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अब तुम ही हो...

अब तुम ही हो...

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अवनी.....एक खुशमिजाज जिंदादिल और चुलबुली सी एक लड़की। दोस्तो की दोस्त, उनकी हमराज औऱ सबके चेहरे पर मुस्कुराहट लाने का हुनर था उसमें, गिटार बजाना, मिमिक्री करना, गाना, डांस सब में उसको महारत हासिल थी।

"अरे अवनी, शाम को मामाजी आ रहे हैं, तू आते वक्त मिठाई ले कर आना।" अवनी की माँ ने कॉलेज जाती अवनी को आवाज़ देते हुए कहा।

"अच्छा माँ, बाय, लव यू" अवनी स्कूटर की चाबी स्टार्ट करते हुए बोली।

अवनी अपने घर में सबकी लाडली थी, दादाजी की तो आँखों का तारा, पर न जाने क्यों पापा से वो बचपन से ही डरती थी। पापा फौज में जो थे, उनके रुबाब से सारा घर डरता था, वो जितने अनुशासन प्रिय थे, अवनी उतनी ही अल्हड़। पापा चाहते थे अवनी डॉक्टर बने मगर अवनी के अपने ही सपने थे। जब 2 बार मेडिकल का एग्जाम देने के बाद भी अवनी का सिलेक्शन नहीं हुआ, तो अवनी ने कॉमर्स में ग्रेजुएशन कर के एम.बी.ए. किया। वही मेहुल भैया भी पापा की तरह फौज में भर्ती हो गए।

शाम को मामाजी आ गए। मामाजी भी फौज से रिटायर हुए थे तो जाहिर सी बात है कि अवनी के पापा और मामाजी की काफी अच्छी बनती थी।

"अवनी तू फिर इतना लेट आयी है, तुझे पता है ना तेरे पापा को तेरा देरी से घर आना बिल्कुल पसंद नहीं। कब तक मैं तेरी एक्स्ट्रा क्लासेज का बहाना करती रहूँ।" वसुधा जी थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए बोली।

"अरे मेरी प्यारी मम्मी, मुझे पता है आप सब संभाल लेगी, आज सुरभि की बर्थ डे पार्टी थी, फुल धमाल किया अगले महीने उसकी शादी है फिर तो वो विदेश चली जायेगी, माँ सुरभि की तो लॉटरी लग गयी, सुमेर तो प्रिंस चार्मिंग लगता है, सबने उसकी खूब खिंचाई की, फिर कहाँ इतनी मस्ती करने को मिलेगी, हां मैं आपके प्यारे प्यारे भाई के लिए हल्दीराम के रसगुल्ले ले कर आई हूँ।" अवनी वसुधा जी को गले लगाते हुए बोली।

"लड़का बहुत ही टैलेंटेड है, उसका फ्यूचर भी बहुत ब्राइट है, इतनी कम उम्र में आर्मी में मेजर होना कोई कम बड़ी बात है, मैंने उसकी फैमिली से बात कर ली, हमारी अवनी के लिए बेस्ट है, कोई डाउट नहीं।" अवनी के सुधीर मामाजी ने कहा।

अवनी के मामा, अवनी के लिए रिश्ता ले कर आये थे। लड़का भी जयपुर से ही था, उसके पिताजी, मामाजी के अच्छे दोस्त थे। उनके कहने पर महेश जी ने अपने पिताजी से पूछा फिर लड़के की फैमिली से बात की, अवनीश भी अभी छुट्टियों में जयपुर आया हुआ ही था।

"वसुधा, वसुधा...।" महेश जी ने आवाज़ लगाई।

"जी कहिये" वसुधा जी ने कहा।

"शाम को एक फैमिली आ रही है, अवनी को देखने, उसे कहना शाम को तैयार रहे।"

"पर ऐसे, अचानक ....?"वसुधा जी आश्चर्य से बोली।अभी सुधीर आया था थोड़े दिन पहले, उसी ने ये रिश्ता बताया है, लड़का आर्मी में मेजर की पोस्ट पर है, मैं और पिताजी अभी परसों ही उस लड़के से मिल कर आये हैं। वो उसकी फैमिली दोनों ही बहुत अच्छी है, अवनी खुश रहेगी वहाँ।" महेश जी ने अपना निर्णय सुना दिया था।

वसुधा जी कशमकश में थी कि कैसे वो अवनी को बताए, अवनी को तो आर्मी शुरू से ही पसंद नहीं, वो तो बॉलीवुड के किसी हीरो सरीखे दिखने वाले लड़के से शादी करना चाहती है। जैसे तैसे अवनी को उन्होंने बताया तो उसका गुस्सा आसमान चढ़ गया मगर पापा के सामने बोलने की उसकी हिम्मत नहीं थी। वो रोते रोते दादाजी के पास गई।

