अबला भावनाओं का लॉकडाऊन
अबला भावनाओं का लॉकडाऊन


"मधुरिमा, तैयार होकर जल्दी आ जाओ। खाना लग गया है।" रमेश ने मेज़ पर खाना लगाते हुए अपनी पत्नी को आवाज़ दी। पिछ्ले एक महीने से इसी संवाद से मधुरिमा के दिन की शुरुआत होती।
वो खाने की मेज़ पर आकर चुपचाप बैठ गई। उसका चेहरा उसके मन में उमड़ रही भावनाओं का उल्लेख कर रहा था। कुछ देर तक मधुरिमा को एकटक निहारने के पश्चात रमेश से रहा नहीं गया तो उसने पूछ ही लिया, "क्या हुआ प्रिय, मायूस क्यूँ हो?" रमेश के इतना पूछते ही उसकी आँखों से अश्रुधारा चमक उठी और कहने लगी,"अगर आपकी जगह कोई और होता, ना जाने मेरा क्या होता! मेरे होते हुए भी आप घर को संभाल रहे हैं, गुड़िया का ध्यान रख रहे हैं.... रमेश ने मधुरिमा की बात बीच में काटते हुए कहा,"ओहो मधुरिमा! तुम भी ना! ऐसी बातों पर विचार कर के समय व्यर्थ ना करो। मैं हूँ ना, सब संभाल लूँगा। आप बस नाश्ता करके ड्यूटी पर जाइये अफसर साहिबा!", रमेश ने ठिठोली करते हुए कहा। इतना सुनते ही मधुरिमा के चेहरे की चमक लौट आई। "तुम घर की बिल्कुल चिंता ना करना, मधु। देश प्रेम ही तुम्हारा सबसे बड़ा धर्म है और लोगों की सेवा करना ही सबसे पहला कर्तव्य। अपना ख्याल रखना, प्रिय", रमेश ने बात पूरी करते हुए मधुरिमा को ड्यूटी पर जाने के लिए विदा कहा।
मधुरिमा भारतीय सिविल सेवा में वरिष्ठ आईपीएस के पद पर कार्यरत थी। वर्ष 2019 के अंत में चीन के वुहान शहर से शुरु हुई कोरोना वायरस नामक बिमारी अब तक महामारी का रूप धारण कर विश्व भर में पैर पसार चुकी थी। कोरोना वायरस के संक्रमण पर रोकथाम लगाने के लिए पूरे देश भर में लॉकडाऊन की स्थिति थी। हर गाँव हर शहर के लोगों से अपने घरों में रहने के लिए अनुरोध किया जा रहा था। इसी बीच देश भर में चिकित्सकों और मधुरिमा जैसे बहादुर अफसरों ने अपनी जान की प्रवाह किये बिना इस महामारी के बढ़ते संक्रमण को रोकने के लिए एड़ी चोटी का ज़ोर लगा रखा था। लोगों के मन में कोरोना वायरस बिमारी को लेकर भय था। यह बिमारी किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से फैलती थी। लक्षण पाए जाने पर भी लोग जाँच करवाने से कतराते थे।
एक दिन मधुरिमा तक सूचना पहुंची कि शहर के मध्य इलाके में बसी भगत सिंह कालोनी में कोरोना वायरस के कुछ संदिग्ध व्यक्ति पाए गए हैं। सूचना मिलते ही मधुरिमा कुछ अधिकारियों और चिकित्सकों के साथ कालोनी में जाँच के लिए पहुंची। लोगों ने पुलिस प्रशासन और चिकित्सकों को कालोनी में आते देखा तो उन पर पत्थरों की बौछार प्रारंभ कर दी। इस घटना में कई अधिकारियों और चिकित्सकों को गंभीर चोटें आईं। मधुरिमा के सर पर पत्थर लगने से बहुत खून बह रहा था इसिलिए जल्द ही इलाज के लिए उसे अस्पताल ले जाया गया। इस हिंसक हमले की पूरे देश में घोर निंदा हुई और अपराधियों के खिलाफ सख्त कारवाई की माँग की गयी। हमला कर्ताओं की पहचान हो पाना मुश्किल था क्यूँकी अधिकतर लोगों के चेहरे मास्क से ढके हुए थे। उधर मधुरिमा ने प्राथमिक चिकिस्ता लेने के पश्चात ही ड्यूटी पर लौटने का निर्णय लिया।
जैसे ही मधुरिमा अपने दफ्तर पहुँची, वहाँ खड़े सिपाही ने बोला,"जय हिंद मैडम। अरे! आपके सर पर गहरा घाव लगा है। आपको आराम करना चाहिए मैडम।"
इस पर मधुरिमा ने जवाब देते हुए कहा,"अरे पवन! कैसी बातें कर रहे हो तुम! मेरा देश महामारी के इतने बड़े संकट से जूझ रहा है और मैं आराम करुँ! ये नहीं हो सकता। तुम सामान तैयार करो, हमें आज राशन बाँटने जाना है। ना जाने कितने लोग भूख प्यास से तड़प रहे होंगे। महामारी की वजह से आए आर्थिक संकट ने लोगों को जकड़ लिया है।" "जी मैडम", इतना कह कर पवन बाहर चला जाता है।
