PRADYUMNA AROTHIYA

Abstract

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PRADYUMNA AROTHIYA

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अभिषेक

अभिषेक

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अभिषेक यह जानकर मन ही मन बहुत खुश हुआ कि उसकी नई माँ आ चुकी है। अब वह बुआ के यहां से अपने खुद के घर जाएगा। उसने कभी अपनी माँ को तो नहीं देखा लेकिन वह अपनी नई माँ से मिलने का बहुत ही इच्छुक है। उसके मन में क्या क्या विचार उफान ले रहे हैं, यह उसके चहरे से महसूस हो रहा है। उसकी नई माँ का नाम रजनी है। वह पैर से दिव्यांग है। उसके पिता राजन को उसमें क्या नज़र आया, यह कह पाना मुश्किल है। लेकिन वह अपनी ख्वाहिशों से मजबूर है। इसलिए उसने बिहार से शादी कर रूपयों की मदद से रजनी को अपने घर ले आया। यह समाज में एक नया प्रचलन शुरू हुआ है लेकिन यह पूरी तरह से नया भी नहीं क्योंकि अविवाहित लोग पहले भी इस तरह की शादी कर लिया करते थे लेकिन आज हालत और भी ज्यादा बदल गए हैं जहाँ अनगिनत कमियों के कारण लोगों की शादी नहीं होती। यहाँ इसमें जाति धर्म की समाज से लीक कटती नजर आती है।

रजनी धीरे धीरे अपने वास्तविक स्वरूप को  दिखना शुरू कर देती है। राजन पत्नी की ख्वाहिशों को दिन रात पूरा करने में लगा रहता है। वह अभिषेक को अपनी बहन के यहाँ से माँ का प्यार देने के लिए लाया लेकिन उसकी खुद की गुलामी में अभिषेक की जिंदगी भी ग़ुलामों की तरह हो गई। वह नई माँ के बारे में क्या क्या सोच रहा था, वह सपनों की तरह आंखों से धुल गया। जो जिंदगी वह अपनी बुआ के यहाँ जी रहा था, वही उसके लिए स्वर्ग थी। वह दिन रात नई माँ की सेवा में लगा रहता। चाय बनना, बर्तन धोना और रोज किस न किसी बात पर माँ से पिटाई खाना, इसी में उसकी जिंदगी सिमट कर रह गई। 

राजन, रजनी की ख्वाहिशों का पूरा पूरा ध्यान रखता। इसलिए उसे रोज़ बाज़ार में चांट- पकौड़े खिलाने ले जाता। इस बीच राजन अपने पुरखों की जमीन को भी बेचने लगा। राजन कुछ काम तो करता नहीं था लेकिन उसने एक दुकान डाल ली। दुकान धीरे धीरे ठीक से चलने लगी। लेकिन यह कब तक चलती क्योंकि रजनी की फरमाइशें खत्म ही नहीं होती। 

इन दिनों रजनी ने एक लड़की को जन्म दिया। वह लड़के की ख्वाहिश में थी लेकिन हुई लड़की। अब अभिषेक को काम और अधिक करना पड़ता। रजनी का जुल्म भी दिनों दिन हिंसक होता गया। जो कुछ उसके हाथ में होता, उसी से कमरे के अंदर ले जाकर उसको मारती। अभिषेक की आँखों से आँसू तो निकलते लेकिन उस दर्द की आवाज अंदर ही अंदर दम तोड़ती रहती। राजन यह सब जानता था लेकिन वह खुद रजनी से डरता था। कभी कभी कुछ कहता लेकिन उसका कोई अर्थ नहीं था। 

 रजनी महारानी की तरह विस्तर पर बैठी आराम करती। रात को जाकर भोजपुरी फिल्मों को देखती। इस तरह और भी जिम्मेदारियां अभिषेक के सिर पर आ गईं। रजनी ने अभिषेक को पीटने का एक नया तरीका ढूंढ लिया था कि अगर उसकी लड़की किसी बात पर रोई तो अभिषेक की ही पिटाई होगी। वह बाजार से अपने लिये और अपनी लड़की के लिये नए नए कपड़े लेकर आती। लेकिन अभिषेक को उन्हीं पुराने कपड़ो में जिंदगी जीने को छोड़ देती। स्कूल का चेहरा तो अभिषेक भूल ही गया था। रजनी भी नहीं चाहती थी कि वह स्कूल जाए क्योंकि घर का काम कौन करेगा ? जब रजनी की लड़की स्कूल जाने लगी तो अभिषेक को जाने का मौका मिला। लेकिन यह अल्प समय के लिये ही था। 

