अकेलापन
अकेलापन
सुबह 6:00 बजे दरवाजा खोला तो पता चला सामने वाले घर में रहने वाली कमला जी दुनिया को छोड़ कर जा चुकी हैं। उनके घर में उनकी दोनों बेटियां आ चुकीं थी।
हमको इस सोसाइटी के फ्लैट में आए केवल 2 साल ही हुए हैं। टीना और डब्बू की पढ़ाई, घर का सारा काम , पति का भी टूरिंग काम ही है इसलिए घर का भी सब कुछ मुझे ही संभालना होता है। मुझे वैसे भी बिना वजह इधर उधर बातें करने का शौक भी नहीं है क्योंकि जब भी समय मिलता है मैं अपने पति के दफ्तर के काफी काम को ऑनलाइन ही देखती रहती हूं। दोनों बच्चों के इम्तिहान नजदीक थे और वह अक्सर खेल में ही व्यस्त रहते थे। दोनो अक्सर बालकनी में जाकर बैठ जाते थे और फिर नीचे घूमते हुए अपने मित्रों से ही बात करने में व्यस्त हो जाते थे। उस दिन गुस्से में आकर मैंने बालकनी वाला जाली वाला ही नहीं दूसरा गेट भी बंद करके हर खिड़की पर पर्दा लगा दिया।
दूसरे ही दिन जब घर का दरवाजा खटका तो सामने कमला जी खड़ी थी। मैंने अपने सामने वाले घर की बालकनी में उन्हें बैठे हुए देखा था। नमस्ते माताजी अभिवादन करते हुए मैंने उन्हें अंदर आने को कहा तो उन्होंने बोला बेटा तुमने बालकनी वाली खिड़कियों और दरवाजे में पर्दा क्यों लगा दिया? अचानक से हुए इस प्रश्न से मैं हैरान हो उठी और इससे पहले कि मैं उनसे पूछती कि मैंने पर्दा तो अपने घर में लगाया है इससे आपको क्या फर्क पड़ता है? तभी वह बोलीं मेरी दोनों बेटियां भी दिल्ली और बहादुरगढ़ में ही रहती हैं। मेरे पति के देहांत हुए 7 साल हो चुके हैं। तुमसे पहले जो परिवार रहता था उनसे भी मेरी अच्छी दोस्ती थी। क्योंकि मैं अकेली रहती हूं और ज्यादा बाहर निकल नहीं पाती तो कई बार बहुत अकेलापन लगता है। बालकनी में से जब तुम्हारे बच्चे खेलते रहते हैं बातें करते रहते हैं तो मुझे लगता है कि मैं इसी परिवार का ही हिस्सा हूं। कल से जब से तुमने इस बालकनी में पर्दा लगा कर इस दरवाजे को बंद कर दिया तो मेरा अपने ही घर में दम सा घुट रहा है। अगर तुम्हें बुरा ना लगे तो इस बालकनी वाले दरवाजे पर पर्दे मत लगाओ। मैं बहुत हैरान थी! हमारे ही परिवार में कोई और सदस्य हैं जिससे कि मैं अनजान थी। मैंने अपने बच्चों को भी माताजी से मिलवाया और बच्चों ने भी उन्हें नानी कहना शुरू कर दिया।
उसके बाद दिन में एक दो बार उनसे हाल-चाल पूछना मैंने अपनी दिनचर्या में ही शामिल कर लिया था। घर में जब भी कोई त्यौहार मनता या अच्छी चीज बनती तो मैं कमला जी के घर पर जरूर उसे भिजवा देती। कमला जी भी घर के सामान के साथ-साथ बच्चों के लिए चॉकलेट या कुछ भी मंगवा कर रखती थी। उनकी बेटियां जब भी आती थी तो वह उनसे दोनों बच्चों के लिए खिलौने भी मंगवा लेती थी। मैं तो हैरान थी जब बच्चों के लिए उन्होंने फुटबॉल और बैडमिंटन के बैट वगैरह गिफ्ट करें। अभी 2 दिन पहले ही तो बच्चे मुझसे वह लाने की जिद कर रहे थे। शायद कमला जी ने उनकी बातें सुन ली हो इसलिए अपनी बेटी से कहकर वह सामान मंगवा लिया हो। कमला जी के पति की पेंशन उनके अकाउंट में आती थी। उनकी दोनों बेटियां उनका बहुत ख्याल रखती थी और उन्हें कोई भी चीज की जरूरत हो तो वह कोई भी ऑनलाइन साइट से मंगवा देती थी।
वह हमारे परिवार का हिस्सा ही बन चुकी थी। उनके कारण अब जब मैं कहीं बाहर जाती तो मुझे बच्चों की सुरक्षा की ज्यादा चिंता नहीं होती थी क्योंकि वह अपनी बालकनी से ही बच्चों का बहुत ख्याल रखतीं थी। वह तो सुबह जल्दी उठ जाती थी और बालकनी में ही बैठ कर अपना योगा वगैरा करते हुए बच्चों के दिखने का इंतजार करती थी। इन 2 सालों में हमको लगता था कि हमारा परिवार चार नहीं 5 लोगों का है। वह भी हमेशा यही कहती थी कि तुम्हारा परिवार ही मेरा सहारा है अगर तुम लोग ना दिखो तो मेरा तो दम ही घुट जाता है। टीना तो अक्सर कह देती थी कि नानी फिर तुम यहां ही रह लो ना? कमला जी हंस कर कहती "अरे दोनों घरों को इकट्ठा हुआ ही मानो ,बालकनी से तुम दिखते तो हो।"
बच्चों के स्कूल की छुट्टियां हो रही थी और पति को बेंगलुरु जाना था। हमने भी उनके साथ बेंगलुरु ही जाने का फैसला किया ताकि हम वहां से मैसूर ऊटी वगैरा भी घूम कर आ सके। रात को ही हम 20 दिन बाद अपने फ्लैट में आए थे। सुबह उठकर कमला जी को अभिवादन करने की सोच ही रही थी कि ह्रदय गति रुकने से उनकी मृत्यु की खबर सुनी सुनकर मुझे एक झटका सा लगा। उठने के बाद जब बच्चे बालकनी में गए और उन्हें कमला जी के ना रहने का पता पड़ा तो टीना डब्बू ने मुझसे कहा "मम्मी क्या हम लोगों के जाने के बाद नानी का दम घुट गया था?" बच्चों का सवाल सुनकर में भी सोच में पड़ गई---- और दरवाजा खोल कर सामने वाले घर में उनकी बेटियों को सांत्वना देने को चली गई।
