झूठी पतंग
झूठी पतंग


जब हम छोटे बच्चे थे बड़े बड़ों को देखकर पतंग उड़ाने का बहुत मन करता था आसमान में चारों और पतंगे ही पतंगे उड़ती रहती थी रंग बिरंगी पतंगें। पूरा आसमान रंगीन हुआ करता था !
बेशक पतंग उड़ाने नहीं आती थी फिर भी जिद करते थे कि पैसे दो पतंग लाएंगे और दादी हमारी हमें प्लास्टिक की पन्नी में या कागज में धागा बांध कर दे देती थी कि लो पतंग उड़ा लो !
हम आगे भागते रहते और हमारा कागज धागे के साथ उड़ता रहता था!!वह जमाना भी कुछ और था वह बसंत भी कुछ और था तब दादी की खुशी में ही हमारी खुशी थी
मीठे चावल बना कर और झूठ मूठ की पतंग उड़ा करी हम बसंत पंचमी मना लिया करते थे।