एक दिन रजनी किसी बात पर नाराज हो गई और उसने अभिषेक बहुत बुरी तरह से मारा। और उसको कमरें में बंद कर दिया। यह बात राजन को मालूम हुई और उस दिन उसने आवेश में आ कर रजनी की पिटाई की। लेकिन बात और बिगड़ गई, वह अभिषेक से और ज्यादा नाराज हो गई। उसे मारने की धमकी देने लगी। उसने मौका देखकर अभिषेक को फिर से मारा पीटा। 

इस झगड़े में गॉव के प्रधान ने हस्तक्षेप किया और अभिषेक को अपने घर ले गया। अभिषेक एक नई जिंदगी जीने लगा। वह उस गली में तो जाता लेकिन अपने घर नहीं जाता। यह रजनी का मन परिवर्तन था या कुछ और, वह भी उसे घर वापिस बुलाने की कोशिश करती लेकिन वह नहीं जाता।

रजनी की दुबारा से माँ बनने की इच्छा हुई क्योंकि वह एक लड़का चाहती। लड़का तो अभिषेक भी है लेकिन वह खुद का तो नहीं। यही मानसिकता उसको अभिषेक के प्रति क्रूर और क्रूर बनाती गई। रजनी की ख्वाहिश में राजन बहुत कुछ बेच चुका था। उसकी दुकान भी बंद होने की कगार पर पहुंच गई। बाजार के रोज रोज के आनंद भी कम हो गए। अब राजन गाड़ी चलाने लगा। यही होना था क्योंकि वह धीरे धीरे अपनी जमीन को बेच कर खाने जो लगा। रजनी ने इस बार भी एक लड़की को जन्म दिया।

रजनी ने जो सपने बुने वो सभी तहस नहस हो गए। उसके चेहरे का रंग भी उड़ गया। यह भगवान का अभिशाप था जो उसे मिला। उसका मानना यही था कि अपना अपना ही होता है। लड़का कहीं न कहीं कुछ न कुछ कमाकर ही लाएगा। लेकिन लड़की के जन्म ने उसके सारे अरमानों पर पानी फेर दिया। परिस्थितियां पल भर में बदल गईं और अभिषेक को वापिस घर आना पड़ा। 

इन दिनों रजनी का स्वभाव बदला बदला सा नज़र आने लगा। मानो रजनी ने अपने बेटे के रूप में अभिषेक को अपना लिया हो। लेकिन यह सायद भ्रम था क्योंकि अभिषेक पुनः घर कर काम काज में लगा दिया। बीते दिनों जो स्कूल जाने लगा था वह भी अब छूट गया। मास्टर साहब भी एक दिन अभिषेक के घर आये लेकिन रजनी ने स्कूल भेजने का वादा कर घर के कामों में लगाए रखा।

इतना कामकाज करने के बाद भी रजनी की आदत नहीं बदली और वह फिर अभिषेक को मारती। अब घर के हालात पहले से और बदतर हो गए। दुकान बंद हो गई। जो गाड़ी खरीदी वह भी बिक गई। सारी जमीन भी बिक गई। अब रजनी के पास दो लड़कियां थी। रोज रोज बाजार के चांट पकौड़े भी अब पूरी तरह से बन्द हो गए। राजन भी कुछ समय के लिये हकीम बन गया, वह दूर दूर तक लोगों को दर्द से निजाद देने के लिये जाता। यहाँ भी अच्छा पैसा मिलने लगा लेकिन उसने एक और नया धंधा शुरू कर लिया लोगों की शादी कराने का।

ऐसे हालातों में रजनी ने अभिषेक को न जाने कहाँ भेज दिया ? कुछ लोग कहते हैं कि उसे बिहार में रजनी ने अपने रिश्तेदारों के साथ में काम पर लगा दिया है। लेकिन तीन वर्षों से अभिषेक को किसी ने नहीं देखा। आखिर कहाँ होगा वो ? 



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