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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance Fantasy

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance Fantasy

आवारा बादल (8) 32 माइल स्टोन

आवारा बादल (8) 32 माइल स्टोन

7 mins
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गतांक से आगे 


विनोद ने शपथपत्र का ड्राफ्ट बेला को व्हाट्सएप पर भेज दिया। बेला ने उसे सौ रुपये के स्टांप पेपर पर टाइप करवाकर शिक्षा सचिव रजनीश भटनागर को दे दिया। पांच दिन बाद बेला की विभागीय जांच समाप्त हो गई। उसका निलंबन खत्म करके उसे नौकरी पर पुनः ले लिया। उधर उस बाबू के खिलाफ जांच शुरू हो गयी जिसका इस "कांड" से कुछ लेना देना नहीं था। तभी तो कहा है कि अगर जूते में दम हो तो अपराधी साहूकार और साहूकार अपराधी सिद्ध हो जाता है।  


बेला को तो यह सब एक चमत्कार जैसा लग रहा था। सरकार में ऐसा भी होता है क्या ? उसकी दुनिया तो एक स्कूल ही है जहां पर केवल पठन और पाठन ही होता है। हद से हद कुछ अध्यापक अध्यापिकाएं छोटी मोटी राजनीति कर लेते हैं मगर इस तरह का "कारनामा" तो कोई "महाविभूति" ही कर सकती हैं। इस देश में IAS से बड़ी और कौन सी विभूति हो सकती है। इसीलिए तो इन्हें "राजा" कहा जाता है इस देश में। जिस तरह एक राजा किसी चीज की बस इच्छा भर कर दे तो समस्त दरबारी उस इच्छा की पूर्ति में लग जाते हैं। वह इच्छा जायज है या नाजायज इसकी परवाह कौन करे ? इसी को तो "मिजाज पुर्सी" कहते हैं। इन "आधुनिक राजाओं" ने तो पुराने राजाओं को बहुत पीछे छोड़ दिया है।  


एक दिन सुबह लॉन में रवि धूप सेवन कर रहा था कि विनोद का फोन आ गया। कहने लगा "बेला कई बार कह चुकी है कि वह आपसे मिलकर आभार व्यक्त करना चाहती है। क्या कहूं उसे" ? 

"अरे , इन सब औपचारिकताओं की जरुरत नहीं है। उससे कह दो कि वह मस्त रहे और कुछ नहीं"।  

"ऐसा तो मैं उसे कई बार कह चुका हूं मगर वह मानती ही नहीं है। एक बार मिलना तो पड़ेगा। बहुत जिद्दी है वह" 

"अभी भी" रवि हंसकर कहने लगा। इस पर विनोद भी हंस पड़ा। "बताओ , क्या कहूं उसे" ? 

अगर ऐसा है तो घर पर ही आ जाओ। मृदुला से भी मिल लेगी वह" 

"नहीं नहीं, वह घर पर नहीं आना चाहती है। उसे घर आने में थोड़ा संकोच हो रहा है। और कोई जगह बताओ" विनोद ने आग्रहपूर्वक कहा 

"तो ऐसा करो, यहां से पास में ही एक '32 माइल स्टोन' रिजॉर्ट है , वहां मिल लेते हैं। रविवार को ठीक सांय सात बजे" 

"ये ठीक रहेगा। मैं उसे लेकर वहां पर ठीक समय पर आ जाऊंगा"।  


रवि ने फोन रखा ही था कि मृदुला पास में बैठते हुयी बोली "रवि, इस बार यश के बर्थ डे पर क्या गिफ्ट दे रहे हो" ? 

"अरे, यश का बर्थ डे आ गया और हमें कुछ पता ही नहीं ? आप बताओ क्या गिफ्ट देना है उसे" ? 

"बुलेट की फरमाइश है जनाब की। कहता है कि उसके सभी दोस्तों के पास बुलेट है इसलिए उसे भी चाहिए एक बुलेट। उसी से स्कूल जाना चाहता है वह"।  

"अभी तो पंद्रह साल का होगा यश। अभी तो उसका लाइसेंस भी नहीं बनेगा। बिना लाइसेंस के कैसे चलायेगा वह बुलेट" ? 

