अभिनय कला
अभिनय कला
बहुत दिनों से मन में सवाल कुलबुला रहा था कि एक्टर्स कन्विन्सिंगली इतनी अच्छी एक्टिंग कैसे कर लेते है? क्या एक्टिंग करना सिखाया जा सकता है?
आज किसी सिलसिले में थिएटर आर्टिस्ट्स से मिलना हुआ।जाहिर सी बात है उस सवाल का जवाब उनसे ही मिल सकता था ।
मेरे सवाल पर वे दोनों हँस पड़े और कहने लगे,"आपका सवाल बड़ा ही वाजिब है।सच्चाई तो ये है की बचपन से ही हम एक्टिंग करते रहते है।" मैंने प्रतिवाद किया, "क्या कह रहे है आप?बचपन में हम सब तो बड़े ही मासूम होते है।भला एक्टिंग की ए बी सी भी नहीं पता होती है उस समय।" मेरी बात पर वे हँसते हुए कहने लगे,"आपने कभी बच्चों को घर घर खेलते हुए देखा है? वे उस खेल में मम्मी पापा बनते हैं और भी कई सारी चीजें करते रहते हैं। उनको कोई सिखाता थोड़े ही ना है? हम सबने अपने बचपन में ये खेल जरूर खेला है।"
उनकी बात से बचपन की कई खूबसूरत तस्वीरे मेरे दिमाग में कौंध गयी और मैं सोचने लगी कि सही तो कह रहे हैं ये लोग।हँसते हँसते हमारी बातचीत जारी रही।उन्होंने अपने जवाब में एक वाक्य और जोड़ दिया,
"मैडम,इस में ऑब्जरवेशन का रोल सबसे अहम होता है।"
हमारी बातचीत ख़त्म हो गयी और उनसे विदा लेकर मैं आगे बढ़ी।लेकिन यह अहसास भी हुआ कि आज भी हमारे आसपास के कुछ लोग एक्टिंग जारी किए हुए है।मुस्कुराते है और बातें भी करते है तो सब सब कुछ नकली,एकदम नकली।
क्या इसी को डिप्लोमेसी कहा जाता है?
या फिर जिंदगी का दस्तूर कहा जाए?
शायद हाँ ? शायद नहीं ?