"दादाजी, आप सब क्या मुझसे इतनी नफरत करते हैं कि आपने ये बात मुझे बताना भी जरूरी नहीं समझा।" अवनी रोते हुए बोली।

"ना मेरा बेटा, तुझे तेरे दादाजी पर भरोसा नहीं, तेरे दादा अपनी इस कोहिनूर के लिए किसी ऐसे वैसे को पसंद करेंगे क्या ? मेरी इस राजकुमारी के लिए सिर्फ राजकुमार ही आएगा। भरोसा है न तुझे मुझ पर। अपने दादाजी के लिए तो मान जा पुत्तर।" दादाजी ने अवनी के गालों को सहलाते हुए कहा।

अवनी, दादाजी का कहना न टाल सकी। शाम को 6 बजे अवनीश और उसके माता पिता अवनी को देखने आए। अवनी चाय ले कर आई तो उसने अवनीश को देखा, चाय उसके हाथों से गिरते गिरते बची, कहाँ वो रणवीर कपूर जैसे लड़के के सपने देख रही थी और उसके सामने एक सांवला सा छोटी छोटी मूछें और छोटे छोटे चिपके हुए बालों वाला 6 फ़ीट का नौजवान खड़ा था। अवनी के सारे सपने पानी पानी हो गए। जब अवनीश ने अकेले में भी अवनी से बात की तो वो सिर्फ हाँ ना में जवाब दे रही थी।

शाम को अवनीश के घर से फ़ोन आया अवनीश को अवनी पसंद है। मगर अवनी का क्या ? अवनीश, अवनी को पसंद नहीं था, वो रोते हुई दादाजी के पास गई।

"दादाजी, मुझे वो लड़का बिल्कुल भी पसंद नहीं, मुझे नहीं करनी कोई शादी वादी।"अवनी बोली।

"बेटा, उसके घरवाले तुझे बेटी बना कर रखेंगे, अवनीश बहुत ही गुणी लड़का है, कोई ऐब नहीं है, इतनी छोटी उम्र में मेजर का पद पाना आसान बात है क्या, तू चिंता क्यों करती है ये तेरे दादा अपनी बिट्टो के लिए लाखों में एक लड़का ही ढूंढेंगे।" दादाजी ने कहा।

अवनी की आखिरी कोशिश बेकार गयी। रविवार के दिन घर में ही अवनी की सगाई की रस्म हुई 2 महीने बाद शादी की तारीख तय हुई।

"बधाई हो अवनी, तू तो बड़ी छुपी रुस्तम निकली, सगाई कर ली बताया भी नहीं, तू कितना भी छुपा ले बच्चू, हम पार्टी तो लेकर रहेंगे।" सुरभि, मेधा, गरिमा, हर्षित, विशाल, मयूर सब अवनी के घर पर आ गए।

"चल जल्दी कर, फ़ोटो निकाल रणवीर कपूर की, कब तक छिपायेगी हमसे।" गरिमा ने चिकोटी काटते हुए कहा।

अवनी को अजीब सा लग रहा था, कहाँ उसके सपनों का राजकुमार और कहाँ अवनीश। तभी माँ स्नैक्स और चाय ले कर अवनी के कमरे में पहुंच गई। उन्होंने ही अवनीश की तस्वीर सबको दिखाई।

"अच्छा, तो ये है हमारे रणवीर कपूर।" हर्षित ने कहा तो मज़ाक में पर अवनी के दिल को बेध सा गया।

सब चले गए तो अवनी की आँखों मे फिर से आंसु आ गए। 2 महीने बाद आखिर अवनी की शादी अवनीश से हो गयी। शादी कर के पहली बार जब वो ससुराल आयी तो वो चुपचाप कमरे में सो गई। अवनीश ने उसे जगाया नहीं, वो भी पास ही सोफे पर चुपचाप सो गया।

5 दिन बाद दोनों विशाखापटनम चले गए, जहाँ अवनीश की पोस्टिंग थीं। उसी रात जब अवनीश ने अवनी का हाथ पकड़ने की कोशिश की अवनी ने उसे झटक दिया। अवनीश हैरान था, अब तक उसे लगा था कि शायद शादी की थकावट है, नई जगह नए लोग, अवनी को एडजस्ट होने में समय लगेगा, इसीलिए उससे दूर दूर भाग रही है।

मगर अभी तो सिर्फ वो दोनों ही थे।

"देखो,एक बात में तुम्हें साफ कर देती हूँ मुझे तुम पसंद नहीं थे, मेरे पापा ने कहा इसलियें मैंने ये शादी की है।" अवनी का सपाट जवाब था।

"क्या तुम्हें कोई औऱ पसंद है" अवनीश ने पूछा।

"नहीं, मगर मुझे तुम पसंद नहीं हो, बस इससे ज्यादा मुझे कुछ नहीं कहना।" अवनी वहाँ से चली गयी।