"आपके रहते अपने बेटे को लाइसेंस नहीं मिले क्या यह संभव है" ? मृदुला ने उलाहना देते हुये कहा।  

"मृदुला, आप समझ नहीं रही हैं। जब नियम ही नहीं है पंद्रह साल के बच्चों के लिए लाइसेंस बनाने का तो इसमें मैं भी क्या कर सकता हूँ ? मैं कोई नियम कानून बनाने वाली संस्था तो हूँ नहीं। नियम कानून तो विधानसभा में बैठकर "माननीय" बनाते हैं। हम तो उन्हें इंप्लीमेंट करते हैं बस "।  

"जाओ , किसी और को उल्लू बनाओ। मैं सब जानती हूं। आप चाहो तो सब कुछ कर सकते हो। दुनिया भर का जायज नाजायज काम करवा सकते हो मगर अपने बेटे की मोटरसाइकिल का लाइसेंस नहीं बनवा सकते हो ? बड़े आये 'महाराज जी' " ! उसने कृत्रिम रोषपूर्वक कहा।  

रवि भी अब खूब पहचानता था औरतों के हथकंडे। इसलिए वह इन पचड़ों में फंसता ही नहीं था। कहने लगा "देखिए मैडम जी , पहली बात तो यह है कि कानूनन यश का लाइसेंस बनेगा नहीं। और अगर मेरे जोर देने से बन भी जाएगा तो मैं चाहता नहीं कि वह अभी मोटरसाइकिल चलाये। आप देखती नहीं कि लोग किस तरह गाड़ी चलाते हैं इस देश में। कोई ट्रैफिक नियमों का पालन करता है क्या ? कितनी सड़क दुर्घटनाएं होती हैं प्रतिदिन यहां पर ? हजारों लोग मरते हैं रोज। इसलिए मैं नहीं चाहता हूं कि वह बुलेट चलाये। उसको एक सरकारी कार तो दे रखी है न। उसमें कुछ खराबी आ गयी है क्या" ? 

"नहीं, ऐसा कुछ नहीं है। गाड़ी सही काम कर रही है मगर यश कहता है कि वह मोटरसाइकिल से जाना चाहता है स्कूल। बस , इतनी सी बात है"।  


रवि ने मृदुला को पास खींचते हुये कहा "मैडम, इतनी सी बात नहीं है, ये बहुत बड़ी बात है। लगता है हमारे साहबजादे किसी लड़की को 'डेट' पर ले जाना चाहते हैं"। रवि ने मृदुला की आंखों में देखते हुये कहा।  

"चलो हटो , आपको तो हर वक्त मजाक ही सूझता रहता है। ऐसा लड़का नहीं है वो। सबको अपने जैसा समझते हैं आप" और मृदुला भी रवि को देखकर हंस दी।  

"अच्छा तो ठीक है, हम अपने साहबजादे से बात कर उसकी मर्जी का गिफ्ट दे देंगे। अब तो ठीक है" ? 

"अभी ठीक कहाँ है ? अभी तो हमारी भी फरमाइश बाकी है। बहुत दिनों से आपने हमें भी कोई गिफ्ट नहीं दिया है, हां"। मृदुला ने चंचलता से कहा

"अजी हमने तो आपको दो दो अनमोल रतन दिये हैं। एक यश और दूसरी पूर्वी। कहो तो तीसरे गिफ्ट की तैयारी करें"। रवि ने रहस्यमयी मुस्कान बिखराते हुये कहा।  


मृदुला एक झटके के साथ खड़ी हो गई और कहने लगी "जब देखो तब मसखरी करवा लो आपसे तो। पचास के हो रहे हैं जनाब। अभी भी 'तीसरे' की ख्वाहिश रखते हो। यह तो नहीं कि दो चार डायमंड के सैट ला दें अपनी इकलौती पत्नी के लिए। बस, जब देखो तब 'अनमोल रत्नों' के भंडार को बढ़ाने की बातें करते हो"। और मृदुला रवि का हाथ झटक कर चली गई इस डर से कि कहीं रवि वास्तव में 'तीसरे' की तैयारी करना शुरु ना कर दे।  


