अगर ऐसा होता तो
अगर ऐसा होता तो
पटरी पर रुकती हुई ट्रेन से उतर कर देवदास पार्वती के घर के सामने तो पहुंच जाता है लेकिन चंद्रमुखी का निस्वार्थ प्रेम उसके कदम वहीं रोक लेता है। अपनी जेब से वो अधूरी माला और अधूरे पत्र निकाल गुलमोहर के पेड़ के नीचे रख वापस चल देता है चंद्रमुखी को समाज में उसका स्थान देने के लिए और पार्वती के प्रेम को सम्मान देने के लिए।
लेकिन क्या वाकई ऐसा होता अगर देवदास उस गुलमोहर के वृक्ष के नीचे पार्वती को आखिरी बार देखने की ख़्वाहिश को लिए यूँ ही नहीं मर जाता और पार्वती दरवाजा बंद होने से पहले ही उस तक पहुंच कर उसे जीने की उम्मीद दे देती?
नही, शायद कभी नहीं.....