आवारा
आवारा
"अरे, बड़ी देर हो गई,सुमी अब तक नहीं आई। कुछ कह कर गई क्या?"सक्सेना साहब ने पत्नी उमा को आवाज दी। "हां, किसी सहेली की बर्थडे पार्टी का कह तो रही थी लेकिन इतनी देर तो नहीं लगनी चाहिए थी। " उमा जी ने कहा। " आज कल के बच्चे सुनते भी कहां हैं?कुछ कहो तो कहते हैं मम्मी चिल करो। अब इतनी देर हो गई। फोन भी नहीं लग रहा है। कोई कैसे चिल करे?" "तुम मां हो, तुम्हें तो पता होना चाहिए। बेटी कब कहां किसके साथ आ जा रही है ? पर तुम्हें अपने टीवी और महिला मंडली से फुर्सत मिले तब न। "सक्सेना जी बोले। " देखो,अब मेरा तो मुंह खुलवाओ मत। लाड़ दुलार करने के समय तो मेरी बेटी, मेरी बेटी और जब जिम्मेदारी की बात आए तो मां। क्यों नहीं पूछ लिया था शाम को जाते समय ही कि कहां जा रही हो और कब आओगी?"उमा जी तो जैसे भरी पड़ी थीं।
रात के ग्यारह बज चुके थे। उमा जी और सक्सेना साहब की इकलौती बेटी सुमिता उर्फ सुमी अभी तक घर नहीं पहुंची थी। ऐसे में मां बाप का परेशान होना लाजमी है। सुमिता शहर के ही एक इंजीनियरिंग कॉलेज से बीटेक कर रही है। पढ़ने लिखने में होशियार है। मां बाप ने भी अपनी इकलौती संतान पूरे लाड़ से पाला है। बेटी की हर इच्छा पूरी की। उसे किसी चीज की कमी न रहने दी। लड़की ने जो मांगा, जो चाहा वो उसे तुरंत मिला। इसी वजह से शायद सुमिता थोड़ा लापरवाह और गैरजिम्मेदार हो गई है। मां बाप भी बड़ी होती बेटी से मित्रवत व्यवहार रखने के चक्कर में चाह कर भी कठोर व्यवहार नहीं कर पाते और अब रात के ग्यारह बजे दोनों परेशान होकर एक दूसरे पर अपनी भड़ास निकाल रहे थे।
तभी डोरबेल की आवाज आई। दोनों मां बाप लपक कर दरवाजे की तरफ भागे। दरवाजा खोला तो सामने बदहवास सी सुमी खड़ी थी और साथ में खड़ा था कॉलोनी का मिश्रा जी का बदनाम व आवारा लड़का संदीप। संदीप को तो देखते ही सक्सेना साहब का पारा चढ़ गया।
सुमी को लगभग झकझोरते हुए बोले " क्या कर रही थी इस आवारा लड़के के साथ इतनी रात को?" "अंकल ये अभी बात नहीं कर सकती, आप इसे अभी अंदर
ले जाइए। बाद में बात कीजिएगा। " "तू चुप कर कमीने,मैं अपनी बेटी से बात कर रहा हूं। " सक्सेना साहब गरजे। "आंटी प्लीज,आप पहले इसे संभालिए। बातें तो बाद में भी हो जाएंगी। "संदीप ने उमा जी से कहा। उमा जी किसी तरह से सुमिता को लेकर अंदर उसके कमरे में ले गईं। सक्सेना साहब ने लगभग संदीप के मुंह पर जोर से दरवाजा बंद किया भड़ाक।
उस रात सक्सेना साहब के घर में कोई किसी से न बोला। मां बेटी दोनों सुमिता के कमरे में रहीं और सक्सेना साहब अपने कमरे में बेचैन फड़फड़ाते रहे। कब थक कर सो गए? पता ही न चला।
सुबह उमा जी ने चाय बनाई और फिर सक्सेना साहब को जगाया।
चाय पीते पीते उमा जी ने बताया। पहले तो रात में सुमी बेसुध सो गई थी। फिर अचानक जगी और रोने लगी। " नहीं रोहित नहीं। ऐसे न करो रोहित। मुझे छोड़ दो रोहित। " "रोहित?मगर सुमी आई तो संदीप के साथ थी। " सक्सेना साहब बोले। मुझे भी यही लगा था। बाद में पूछने पर सुमी बोली,उसकी सहेली चाहत की बर्थडे पार्टी थी। ये सभी कॉलेज के फ्रेंड्स इकट्ठा हुए थे एक रेस्टोरेंट में बर्थडे मानने को। किसी ने सुमी के कोल्डड्रिंक में शराब मिला दी थी। इसे नशा होने लगा तो रोहित इसे अपनी बाइक पर छोड़ने के बहाने ले आया। फिर कॉलोनी के गेट के पास छोड़ते समय इसके साथ बदतमीजी करने लगा। वो तो भला हो संदीप वहीं पान की दुकान पर खड़ा था। "वो आवारा तो दिन भर रहता ही वहीं है। " सक्सेना जी गरजे। " अरे पहले पूरी बात तो सुन लो। उस आवारा लड़के की वजह से ही आज अपनी सुमी बच पाई है। संदीप के पास नौकरी नहीं है क्या तो बस इसी लिए वो आवारा हो गया ? और वो बड़े घर का बेटा शरीफ। उमा जी ने कहा। सक्सेना साहब भी सोच रहे थे संदीप ने कभी उनके या किसी के साथ भी कोई बदतमीजी की हो ऐसा तो याद नहीं आता। नौकरी नहीं मिली इसमें उसका क्या दोष? घर वालों या अड़ोस पड़ोस के तानों से बचने के लिए ही तो वो अपने घर में कम से कम रहना चाहता है। वो आवारा कैसे हो गया ?