अवनीश को मानो चक्कर सा आ गया, उसे इस बात की उम्मीद कतई नहीं थी। वो जानता था कि शायद ये सही समय नहीं की वो कुछ अवनी से कहे।

देखते ही देखते 1 महीना निकल गया। अवनीश, अवनी का पूरा ख्याल रखता, उसकी पसंद नापसंद सब धीरे धीरे जानने लगा था। अवनी का बिहेव बिल्कुल ठीक था, पर वो कभी अवनीश को अपना पति नहीं मान पायी।इस 1 महीने में उसे पता चल गया था अवनीश एक अच्छा इंसान है फिर भी एक फाँस उसके दिल में अभी भी चुभी थी क्योंकि जिस राजकुमार की कल्पना उसके दिल ने की थी, अविनाश उसके आस पास भी नहीं ठहरता था। अवनीश ने भी कभी कोई ऐसी कोशिश नहीं की जो अवनी को नागवार गुजरे।

रविवार का दिन था, अवनी अपना सूटकेस अलमारी के ऊपर से उतार रही थी कि उसका संतुलन गड़बड़ाया, वो धड़ाम से गिर पड़ी। उसके माथे से खून निकल रहा था, वो बेहोशी में चली गयी।

अवनी ने अपने सर पर हाथ रखा, पट्टी बंधी हुई थी। उसने आंखे खोली सामने अवनीश चेयर पर बैठे थे। जैसे ही अवनी ने आंखें खोली, अवनीश का चेहरा खिल उठा।

"अवनी तुम ठीक तो हो न, रुको मैं डॉक्टर को बुलाता हूँ।" अवनीश डॉ को बुला लाए।

डॉ ने अवनी का चेकअप किया।

"अवनी परसो रात को अवनीश तुम्हें हाथों में उठा कर लाये, खून बहुत बह गया था, मगर अवनीश तुम्हें समय पर ले आया। अवनी तुम बहुत किस्मत वाली हो कि तुम्हें अवनीश जैसा हमसफर मिला। परसों से ले कर अब तक ये यही है कहीं भी नहीं गए। यहाँ तक कि अपने कपड़े तक नहीं बदले। अब तुम बिल्कुल ठीक हो, ये जो चोट है इसके लिए समय पर दवाई लेते रहना औऱ 1 हफ्ते कम्पलीट रेस्ट करना।" डॉ ने कहा और अवनी का चेकअप कर के चले गए। अवनी ने अवनीश की तरफ देखा पहली बार न जाने क्यों उसका दिल जोरों से धड़क रहा था।

अवनी को अगले दिन डिस्चार्ज कर दिया। अवनीश ने छुट्टी ले रखी थी, वो अवनी को हिलने भी नहीं देता। अवनी खाने में नखरे करती तो अवनीश उसे जोक्स सुना सुना कर खिलाता। अवनी के दिल में अजीब सी हलचल थी, पता नहीं क्यों वो चुप चुप के अवनीश को निहारा करती, जब भी उसका हाथ उसके हाथ से टकराता अवनी को एक अजीब सा अहसास होता, जो चेहरा उसे पसंद नहीं था, आजकल उस पर उसे बड़ा प्यार आता। अवनी अब ठीक हो रही थी, पर हाँ कुछ था जो अब बदल गया था वो था उसका दिल।

"अच्छा अवनी में चलता हूँ, विद्या अम्मा को बोल दिया है वो सारे काम कर लेगी, तुम अपना ख्याल रखना।" अवनीश ने जाते हुए कहा। अवनीश अभी दरवाजे पर गया ही था कि अवनी की जोर से कराहने की आवाज़ आयी। वो उल्टे पैर वापिस भागा। अवनी कराह रही थी।

"क्या हुआ ? दर्द हो रहा है ? ज्यादा दर्द हो रहा है क्या ?" अवनीश अवनी के सर पर हाथ रख कर घबराते हुए बोला।

"हाँ, हो रहा है न पर यहाँ नहीं यहाँ।" अवनी, अवनीश का हाथ अपने दिल पर रखते हुए बोली।"सॉरी अवनीश, मैं शायद भूल ही गयी थी कि खूबसूरती सिर्फ सूरत में नहीं सीरत में भी होती है, मैं अपने सपनों की दुनिया मे इतनी खोई थी कि मैं अपने असली राजकुमार के होते हुए सपनों के राजकुमार को तलाश रही थी, दादाजी ने सही ही कहा था कि उन्होंने अपनी बिट्टो के लिए लाखों में एक लड़का ढूंढा है, मैं ही बेवकूफ थी कि हीरे को भी पत्थर समझ रही थी, क्या मेरी इस भूल के लिये मुझे माफ़ नहीं करोगे।" अवनी ने भीगी हुई आंखों के साथ अवनीश को पूछा। अवनीश ने अवनी को गले लगा लिया। आज अवनी को अपने सफेद घोड़े पर सवार राजकुमार मिल गया था।


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