अध्यात्म [23 जून]
अध्यात्म [23 जून]
मेरी प्यारी संगिनी
तुम मेरी अंतरात्मा से जुड़ी हुई हो, जैसे कि हमारे ठाकुर जी,,,,,
प्रभु की भक्ति, बिना सत्संग के अधूरा है, सत्संग में संत जनों और भक्त जनों के सानिध्य बैठकर ही हम, अध्यात्म को करीब से जान सकते हैं, हमारा यह जीवन जन कल्याण के लिए बना है, इसे यूँ ही जाया नहीं करना चाहिए, यह हमें अध्यात्म ही सिखाता है,,,,,
प्रभु की भक्ति और निरंतर उनके नामजप और सुमिरन से, हमारा मन पवित्र और निश्छल हो जाता है, छल कपट से हम दूर हो जाते हैं, और यही क्षण होता है हमारे परमानंद का, क्योंकि हमारे अंतःस्थल से भक्ति की धारा बहने लगती है,,,,,
आज का "जीवन संदेश"
अध्यात्म हमें सिखाता है प्रभु के साथ साथ, प्रभु के अंश, हमारे गुरुजन, माता पिता, भाई बंधु सभी से प्रेम करना,,,,,
आज के लिए बस इतना ही, मिलते हैं कल फिर से, मेरी "प्यारी संगिनी",,,,,,,
