अलक्ष्मी की कहानी
अलक्ष्मी की कहानी
समुद्र मंथन के समय जब लक्ष्मी जी प्रकट हुई तब कौस्तुभ मणि और लक्ष्मी जी विष्णु जी को मिले। जब विष्णु जी लक्ष्मी जी को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करने लगे,तब लक्ष्मी जी ने कहा मेरी एक बड़ी बहन अलक्ष्मी भी है और सनातन धर्म में कहा गया है कि पहले बड़ी बहन का विवाह होने के बाद ही छोटी बहन का विवाह होता है।आप पहले मेरी बड़ी बहन अलक्ष्मी का विवाह संपन्न कराइए। तब एक उद्दालक नामक तपस्वी से विष्णु जी ने अलक्ष्मी का विवाह कर दिया।अलक्ष्मी के लाल नेत्र,दुर्बल शरीर रूखे बाल थे।
किंतु विष्णु जी के वाक्य के अनुसार उद्दालक ने उन से विवाह किया और उन्हें अपने आश्रम ले गए।आश्रम में हवन,सामग्री,वेद मंत्र इन सबके होने के कारण अलक्ष्मी को परेशानी हुई, उसने कहा यह स्थान मेरे रहने योग्य नहीं है।जहां यज्ञ दान आदि ,अतिथियों का सत्कार और पति पत्नी प्रेम से रहें मैं वहां नहीं रह सकती,जहां दिन-रात लड़ाई झगड़े हो,अतिथियों का सत्कार ना होता हो मुझे ऐसा स्थान प्रिय है,तो उद्दालक अलक्ष्मी के साथ उसके लिए निवास स्थान ढूंढने के लिए निकले और उसको एक पीपल के वृक्ष के नीचे बैठा दिया कहा कि जब तक मैं वापस ना लौटूं तब तक तुम यहीं पर रहना ,जैसे ही कुछ समय बीत गया अलक्ष्मी वहीं बैठी रही ,किंतु उद्दालक वापस नहीं आए। अलक्ष्मी ने विलाप करना शुरू किया ,और उसका विलाप सुनकर लक्ष्मी जी ने विष्णु जी से कहा कि मेरी बहन किसी परेशानी में है उसके रुदन की आवाज आ रही है तब विष्णु जी और लक्ष्मी जी अलक्ष्मी के पास आए और विष्णु जी ने अलक्ष्मी को कहा की पीपल का वृक्ष भी मेरा ही रूप है तुम इसी वृक्ष पर निवास करो।
अब जो तुम्हारी नित्य पूजा करेगा तुम उनकी सब मनोकामना पूर्ण करो। तभी से अलक्ष्मी का निवास स्थान पीपल के वृक्ष पर है।विष्णु जी का स्वरुप होने के कारण और लक्ष्मी जी की बड़ी बहन का निवास स्थान होने के कारण पीपल का वृक्ष हमारे लिए पूजनीय है।
