" नया सबेरा "
" नया सबेरा "
मंजू जी कल दोपहर बाद से लेकर अब तक जो भी घटना क्रम हुआ है उसे सोच सोच कर अब तक भी काफी अस्त व्यस्त हैं। एक ही दिन में इतना कुछ घट गया कि अभी भी उन्हें यकीन नहीं आ रहा है कि इतना सारा कुछ उनके साथ ही घटा है। पिछले तीस साल से उनकी ज़िंदगी जो एक ढर्रे पर चल रही थी कभी सोचा ही न था कि कभी ऐसा भी आएगा कि उन्हें खुद से कुछ सोचना पड़ेगा या खुद से कोई निर्णय लेना पड़ेगा। शादी होकर आईं तो घर के अंदर के निर्णय उनकी सास लेती थीं और घर के बाहर के निर्णय उनके ससुर सक्सेना साहब लेते थे। सास ससुर तो बाद में रहे नहीं और उनके बाद वो घर बाहर के बारे में सोचने की ज़िम्मेदारी अपने आप कब और कैसे अतुल जी ने ले ली कभी पता ही न चला? मंजू जी तो अपने घर गृहस्थी में लगी रहीं उस से अधिक कभी जरूरत भी न पड़ी। तीस साल हो गए, बेटा बेटी भी बड़े हो गए। बेटे बेटी दोनों की शादी भी हो गई। बेटी अपने घर चली गई और बहू अपने घर। बेटा दामाद अपनी अपनी नौकरी में व्यस्त हो गए। बहू नए जमाने की थी, आधुनिक थी। इस वजह से मंजू जी को बहू कम ही पसंद आती थी। बहू दिव्या पढ़ने की तेज थी गुड़गांव में सॉफ्टवेयर कंपनी में इंजीनियर थी बेटा बैंक में मैनेजर था। सभी अपनी अपनी ज़िन्दगी में व्यस्त थे।
कल तक सब कुछ सामान्य था। दोपहर खाना खाने के बाद मंजू जी और अतुल जी टीवी देखते देखते सो गए। शाम को मंजू जी उठीं, देखा पांच बज रहे हैं। उठ कर किचन में जाकर चाय चढ़ाई और सोचा अतुल जी को चाय के लिए उठा दें। जाकर उन्हें आवाज दी तो कोई जवाब नहीं दिया। रजाई उठा कर देखा तो अतुल जी बेहोश और पसीने पसीने हो रहे थे। मंजू जी के तो हाथ पैर फूल गए। एक दम से कुछ समझ न आया कि क्या हो गया और अब क्या करें?
पड़ोसियों की मदद से किसी तरह से हॉस्पिटल पहुंचाया। अब क्या करें? कुछ सूझ ही न रहा था। पड़ोसी जो कर सकते थे कर रहे थे। किसी ने सुझाया ' अरे, बेटे को तो फोन करो।' बड़ी मुश्किल से दो तीन बार में फोन लगा। बेटे ने फोन उठाते ही पूछा 'अरे क्या हो गया मम्मी? आप इतनी परेशान क्यों हैं?' मंजू जी बोलीं 'पता नहीं तेरे पापा को क्या हो गया है? एकदम
बेहोश होकर पसीना पसीना हो गए। बड़ी मुश्किल से लोगों को मदद से हॉस्पिटल लाई हूं। अब समझ नहीं आ रहा क्या करूं?'
' ओह मां, मैं तो कल ही एक ट्रेंनिंग के लिए चेन्नई आ गया हूं। आप परेशान न हों, पैसे मैं ऑनलाइन ट्रांसफर कर दे रहा हूं। दिव्या को कॉल कर देता हूं चार घंटे में आप के पास होगी। मैं भी कल तक पहुंचने की कोशिश करता हूं। ठीक है?' बहू का नाम सुनकर मंजू जी को बहुत अच्छा तो नहीं लगा फिर भी बेटे का मन रखने को हां कह दिया। मंजू जी फिर सोच में पड़ गईं। बेटा भी पास में नहीं भाई भी शायद ही आएं। अब क्या करूं? अभी सोच ही रही थीं कि दिव्या का फोन आ गया ' मम्मी आप परेशान न हों मैं निकल पड़ी हूं। ग्यारह साढ़े ग्यारह तक आप के पास होऊंगी। मंजू जी लड़की की हिम्मत देख कर चकित रह गईं। पति आईसीयू में थे और वो बाहर बेचैन थीं। हर थोड़ी देर में दिव्या उन्हें कॉल कर कर के हिम्मत दे रही थी। सवा ग्यारह बजते बजते ही दिव्या लगभग भागती सी आ गई। मां के गले लगी, डॉक्टर से पापा का हाल पूछा। सब कुछ देख लिया। फिर दो कॉफी के कप लेकर मां के पास आकर बैठ गई। बोली ' मम्मी अब कोई टेंशन की बात नहीं। सारे टेस्ट भी हो गए। कोई ब्लॉकेज नहीं है हार्ट में। एंजाइना का पेन था। कुछ दिन रेस्ट करेंगे, सब ठीक हो जायेगा।
और मंजू जी अंदर ही अंदर शर्मिंदा हुई जा रही थीं। सोच रही थीं 'मैंने बहू को पहचानने में कितनी गलती कर दी? समय के साथ चलने में कोई बुराई नहीं है। मैं सोचती थी कि बहू केवल नए रंग ढंग की है। मेरे किस काम की? लेकिन मेरी बहू न साबित कर दिया कि नए चाल चलन अपनाने से कोई अपनी ज़िम्मेदारी नहीं छोड़ देता। सही वही है जो मौके के हिसाब से काम करे। मैं खुद तो बहुत सीधी रही लेकिन किस काम की? जब खुद विपरीत परिस्थिति में मैं कोई काम ही न कर सकूं।
तभी दिव्या पास आकर उनके गले में झूल गई ' मम्मी हैप्पी न्यू ईयर'। अरे हां, इन बातों में ये तो याद ही न रहा। मंजू जी ने भी दिव्या को दिल से गले लगा लिया। ' हैप्पी न्यू ईयर बेटा। नया साल खूब खुशियां लाए।
उधर बस थोड़ी देर में बस नया सबेरा होने को ही था।