसे मिलेगा? उसके पूछने पर कि वह इतने दिनों तक कहां था कैसे जवाब देगा उसे और क्या वह पूछेगी? क्या उसे याद भी होगा वह कौन है? कहीं वह अपने अब्बू को भूल तो नहीं गई होगी ? पर रहमान अपने आप को यह कह कर मना लेता कि देखना उसकी बेटी उसे मिलते ही अब्बू कह कर उसके गले लिपट जाएगी।

कई सालों बाद ट्रैफिक का शोर, आसपास की भीड़, सिग्नल पर जोर जोर से चिल्ला कर सामान बेचने वाले,  और एक दूसरे को धक्का दे दे कर भागते लोग, ये सब रहमान को बड़ा विचलित कर रहा था। तेजी से चलते हुए रहमान कम भीड़ वाले इलाके  में आ गया।आसमान में धुंध के पीछे छुपे सूरज को देखकर रहमान ने अंदाजा लगाया कि लगभग ग्यारह बज रहे होंगे। सर्दी का मौसम था। धूप बिल्कुल तेज न थी। 

जैसे-जैसे रहमान आगे बढ़ रहा था उसे अपने बीते दिन और साफ नजर आ रहे थे। यही समय रहा होगा जब उसकी जिंदगी भी ऐसी धुंधली पड़ने लगी थी। रहमान के हंसती खेलती जिंदगी में जैसे श्राप लग गया था। अमीरा की अम्मी बीमार  पड़ गई थी। कितने हकीमो को दिखाया, हर तरह की दवाई कराई। रहमान का कोई पास का रिश्तेदार भी न था कि किसी से उधार मांग पाता । उसके ससुराल वालों से भी उसकी कई बाहर लड़ाई हुई थी तो वह भी उससे कुछ मतलब ना रखते थे। पड़ोस में उसके बूढ़े चाचा असीम मियां रहते थे। उनसे जो बन पाता मदद कर देते, कभी अमीरा का ध्यान रख लेते तो कभी कुछ जरूरी सामान ले के दे जाते थे।

 रहमान के पास जितना था सब इलाज में लगा दिया रहमान की साइकिल चली गई, फिर घर का बाकी सामान भी एक-एक करके बिक गया। मगर बिचारी की हालत में  कुछ सुधार ना आया। उसकी हालत दिन-ब-दिन बिगड़ती चली गई। फिर एक सुबह उसने अपनी आंखें हमेशा के लिए बंद कर ली।

अमीरा अपनी अम्मी के पास बैठी रो रही थी। पड़ोस की कुछ औरतें भी आ गई थी। घर में आटे दाल के भी पैसे ना बचे थे। कफन और क्रिया कर्म के पैसे कहां से लाता। पहले सोचा कि पड़ोसियों से पैसे उधार मांग ले मगर फिर कुछ और सोचकर अपनी फैक्ट्री की तरफ चल दिया। रास्ते में फैक्ट्री के मालिक का घर पड़ता था। उसने सोचा कि मालिक से एक महीने की तनख्वाह उधार मांग लेगा। वहां पहुंचने पर पाया कि मालिक अपनी गाड़ी में बैठकर कहीं जा रहे थे। कार रोकने की कोशिश की, कुछ दूर तक पीछे भागा भी मगर कोई फायदा ना हुआ।  रहमान फिर मैनेजर के घर की तरफ चल दिया। वैसे तो मैनेजर बहुत गर्म दिमाग का इंसान था मगर मुश्किल के वक्त तो कुछ मदद कर देता। शायद 15 दिन की तनख्वाह ही  दे दे। उस दिन मैनेजर बहुत गुस्से में था  रहमान से कड़ी आवाज में बोला "क्या काम है! " रहमान हाथ जोड़कर बोला, "साहब, पैसे की जरूरत है कुछ उधार मिल जाता। बहुत जरूरी…" रहमान ने अपनी बात पूरी भी ना करी थी कि  मैनेजर उस पर गुर्राया, " तुम छोटे लोग जितना कमाते नहीं उससे ज्यादा तो खर्च कर देते हो, अपनी औकात से ज्यादा पैसे उड़ाने से पहले तो सोचते नहीं फिर एडवांस मांगने चले आओ क्या समझ के रखा है कि खैरात बट रही है यहां? जाओ अभी यहां से मेरा दिमाग खराब मत करो"  यह सब सुनने के बाद रहमान में आगे कुछ कहने   हिम्मत ना बची, उसका गला भर आया ।फिर वहां से भी निराश होकर चल दिया।

यह सब याद करके रमजान की आंखें भर आई। अभी वह उसी चौराहे के पास आ पहुंचा था जहां से पुलिस उसे पकड़ कर ले गई थी। मालिक के यहां से खाली हाथ घर लौटने की हिम्मत ना थी। आंखों के सामने  से उसकी बीवी की लाश और भूखी बेटी का चेहरा हटने का नाम ही नहीं ले रहा था। उसे कुछ नहीं सूझ रहा था कि वह क्या करें। कुछ दूर चला ही होगा कि उसे अपने सामने हाथ में रुपयों से भरा बटुआ लिए एक आदमी दिखा। दुकान वाले को उसके पैसे देकर वो बटुवा बंद ही कर रहा था कि रहमान को पता नहीं क्या सूझा उसने झपट्टा मारकर उस आदमी का बटुआ ले लिया और भागने लगा। वह आदमी भी उसका पीछा करने लगा। कुछ दूर तक दोनों भागते रहे फिर उस आदमी ने पीछे से धक्का देकर रहमान को गिरा दिया और उसे मारने लगा। रहमान ने खुद को बचाने की कोशिश में पास पड़ा खंजर उस आदमी को  मार दिया।  तब तक आसपास के लोग आ गए  उन्होंने रहमान को पुलिस के हवाले कर दिया। रहमान ने अपना जुर्म तुरंत कबूल कर लिया।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama