अच्छा जमाई
अच्छा जमाई
"कल देखा मैंने तुम्हारे परिवार वाले तुम्हारे जीजा को ज्यादा मान देते हैं और तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ता ?" विश्वास ने शगुन से कहा।
"नहीं" शगुन ने संक्षिप्त सा जवाब दिया।
"क्यों ?" विश्वास ने झुंझलाते हुए कहा।
"मुझ से क्या पूछते हो? अपने आप से पूछो।" शगुन ने जवाब दिया।
"मैंने तो कुछ नहीं किया ?" विश्वास ने सफाई देते हुए कहा।
"कुछ किया ही तो नहीं । "शगुन ने धीरे से कहा
"मतलब क्या है तुम्हारा? "विश्वास ने आँखों से ही पूछा।
"याद है आपको शादी के शुरुआती दिनों में ससुराल से न्यौता आता था तो आप हमेशा जाने में टाल मटोल करते अगर चले भी गये तो किसी से मिलते नहीं थे एक ही जवाब होता तुम ही मिल लो कोई खाने पे बुलाता तो तुम्हारे दस नखरे होते बस इसीलिए धीरे-धीरे उन्होंने कहना ही छोड़ दिया, और जीजा जी मेरे परिवार की हर खुशी गम को अपना समझते हैं। मेरा भाई पूरे अधिकार से सलाह माँगता है वो हर उस वक्त दीदी के साथ होते हैं जब उन्हें होना चाहिए। "
"क्या मैं तुम्हारा साथ नहीं देता। "विश्वास ने शगुन की बात काटते हुए कहा।
"आपको याद है ताऊ जी के यहाँ जगराता था, आरती के समय सब जोड़े से मौजूद थे और आप वहीँ कमरे में थे बुलाने पर भी नहीं आये थे उस दिन सबके सामने शर्म भी आई और गुस्सा भी फिर मैंने अपने आप को समझा लिया और ऐसी बातों के लिए आपको कहना ही छोड़ दिया चलो छोडो ये बताओ के आज ये सब कैसे? "शगुन ने पूछा।
"बस यूँ ही वैसे हो तो गई गलती ही पर अब सुधारूंगा। " विश्वास ने दीर्घ श्वास छोडते हुए कहा।
"अब ? जब बाल पक गए हैं हम बुजुर्गों की श्रेणी में आ गए हैं। " शगुन ने ताना मारते हुए कहा।
" तो क्या हुआ ? अगले महीने तुम्हारी भतीजी की शादी है ना? हम दो दिन पहले चलेंगे और तुम जैसे - जैसे कहोगी वैसे मैं करता जाऊँगा।
देखना ऐसा इम्प्रेशन जमाऊँगा के अंजु (भतीजी) सोचने लगेगी के काश मेरा पति विश्वास फूफा जी जैसा हो।" विश्वास ने भोलेपन से कहा।
"अच्छाsss" कहते हुए शगुन के गाल शर्म से लाल हुए जा रहे थे।
