Jagrati Verma

Drama Thriller

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Jagrati Verma

Drama Thriller

अमीरा (भाग-१)

अमीरा (भाग-१)

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रहमान आज बारह बरस बाद अपनी बेटी से मिलने जा रहा था। इन बारह बरसों में एक पल भी ऐसा नहीं था जब उसे अपनी बेटी की याद न आई हो। "अमीरा अब सोलह बरस की हो गई होगी", रहमान ने एक बार फिर अपनी अंगुलियों से गिनकर हिसाब करा।

यूँ तो बेटी के पैदा होने के बाद रहमान के खर्चे बढ़ गये थे पर अपनी बेटी का चेहरा देखकर वह खुद को बड़ा अमीर महसूस करता था। बस इसी खुशी में उसका नाम बडे़ प्यार से उसका नाम अमीरा रख दिया था। 

बात बात में गुस्सा करने वाला रहमान अब खुशमिजाज हो गया था, हमेशा चिड़चिड़े रहने वाले रहने वाले रहमान के लिए ये धैर्य का पाठ सीखना किसी बड़े तजुर्बे से कम न था।

अब मोहल्ले के बच्चों ने रहमान से डरना बंद कर दिया था। जब वह अमीरा के लिए जलेबी लाता तो उसके साथ खेल रहे बच्चों में भी कुछ बांट देता। अब वह रोज शाम को काम से लौटते वक्त रास्ते से कुछ ना कुछ खरीद  लाता  कभी किसी ने प्रकार का खिलौना देखता तो खरीद लेता कभी कोई चमचमाती फ्रॉक ले आता  तो कभी घर का दूसरा जरूरी सामान जितना कमाता उतना अपने परिवार पर खर्च कर देता। उसकी पत्नी भी अब बड़ी खुश रहती। आस पड़ोस में रहमान के  इस  बर्ताव की तारीफ करते ना थकती थी।

 अमीरा अब चार बरस की हो गई थी। पूरे दिन घर में इधर से उधर करती रहती। अपनी तोतली भाषा में रहमान को अब्बू कहकर बुलाती तो रहमान को ऐसे लगता जैसे उसने न जाने कौन सी बड़ी उपलब्धि पा ली हो। जब रहमान कुछ करने बैठता तो उसको सामान ला ला कर देती रहती। रहमान बड़े गर्व से कहता "देखो मेरी बेटी मेरा कितना ध्यान रखती है, अपने अब्बू की कितनी मदद करती है।"  खैर मदद तो कम ही करती थी उल्टा काम और बढ़ा देती। जब किसी शैतानी पर अमीरा की अम्मी उसे डाटती तो झट जाकर रहमान से चिपक जाती।

उसे लगता जैसे यह सब कल ही की तो बात हो। आंख बंद करता तो अमीरा का मासूम चेहरा उसके सामने आ जाता, उसकी मीठी तोतली आवाज और खिलखिलाती हंसी रहमान की गंभीर चेहरे में खुशी छलक जाती। रहमान ये सब सोचने में व्यस्त था कि तभी  जेल का दरवाजा खुला। "तुम्हारी रिहाई का वक्त हो गया है" जेलर साहब ने कहा । रहमान अपनी कोठरी से बाहर आ गया, कागजों पर हस्ताक्षर किए और फिर धीमे कदमों से चलते हुए बाहर आ गया।


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