" घर से बिलकुल न निकालना "
" घर से बिलकुल न निकालना "
वो एक एकदम चुस्त दुरुस्त युवक था। हां अभी पिछले सप्ताह तक तो ऐसा ही था। मैं बात कर रहा हूं मेरे बचपन के दोस्त और स्कूल के साथी की। कसरती शरीर का मालिक था। कोई हारी बीमारी उसे छू कर भी न जाती थी। अपने काम में भी वो माहिर था। समाज में कभी भी किसी को कोई जरूरत पड़े,वो तुरंत हाजिर हो जाता था। ऐसी ही बातों ने उसे एक हद तक लापरवाह भी बना दिया था। कभी कोई मुसीबत में हो तो बिना आगा पीछा सोचे वो जुट जाता था अगले की मदद करने में। अच्छा एक बात है,शायद आप लोगों ने भी कभी महसूस किया हो " तारीफ का नशा " ये भी एक लत की तरह होती है।
जब आदमी के किसी काम की तारीफ होने लगती है तो आदमी को एक तरह का नशा सा ही हो जाता है।अपनी तारीफ सुनने का। तो मेरे दोस्त को भी ये नशा हो गया था। किसी के काम आने पर जो तारीफ मिलती उसे सुनने का नशा। उसकी पत्नी भी उसकी इन आदतों से परेशान थी लेकिन वो अपनी आदत से बाज न आता था। जबसे पिछले साल से ये कोरोना नामक महामारी आई है मेरे दोस्त का काम और बढ़ गया। शहर में कहीं से भी यदि उसे पता चल जाए किसी को कोई जरूरत है वो तुरंत हाजिर हो जाता। सबने बहुत समझाया लेकिन वो कहां मानने वालों में था। पिछली लहर में जाने कितनों की उसने मदद की। वो हम लोगों को बोलता था " ये बीमारी कमजोरों को होती है मुझे तो हो ही नहीं सकती।" ऐसे ही एक दिन उसे बुखार आया,वो फिर भी न माना।अपने काम में अपने जुनून में वैसा ही खोया रहा।" अरे,आजकल काम ज्यादा है इसीलिए थकान होगी,एक दो दिन आराम करूंगा सब ठीक हो जाएगा।" लेकिन बुखार कम न हुआ।चार पांच दिन बीत गए।बहुत कहने पर आधे अधूरे मन से वो टेस्ट कराने को तैयार हुआ। सैंपल दिया।रिपोर्ट आते आते दो दिन और बीत गए। रिपोर्ट भी नेगेटिव आई। सबने राहत की सांस ली। लेकिन ये क्या?शाम होते होते दोस्त का ऑक्सीजन लेवल85 यूनिट से कम हो गया। हम सब लोगों ने बड़ी भाग दौड़ की और किसी तरह से उसके लिए एक प्राइवेट हॉस्पिटल में एक बेड का इंतजाम करा पाए। दोस्त को हॉस्पिटल में एडमिट कराया। अब दोस्त से संपर्क का केवल एक ही माध्यम था,वो था उसका मोबाइल फोन। उसी के जरिए हमें दोस्त का हाल मिलता रहा। दो दिन तक उसने संघर्ष किया। कल रात को उसका आखिरी संदेश आया "राजू मेरे दोस्त मुझे बहुत देर से समझ आया पर तू सुन ले,ये बीमारी किसी को नहीं छोड़ती। कोई इससे नहीं बच सकता।एक बार अगर ये आ जाए और इसे पहचानने में जरा सी देर हो जाए तो कुछ नहीं हो सकता। अगर बचना है तो घर से बिलकुल न निकलना।" ऐसा संदेश पाकर हम सभी व्यथित हो गए।तुरंत भागे भागे हॉस्पिटल गए।लेकिन कुछ कर नहीं पाए। दो एक घंटे बाद ही हमें खबर लग गई कि हमारा प्यारा दोस्त हम सबको छोड़ कर अनंत यात्रा पर निकल गया।
मेरा इस किस्से को यहां लिखने का केवल और केवल एक ही उद्देश्य है कि इसे पढ़ कर यदि किसी एक की भी जान बचती है तो शायद मेरा दोस्त अपने मिशन में सफल हो जाए। यही मेरे दोस्त के लिए मेरी तरफ से श्रद्धांजलि है।
