" मैं क्यूं बनूं कान्हा?"
" मैं क्यूं बनूं कान्हा?"
राघव आज सुबह से उदास है। एक तो कल की थकान। आज सुबह सुबह की ऑनलाइन क्लास। और आज तो सुबह पॉटी भी नहीं कर पाया। पेट में अजीब सी उमड़ घुमड़ चल रही है। रात को मोहल्ले के बच्चों और आंटियों ने उसे अजब गजब ढंग से चेहरे को पोत पात कर धोती पहना कर ऊपर से उघड़े बदन तीन चार घंटे के लिए एक ही पोजिशन में बांसुरी पकड़ा कर खड़ा कर दिया था। खड़े खड़े बुरी तरह से थक गया था। और वो बड़ा सा काला वाला कीड़ा, उसने भी तो राघव को बहुत परेशान किया था। जाने कहां से आकर उसके कान में अजीब सी आवाज करता उसकी नंगी पीठ पर गुदगुदी कर देता। और जरा सा हिल जाओ तो वो मोटी वाली आंटी कितना जोर से डांटती थीं। हे भगवान!
इतना सब भी वो सह लेता अगर एक बार उसके पापा आकर उसे देख लेते। उसकी एक प्यारी सी फोटो खींच लेते। मगर नहीं। पापा तो आए ही नहीं। शाम के समय तो पापा घर से निकलते ही नहीं हैं। छुट्टी हो या कोई सा भी दिन हो। पापा तो पूरी शाम पता नहीं क्या वो गन्दा सा शरबत गिलास में डाल डाल कर पीते रहते हैं। उसके बाद कभी मम्मी को कभी राघव नहीं तो कभी किसी को भी जोर जोर से डांटते रहते हैं। राघव तो बुरी तरह से डर जाता है। कई बार तो कोशिश करता है कि वो पापा के सामने ही न जाए। मम्मी भी तो कितना डरती हैं। खाना खाने के लिए भी पापा को डरते डरते ही कहती हैं। उसे आज भी याद है कैसे एक बार पापा ने खाने की प्लेट जोर से फेंकी थी जमीन पर। जमीन पर प्लेट के गिरने की आवाज बड़ी देर तक गूंज रही थी झन्न्न। राघव की तो डर के मारे सूसू ही निकल गई थी।
और एक बार तो जब राघव काफी छोटा था टीवी पर कार्टून देख रहा था शाम के समय। पापा वही अपना गंदा वाला शरबत पी रहे थे। पापा ने टीवी का रिमोट लिया और पता नहीं कौन सा प्रोग्राम लगा दिया जिसमें कई सारे अंकल आंटी जोर जोर से बोलते हैं। ऐसा लगता है जैसे लड़ रहे हों। ये वाला प्रोग्राम तो राघव को बिलकुल पसंद नहीं। उसने चुपके से रिमोट लिया और फिर से कार्टून लगा दिया। पापा ने कितनी जोर से उसे उठा कर पटक दिया था। बाप रे। बस डर के मारे वो रोया ही नहीं। सिर में गूमड़ निकल आया था। वो तो जब मम्मी ने उठा कर गोद में लिया तब बहुत रोना आया था। मम्मी ने समझा मैं चोट लगने से रो रहा हूं।
अब कल की ही बात ले लो छुट्टी का दिन था। राघव का मन था दिन के खाने के बाद आइसक्रीम खाने को मिल जाती तो कितना मजा आता। पापा से तो वो वैसे ही नहीं बोलता। मम्मी को बोला। मम्मी ने पापा से आइसक्रीम लाने को बोला। पापा जाने क्यों नाराज हो गए? बोले "छुट्टी के दिन मैं नहीं कहीं जाता। रोज रोज तो मर मर के नौकरी करता हूं और छुट्टी के दिन मां बेटे को दावत सूझती है। जो घर में है खाओ और शुक्र मनाओ कि खाने को मिल रहा है। "
राघव का बाल मन तबसे बेचैन है। कृष्ण जी को तो खूब दूध मलाई मिलती थी। उसका आइसक्रीम खाने का मन किया और वो भी नहीं मिली।
