अब ना जलेगी वैदेही
अब ना जलेगी वैदेही
"मेरी बेटी हमेशा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुई है। रूप व गुण में अद्वितीय है।" जमनादास लड़के के पिता से बोले।
"रूप-गुण तो ठीक है पर रसोई की ए बी सी आती है या नहीं?"हरीशचंद्र जी ने पूछा।
"हाँ-हाँ सर्वगुण संपन्न है! हमेशा से पढ़ने में रूचि थी पर रसोई में भी दक्ष है। कुछ अपनी माँ से ,तो कुछ रेसिपी बुक से सीख कर बनाती ही रहती है।" पिता का मन व जुबान दोनों ही बिटिया के स्नेह से सराबोर था तो जी भर कर तारीफों के पुल बांधते गए जबकि सच्चाई कुछ हट कर थी।
प्रिया की रूचि पढ़ाई, ड्रामा,डान्स, डिबेटस इत्यादि में थी। शायद ही कोई ऐसा काॅलेज फंक्शन होगा जो बगैर उसके संपन्न हुआ हो। सच कहूँ तो प्रिया शर्मा एक नाम थी। आन ,बान और शान थी अपने काॅलेज की। उन्होंने ये सब क्यों नहीं बताया। शायद उन्हें अपनी बेटी के इन गुणों पर गर्व ना था। लड़कियाँ पढाई के साथ ,पूरे परिवार को स्नेह के बंधन में बाँध कर रखने वाली, सहनशीलता व आदर्शों का पालन करने वाली होनी चाहिए। ये सारे पैमाने जब पिता के थे तो औरों को क्या कहती।
शादी हो गई और विदा होकर ससुराल आ गई। दो- चार चीज़ों के अलावा कुछ भी बनाना नहीं जानती थी। धीरे-धीरे उसने सब सीखा। अपने ही पिता के शब्दों की सत्यता को साबित करने में स्वंय के सभी ख़्वाहिशों की तिलांजली देती गई।महीनों तक नई भूमिका में ढलने की कोशिश करती गई। स्नेह व सहनशीलता में कमी नहीं थी। साड़ी पहन कर काम करने की आदत नहीं थी। केक ,ब्रेड रोल,चिकन बटर मसाला और नान आखिर कबतक उसे बाँध कर रखते। अब घर की चारदीवारी और रसोई की गंध से ही चक्कर आने लगा था तब उसने पति नमन से, अपने दिल की बातें कह डाली।
"इन्हीं कारणों से डिप्रेस हो रही हो?लाइट रहो।" नमन ने कहा।
"पर सबकी कितनी उम्मीदें हैं मुझसे ....उन्हें पूरा ना किया तो पिता की बात झूठ हो जाएगी।"
"उनके बातों की सत्यता सिद्ध करने में जान दे दोगी। उतना ही करो जितना जरूरी है।शादी कराने में कई बार बढा-चढा कर तारीफ की जाती है। यह स्वाभाविक है।"
जब काॅलेज के दिनों का अलबम निकाल कर सामने रखा तो खुशी की चमक दोनों की आँखों में थीं। स्टूडेंट प्रेसीडेंट "प्रिया शर्मा",मिस फ्रेशर "प्रिया शर्मा" के फोटोज देख रहा था। एक आत्मविश्वास से भरी हुई प्रतिभाशाली लड़की से मिला।
"तुम तो कमाल हो यार! अभी तक ये सब कहाँ छुपा रखा था? सीता समझ रहा था तुम तो गीता निकली।"
"हम लड़कियाँ औरों के फ्रेम में फिट होने के लिए बाध्य की जाती हैं तभी तो हर गीता को ना चाहते हुए भी सीता के समान आदर्शों पर चलना पड़ता है।"
"मैं समझ सकता हूँ। ये तो नहीं कह सकता कि तुम्हें इन सब जिम्मेदारियों से मुक्त कर पाऊँगा पर तुम्हारे आसमान की तलाश में हरदम तुम्हारा साथ निभाऊँगा।"
एक और एक मिलकर ग्यारह हो गए थे। नमन ने बचा लिया था वरना वह तो अपने सपनों की आहुति दे चुकी थी। पति के साथ ने उसकी उदासी दूर कर दी थी। उनके सहयोग से फिर से अपने शौक पूरे करने की राह पर चल पड़ी। अब दोनों एक ग्रुमिंग क्लाससेज़ प्लान कर रहे थे। जिस एक्सट्रा ऑडिनरी लड़की को पुरूष मानसिकता के तहत एक आदर्शों का जामा पहना कर प्रस्तुत किया गया था वह उस नकाब को उतार कर खुली हवा में साँस ले पा रही थी।
जब जान में जान आई तब ख्याल आया कि,
"हमसफ़र का साथ मिले तो भला क्यों जलेगी वैदेही!"