रविवार का दिन आ गया। विनोद का फोन भी आ गया था। वह ठीक सात बजे पहुंचने वाला था रिजॉर्ट में। रवि ने एडवांस में ही बुकिंग करा ली थी। रवि भी ठीक सात बजे पहुंच गया था '32 माइल स्टोन'। वहां पर बेला और रवि उसका इंतजार करते हुये मिले।  


रवि और बेला की नजरें टकराई और बेला की नजरें झुक गई। बेला रवि के पैर छूने के लिए झुकी तो रवि हड़बड़ाकर पीछे हट गया। "अरे रे रे रे, ये क्या कर रहीं हैं आप ? ये पाप क्यों चढ़ा रही हैं मुझ पर ? ऐसा अनर्थ मत कीजिए बेला जी"।  


बेला की आंखों में आंसू आ गये। भरे गले से बोली "क्या मुझे माफी भी नहीं मांगने देंगे आप " ? 

रवि का स्वर भी कोमल हो गया "कैसी माफी, बेला जी ? जब आपने कोई अपराध किया ही नहीं तो फिर माफी किस बात की ? बचपन में हम लोग बहुत सी शरारतें , नादानियाँ करते हैं। अगर उनको याद करें तो फिर पूरा जीवन माफी मांगने में ही गुजर जायेगा" रवि ने मुस्कुराते हुये कहा।  

"एक तो मैं पहले ही अपराध बोध से ग्रस्त हूँ और उस पर आपने जो यह अहसान किया है, इसे मैं जिंदगी भर नहीं भूलूंगी"। बेला की रुलाई फूट पड़ी।  

अहसान शब्द से रवि थोड़ा विचलित हो गया। "बेला जी , मैं तो आपको बचपन का साथी मानता हूं और उसी के नाते मैंने यह सब किया था। इसमें अहसान कैसा ? दोस्तों के बीच ये अहसान वहसान नहीं चलता। मेहरबानी करके ऐसे औपचारिक शब्दों से दोस्ती को भारी भरकम मत बनाइये। इसे केवल दोस्ती ही रहने दीजिए"।  


बेला ने गौर से रवि के चेहरे की ओर देखा। कितनी मासूमियत फैली हुयी थी उस चेहरे पर। सरलता और निष्कपटता के उजालों से दमक रहा था रवि का चेहरा। उसमें अपनापन था। अपनी ओर खींचने का अद्भुत आकर्षण था। सालों बाद देखने को मिला था यह चेहरा। बचपन वाला चेहरा ही बसा था उसकी आंखों में। आज उसका दैदिप्यमान चेहरा सूरज की मानिंद लग रहा था। उसके चेहरे पर काली सफेद दाढ़ी खूब फब रही थी। बेला ने अपने पर्स से एक छोटा सा पैकेट निकाला और उसे रवि को देकर कहा "ये एक छोटा सा गिफ्ट लाई हूँ आपके लिये। देखिए , ना नहीं कीजिएगा"। अब बेला के चेहरे पर भी मुस्कान आ गयी थी। निर्मल मुस्कान। जैसे मन का मैल साफ हो गया हो। जैसे गंगग नदी की सफाई होने से वह निर्मल नजर आने लगी हो।  


"अरे , खड़े क्यों हैं आप दोनों ? बैठिये न" विनोद ने तंद्रा भंग करते हुये कहा। तीनों जने एक कमरे में बैठ गये। रवि ने वेटर को तीन कॉफी और कुछ स्नैक्स का ऑर्डर दे दिया। इतने में विनोद का घर से फोन आ गया। वह "एक्सक्यूज मी" कहकर बाहर निकल गया।  


शेष अगले अंक में 

क्रमशः



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