अलार्म
अलार्म


आज के व्यस्त एवं थका देने वाले कार्यक्रम के बाद हरि जैसे ही घर पहुँचा सीधे ही बिस्तर की ओर बढ़ चला। प्रायः आम सा लगने वाला बिस्तर आज उसे स्वर्ग के किसी सिंहासन से कम न लग रहा था, वो बिस्तर की तरफ़ ऐसे बढ़ रहा था मानो कोई शिकारी अपने शिकार के तरफ। बिस्तर पर पहुँचते ही वो या ये कह ले उसका शरीर उस पर लेट गया क्योंकि उसकी आत्मा तो पहले से ही नींद में थी। लेटते ही उसे नींद आ गई और कुछ देर के लिए वो संसार के सभी विचारों और प्रभावों से दूर चला गया।
दरवाजे पर हो रही दस्तक से उसकी नींद टूटी और वो अलसाया हुआ सा दरवाजे के तरफ बढ़ चला। दरवाजा खोलने पर सामने एक प्रौढ़ महिला खड़ी थी, जो बहुत ही भयभीत और डरी हुई लग रही थी, उसके शरीर पर जगह जगह घाव हो गए थे और मारने पीटने से बनने वाले निशान भी थे, पैरों में चप्पलें नहींथी,पैर की एड़िया फ़टी हुई थी, बदन पर पुरानी सी साड़ी थी वो भी जगह जगह से फ़टी हुई। जब हरि ने सामने उस महिला को देखा तो सोचने लगा, यार चैन से आदमी सो भी नहींसकता है, अब पता नहींकौन है ये और यहाँ न जाने क्या लेने चली आई है। लोगों को समय का कोई ध्यान नहींहोता अब सुबह सुबह 4 बजे भी कोई किसी के घर आता है क्या?अभी तो मुर्गा भी न जगा होगा। एक बारगी तो उसके मन में आया की उसे जाने के लिए कह दे पर फिर उसकी दयनीय हालत को देखकर उसका मन द्रवित हो गया और गुस्सा काफ़ूर। मन में घृणा और आवेश के जगह दया और करुणा के भाव उमड़ पड़े।कुर्सी को उसके तरफ करते हुए हरि ने उसे बैठने को कहा, एक गिलास ठंडा पानी देते हुए उसने कहा आराम से बैठ जाइए डरने की कोई बात नहींहै। थोड़ी देर बाद उसके स्थिर होने पर हरि ने उससे प्रश्न किया आपकी ये हालत किसने की है। यह सुनते ही वो फूट फूट कर रोने लगी और रोते हुए ही करुणा मिश्रित आवाज में बोली मेरे बच्चों ने। हरि को उसके बच्चों पर बहुत क्रोध आ रहा था इस समय। अपने मैले आँचल से अपने आंसू पोछते हुए उसने कहा की मेरे अपने बच्चे आपस मे लड़ते झगड़ते रहते हैं, मिल जुल कर नहींरहते है कभी जात पात के नाम पर, कभी धर्म के नाम पर, कभी भाषा और संस्कृति के नाम पर। यह सुन कर हरि का माथा पूरी तरह से चकरा गया उसने सोचा यार एक औरत के बच्चे वो भी अलग अलग जात और मजहब के। फिर उसने सोचा की हो सकता है ये किसी अनाथाश्रम की संचालिका हो, जो अपनों से बिछड़े बच्चों को संभालती हो और उनके आपस मे लड़ने से दुःखी है या फिर बहुत सम्भावनाये है की मुझसे ही सुनने में कोई भूल हो गई है, आधी नींद में होने के कारण मैं सुन नहींपाया होऊंगा। मन में चल रहे सवालों के सही उत्तर जानने के लिए हरि ने उससे एक और प्रश्न पूछा, की आप कौन हैं? अपनी उसी पुरानी करुणा मिश्रित आवाज़ में उसने जवाब दिया बेटा मैं भारत माता हूँ।
"क्या ,भारत माता ?"हरि चौंक उठा, विस्मय के कारण उसका मुंह खुला ही रहा और कुछ क्षणों के लिए मस्तिष्क बन्द हो गया। कुछ पल पश्चात चेतना लौटने पर हरि ने कहा क्या मजाक कर रही हैं?इस समय सच सच बताइये कौन हैं आप? इस बार हरि के प्रश्न में झुंझलाहट थी। उस महिला ने फिर क