दिन भर के कार्यों को निपटाकर मधुरि
मा रात के 9 बजे घर के लिए रवाना हो जाती है। दरवाजे पर आहट सुनते ही अंदर से पिंकी खुशी से गुनगुनाती हुई दौड़ी चली आती है,"म्मा आ गये, म्मा आ गये" और मधुरिमा को देखते ही उससे लिपटने की कोशिश करती है तो मधु दस कदम पीछे हट जाती है और कहती है,"नहीं बेटा, रुको। मेरे करीब मत आओ अभी।" पिंकी का मायूस चेहरा देख वो खुद भी भावुक हो जाती है। तभी रमेश बाहर आता है और कहता है, "माफ़ करना मधु, गुड़िया आज सो ही नहीं रही थी। एक ही रट लगाए जा रही थी मुझे म्मा से कहानी सुनकर ही सोना है।" "जी, कोई बात नहीं", इतना कहकर मधुरिमा अंदर चली जाती है। कुछ देर में मधुरिमा नहाकर रसोई घर में आती है और खाना लगाने में रमेश की मदद करती है और कहने लगती है, "रात का खाना आप मत बनाया कीजिये। मैं आकर बना लिया करूँगी न।" रमेश ने मधुरिमा की तरफ़ देखा तो वह चौंक गया और कहने लगा, " अरे मधु! ये क्या हुआ? तुम्हें इतनी चोट कैसे लगी?" "कुछ नहीं जी, ये तो आज जब हम जाँच के लिए गये थे तो कुछ लोगों ने भय के कारण पत्थर बरसाने शुरू कर दिए थे। तब ये छोटा सा घाव लग गया।" मधुरिमा ने कहा। "अच्छा, हैरानी की बात है! ना जाने लोग कैसी मानसिकता रखते हैं। इस महासंकट में तुम्हारा कार्य किसी वरदान से कम तो नहीं", कहते हुए रमेश उसके घाव को गौर से देखता है। "अपना ख्याल भी रखा करो प्रिय और हाँ घर की चिंता ना किया करो। इस समय में मुझे तो अपने दफ्तर का काम घर से ही करना होता है। मैं सब संभाल लूँगा।" बात करते करते दोनों खाने की मेज़ पर आ जाते हैं, तभी पिंकी आकर मधुरिमा के पास बैठ जाती है और कहती है, "म्मा! म्मा! आज आप मुझे कहानी सुनाओगे न!" मधुरिमा प्यार से उसके चेहरे को सहलाते हुए कहने लगती है, "आज आप म्मा को कहानी सुनाओ बेटा।" "अम्म! मैं आपको कौनसी कहानी सुनाऊँ म्मा?", पिंकी ने मासूमियत से पूछा। "अच्छा! चलो बताओ कि आज आपने क्या क्या किया?", मधु ने पूछा। "म्मा, आपको पता है आज मैंने और पापा ने दिल्ली वाले रमन अंकल के साथ वीडियो पर बात की", पिंकी ने खुशी से बताया। "अच्छा! क्या बात की मेरी गुड़िया",कहते हुए मधु ने पिंकी को गोद में उठा लिया और सुलाने के लिए कमरे में ले गयी। "अंकल पापा से कह रहे थे कि आप तो गुलामों की तरह घर का काम करते हो, भाभी तो सुबह ही ड्यूटी पर चली जाती होगी। हमें देखो, जो हुक्म करते हैं, वही खाने में बनता है", कहते हुए पिंकी सोने लगती है। यह बात सुनते ही मधुरिमा के चेहरे पर दुख के भाव आ जाते हैं पर तभी रमेश आकर कहने लगता है, "मधु, बच्चों की बातों पर यूँ गौर ना किया करो। मुझे समाज की प्रवाह नहीं और तुम्हारे कार्य के आगे तो मेरा सहयोग कुछ भी नहीं। थक गयी होगी, तुम भी सो जाओ।"
एक तरफ़ जहाँ मधुरिमा एक शूरवीर योद्धा की तरह कोरोना से इस जंग में अग्रिम मोर्चे पर डटी हुई थी तो दूसरी तरफ़ रमेश का हौंसला भी सराहनीय है। रमेश ने बिना समाज की अटकलों की प्रवाह किये बिना मधुरिमा को सम्पूर्ण सहयोग दिया। देखते ही देखते पूरा विश्व कोरोना महामारी से उभर गया और देशव्यापी लॉकडाऊन भी अंतिम चरण पर आ गया।
फिर एक दिन मधुरिमा को अधिकारिक पत्र प्राप्त हुआ जिसमें लिखा था कि अग्रिम गणतंत्र दिवस पर कोरोना वायरस महामारी के समय उसकी कार्य कौशलता के लिए उसे वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा।
यह पढ़कर मधुरिमा की आँखों से खुशी के अश्रु छलक उठे और उसने रमेश के हाथों में वह पत्र थमाते हुए कहा, "इस पुरस्कार पर पूर्ण रूप से आपका अधिकार है। आपके ही धीरज ने कभी मेरा मनोबल गिरने नहीं दिया।" सुनते ही रमेश की आँखें भी खुशी से भर जाती हैं और दोनों एक दूसरे के गले लग जाते हैं।