साँप और ओजकवि
साँप और ओजकवि
एक साँप ने हम को काट लिया ।
और मुश्किल से दो मिनट जिया ।
तिलमिलाती साँपात्मा हमें बोली ।
गुस्साई अपनी मनोव्यथा खोली ।
कहने लगी अरे! भाई ज़हरी ।
एक बात पूछूँ थोड़ी गहरी ।
ये ख़ून भरे कैसे जी पाते हो ।
मेरा विष पचा जाते हो ।
साँपों को बदनाम करवाते हो ।
सच बताना यार क्या खाते हो ?
हम बोले साँपू! कवि हैं हम ।
होश में आजा तोड़ दे भरम ।
हम आदमी हैं पर आम नहीं हैं ।
खुद्दारी रखते हैं,बेईमान नहीं हैं ।
भारत की आबो-हवा में जीते हैं ।
ज़हर खाते हैं और ज़हर पीते हैं ।
समस्याओं के हम नशे में रहते हैं ।
जो कोई न कह पाता हम कहते हैं ।
केवल एक ही मेरे ज़हर का मंत्र है ।
प्यारे!मेरे भारत देश में लोकतंत्र है ।
तुझसे बड़े फनवाले राष्ट्रभाग्य लिखते हैं ।
आधे पंडालों में आधे संसद में दिखते हैं ।