हा "हाँ बेटा मैं भारत माता ही हूँ, जिसे तुमलोग हिंदुस्तान, आर्यावर्त, इंडिया, भारतवर्ष जैसे नामों से जानते हो और मैं कोई मजाक नहींकर रही हूँ।"
हरि इक्कीसवीं सदी में पैदा हुआ विज्ञान का छात्र था, उसका तार्किक मस्तिष्क ऐसा मानने को तैयार ही न था की ऐसा भी कुछ सच में हो सकता है। और मान लो अगर भारत माता होती भी तो जैसी स्वतन्त्रता आंदोलन के समय राजा रवि वर्मा जैसे चित्रकारों ने बताया था वैसी होती, उनके चेहरे पर तेज होता, स्वर्णाभूषणों से सुसज्जित होती, सर पर मुकुट होता जिसमे बेशकीमती रत्न जड़े होते। ये कहा से भारत माता हो सकती है यहाँ तो सब उल्टा है। उस महिला ने पुनः कहा बेटा "मैं जानती हूं कि तुम्हें मुझ पर विश्वास नहींहो रहा है पर मैं ही भारत माता हूँ। जब मैं फिरंगियों के कब्जे में थी तो बेड़ियों में जकड़ी हुई थी, आज बेडियां तो नहींहै पर ये जीवन बहुत ही कष्टमय है। तुम सोच रहे होंगे की मेरी इस दुर्दशा के पीछे क्या कहानी है, मेरे स्वर्णाभूषण, मुकुट एवं मणियां कहाँ चली गई। मेरे स्वर्णाभूषण यहाँ की आम जनता की संपदा थी जो मेरे ही कुछ नालायक बच्चे जिन्हें तुम भ्रष्टाचारी कहते हो ने स्विस बैंकों में छुपा रखें है। अब यहाँ योग्यता नहींधनबल, बाहुबल और मतबल मायने रखता है इसी के कारण मैं इतनी जर्जर और कमजोर हो चुकी हूँ। हरि ने कहाँ अच्छा ये धनबल और बाहुबल तो समझ मे आया पर मतबल का क्या मतलब है। मतबल मतलब तुम्हारी भाषा में वोटबैंक, आज सभी राजनेताओ को विकास के नाम पर केवल अपने वोटबैंक को मजबूत करना है। मेरी बच्चियां सुरक्षित नहींहै उन पर दिन प्रतिदिन अत्याचार हो रहे है कही घरेलू हिंसा, दहेज प्रताड़ना, कन्या भ्रूण हत्या, छेड़खानी, बलात्कार और न जाने क्या क्या इन्ही के कारण मेरे शरीर मे जगह जगह घाव हो गए है। नित होते दंगो और संप्रदयायिक टकराव के कारण मेरे पैरों की एड़ियां फ़टी हुई है। मेरे बच्चों का अनैतिक, व्यभिचारी और दुष्ट होंने के कारण मेरा चेहरा निस्तेज हो गया है। संसाधनों के अंधाधुंध दोहन के कारण मेरे वस्त्र पुराने और मैले हो गए है। वनों और वृक्षो का कटना और क्रांकीट का बढ़ना ही मेरे आँखों के नीचे के धब्बो का कारक है। और रही बात बहुमूल्य रत्नों और मणियों की तो उनमें से कुछ पलायन कर गए और जो बचें है वो पाप की आंधी में कही दब गए है। इससे बेहतर तो मैं जंजीरो में ही थी कम से कम मेरे बच्चे एकजुट तो थे।" हरि ध्यानपूर्वक सुनता रहा फिर उसने कहा "बात तो सही कह रही है आप पर आपके पुरातन गौरव को वापस लाने का कोई तो उपाय होगा।"
" उपाय हाँ है ना उपाय। तुम्हारे जैसे देश के युवा नौजवान जिन्हें अपने देश से प्रेम है, जिन्हें अपने संस्कारो पर गर्व है, जो सही को सही और गलत को गलत कहने की हिम्मत रखते हो, जो किसी भी दल या राजनेता के अंधभक्त न हो, जो स्त्रियों का सम्मान करते हो, जो वासुधैव कुटुम्बकम के सिद्धांत को मानते हो, जो मानवता को अपना धर्म मानते हो, जिनकी सोच दायरों में सीमित न हो।" अचानक से अलार्म की ध्वनि से उसकी निद्रा टूटी और वह उठ कर बैठ गया।