अधूरी मोहब्बत
अधूरी मोहब्बत
एक थी दीवानी जो प्यार और मोहब्बत के नाम से कोसों दूर थी....
फिर उसको किसी से प्यार और दोस्ती हो गयी बन गया
जमाना उसके प्यार और दोस्ती का दुश्मन और जुदा वो दोनों हो गए चल पड़े अलग अलग राहों पर....
दर्द अपनों से ही मिल गए उसे
बेशुमार तनहा दिल तन्हा हम हो गए.....
वह दीवानी फिर यह सोचने लगी की काश हम मिले न होते तो दर्द अपनों से मिले न होते तो दर्द अपनों से मिले न होते तन्हा दिल तन्हा हम हुए न होते....
पर यह बंधन तो दिलो के होते है जो एक बार जुड़ जाए तो टूटते नहीं जब तक वो समझ पाती इस सच्चाई को देर बहुत हो चुकी थी। प्यार की कहानियाँ तो रहती अधूरी है यह तो ईश्वर की मर्ज़ी है और कोई चाह कर कुछ कर सकता नहीं है.....।
ऐ कंवलजीत तेरी कहानी भी तो मैंने लिखी अधूरी थी जब मैं अपनी कहानी न पूरी लिख पाया तो तेरी कैसे पूरी हो यह बार बार कान्हा ने उसे जवाब दिया..
