Kavi Vijay Kumar Vidrohi

Inspirational Others Tragedy

3.7  

Kavi Vijay Kumar Vidrohi

Inspirational Others Tragedy

अजन्मी

अजन्मी

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अंधलोक, ये जलमंडल है, मैं जिस घर में सोई हूँ ।

धड़कन सुनती रहती हूँ, सुंदर सपनों में खोई हूँ ।

मैं मम्मी जैसी लगती या पापा की राजदुलारी हूँ ।

मैं ही तो हूँ जो उनके, सूने आँगन की फुलवारी हूँ  ।

दुनिया में जब मैं आऊँगी तो, मम्मी-पापा देखूँगी ।

भैया, दीदी, दादी, नानी और चाची-चाचा देखूँगी ।

सब कितना अच्छा है ना, मैं अपने घर में लेटी हूँ ।

कहते हैं दुनिया बुरी बहुत, देखो ज़िंदा हूँ! बेटी हूँ !  

इक रोज़ सुना मैंने देखो, मुझको बेटे की आशा है ।

बेटा ही मेरे वंशबीज की, पूर्णसत्य परिभाषा है ।

जाने कैसी बात चली, क्यूँ रार हुआ फिर पापा से ।

मम्मी थक के बैठ गयी, हामी भर घोर निराशा से ।

दिल की धड़कन तेज़ हुई, मेरा तन मुझपर बोझ हुआ ।

पता नहीं क्यूँ मम्मी-पापा को, ना कुछ संकोच हुआ ।

मेरे सारे सुंदर सपने अब, मुझसे नाता तोड़ गऐ ।

 भैया-दीदी, दादी-नानी, मुझको मरने को छोड़ गऐ ।

वो मेरा अंतिम दिन था, मैं सुंदर सपनों में खोई थी ।

जब मेरा हश्र निकट आया, मैं पापा-पापा रोई थी ।

मेरी दुनिया जलमग्न नहीं थी, पूरी सूखी-सूखी थी ।

वो कालस्वरूपा कैंची अब, मेरे उस तन की भूखी थी ।

जकडा पैर दर्द से चीखी, तुमको याद किया पापा ।

मेरी अदनी पायल का सपना, क्यूँ बर्बाद किया पापा ।

बस कंगन वाले हाथ बचे, बेपैर हो गयी थी पापा ।

मम्मी के अंदर मैं, अंगों का ढेर हो गयी थी पापा ।

हाथों को मेरे काट-पीट, कैंची गर्दन पर आन टिकी ।

रो-रोकर चीखें मार रही थी, बेटी तेरी कटी – पिटी ।

मेरी गर्दन को काट रही कैंची, मैं लेकिन ज़िन्दा थी ।

ना शर्मसार मम्मी-पापा, ना मानवता शर्मिंदा थी ।

  •  

तन की पीड़ा खत्म हुई लेकिन इस मन की बाक़ी थी ।

बस ऐसे ही बेमन से मैं कमरे के बाहर झाँकी थी ।

मेरे पप्पा के नयनों में इक मर्महीन संतोष दिखा ।

पता नहीं मम्मी-पापा को किसने ऐसा दिया सिखा ।

खत्म हुई मैं दुनिया से अब बेटी का क्या करना है ।

बेटी तो ऐसा शापितघट है जिसको हरदम भरना है ।

कत्लगाह से बाहर निकली मुझसे सहते नहीं बना ।  

बेज़ुबान हूँ लेकिन मुझसे अब चुप रहते नहीं बना ।

ना अग्निशिखाऐं देखीं ना हुई कबर में कहीं दफ़न ।

ना कंगन, पायल, टिकली ना भाग्य में मेरे रहा कफ़न ।

किस मज़हब ने इंसानों को ऐसे दूषित आमाल दिऐ ।

नन्हें कोमल तन के टुकड़े ‌कुत्तों के आगे डाल दिऐ ।  

मैंने देखा इक कुतिया को कचरे के ऊपर लेटी थी ।

वो अपने मम्मी-पापा की मेरे जैसी ही बेटी थी ।

ज़िंदा है, दुनिया में है, देखो वो भी इक बेटी है ।

वो अपने मम्मी पापा के पहलू में कैसी लेटी है ।

ऐ काश ! मैं भी यहीं कहीं ज़िंदा होती लेटी होती ।

उन ज़ल्लादों से बेहतर मैं इस कुतिया की बेटी होती ।

 

 

 


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