Archana kochar Sugandha

Tragedy

4  

Archana kochar Sugandha

Tragedy

अलविदा

अलविदा

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एक साथ घर से निकली नीरज और ईशान की अर्थियों ने घर वालों के साथ-साथ पूरा शहर भी सकते में आ गया। साथ मिला नीरज का आत्महत्या का नोट। प्रिया! मैं हमेशा के लिए तुम्हारी जिंदगी से जा रहा हूँ और साथ ले जा रहा हूँ हमारे प्यार की एकमात्र निशानी अपने पुत्र ईशान को मुझे माफ करना। उसे मैं अपने साथ इसलिए लेकर जा रहा हूँ ताकि तुम्हें भी सच्चाई की कीमत पता चले कि पुत्र वियोग में जन्म दात्री का जीना कैसा होता हैं। जिस दर्द को मेरे जीते जी मेरे माँ-बाप ने जिया हैं, उस दर्द को तुम भी जी कर देखो।थक गया था मैं तुम्हारी और तुम्हारे माँ-बाप की जिल्लत सहते- सहते। थका हारा कभी मैं घर आया, तुम्हारे जुल्फों के आगोश में ढूँढता प्यार और सुकून के दो पल, लेकिन हमेशा नसीब में आई तुम्हारी बेरुखी जिल्लत और बात-बात पर तुम्हारा एहसास करवाना कि मेरी जिंदगी केवल तुम्हारे द्वारा फेंके गए रोटी के दो टुकड़ों की मोहताज़ है। माँ-बाप की आँखों में छुपा दर्द और सच्चे प्यार का एहसास मुझे जीने नहीं देता था। बेटा घर तो घर होता है, भले ही घर में रुखा सुखा था, लेकिन इज्जत का तो था। उनका यह कहना कितना सच था, लेकिन मेरी ही अक्ल पर पत्थर पड़े हुए थे जो मैं उनके इस सच को हमेशा ठुकराता रहा और मुझे नहीं पता था कि मुझे इस सच की इतनी बड़ी कीमत मुझे चुकानी पड़ेगी। उनसे मिलने के लिए मुझे तुम्हारी इजाजत लेनी पड़ती थी, जो तुमने मुझे कभी नहीं दी ।पैसों की खातिर माँ-बाप की ममता को ताक पर रखना, अब मुझे आत्मग्लानि का आभास करवाता था जो मेरी सहनशक्ति से परे हो गया था। सारा दिन तुम्हारे पापा के व्यापार के लिए खटता रहता था, लाभ चाहे कितना भी हुआ हो, उसका उन्होंने कभी भी आभार व्यक्त नहीं किया। लेकिन अगर जरा सा भी नुकसान हुआ, तो तुम्हारे मम्मा-पापा का मुझ पर ऊँची-ऊँची आवाज़ में चिल्लाना क्या नीरज! तुम से एक भी बिजनेस डील ढंग से नहीं होती है लाखों का नुकसान करवा दिया। हमारी ही रोटियों पर पलने वाले कुत्ते हो और हमारे ही प्रति वफादार नहीं हो। हद तो तब हो गई घर जब घर का नौकर शंकर भी इसी रंग में रंगने लगा--। प्रिया! जब तक तुम मुझे वापस पलट कर कुछ कहना और सुनना चाहोगी मैं तुमसे बहुत दूर जा चुका होऊंगा। बस अब और नहीं--- मुझे माफ---- कर देना---।

अलविदा तुम्हारा केवल तुम्हारा

नीरज।


 



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