आवारा बादल (30)प्यार और वासना
आवारा बादल (30)प्यार और वासना
रवि और बेला दिल्ली भ्रमण पर थे। रवि बेला को दिल्ली घुमा रहा था। इंडिया गेट के बाद वे राजघाट पर आ गये। दोनों ने महात्मा गांधी को श्रद्धा सुमन अर्पित किये। उस महान आत्मा के सानिध्य में बेला को सुखद अनुभूति हुई। उसे ऐसा लगा कि महात्मा अभी सो रहे हैं जब जागेंगे तब उनके अमृत तुल्य वचनों को वह सुन सकेगी। "सत्य और अहिंसा के प्रतीक महात्मा गांधी का जीवन कितने झंझावातों से होकर गुजरा होगा।" रवि ने कहा। "हां, मैं कल्पना कर सकती हूं। जो कुछ भी मैंने पढ़ा है , उनको समझा है , उनका जीवन बड़ा अद्भुत था। ऐसा व्यक्तित्व और किसी का नहीं है। एक बात कहूं आपका जीवन भी कम झंझावातों से भरा नहीं रहा, सर।" बेला ने रवि को देखकर मुस्कुराते हुए कहा
"मेरे जीवन के बारे में आप कितना जानती हैं?"
"बहुत कुछ।"
"वो कैसे?"
"मैंने आपको बताया था ना सर कि मेरी एक खास सहेली मालती आपकी दोस्त रश्मि की खास सहेली थी। इसलिये आपकी पल पल की जानकारी मुझे मिलती रहती थी।"
"कमाल है। आपको मेरे बारे में बहुत कुछ पता है तो आपको मेरे "पतन काल" के बारे में भी पता होगा ? उस समय मैं दलदल में फंसा हुआ था। वो दिन मेरी जिंदगी के सबसे बुरे दिन थे जिन्हें मैं उस समय सबसे हसीन समझता था। क्या सब कुछ पता है तुम्हें?" "तुम्हें" शब्द से संबोधन पर रवि को अपनी गलती का अहसास हुआ और तुरंत बोला "सॉरी, बेला जी। क्या सब कुछ पता है आपको?"
रवि की इस हरकत पर बेला हंस पड़ी।
"आप मुझ पर हंस रही हैं?"
बेला कि हंसी पर तुरंत ब्रेक लग गये। वह घबराकर बोली "ऐसा ना कहें सर। मैं आप पर हंसने की जुर्रत कैसे कर सकती हूं ? मुझे तो आपकी पहले सी मासूमियत पर हंसी आई थी। आप अभी भी पहले जैसे मासूम ही हैं। और हां, आप मुझे "तुम्हें" कह सकते हैं, मुझे अच्छा ही लगेगा।" बेला ने जैसे तैसे कहा।
"नहीं, तकल्लुफ की आवश्यकता नहीं है बेला जी। बताइए न क्या क्या जानती हैं आप मेरे बारे में?"
बेला एकदम से चुप हो गई। उसने अपनी गर्दन नीची कर ली।
"बताना तो पड़ेगा आपको। यूं चुप रहने से काम नहीं चलने वाला है। चलो, शुरू करो।" रवि के स्वर में आग्रह था।
बेला बताने लगी " रश्मि से मालती के माध्यम से जब मुझे तुम्हारे "इश्क के दलदल" में फंसने का समाचार मिला तो मुझे बहुत दुख हुआ। पता नहीं क्यों इस पतन का कारण मैं खुद को मानती हूं। अगर कक्षा 5 वाली घटना नहीं घटती तो शायद ऐसा नहीं होता। पर शायद होनी को यही मंजूर था।
रश्मि ने बताया था कि गुलाबो के द्वारा जब तुम्हें यह कह दिया गया कि गुलाबो के लिए तुम्हें सब लड़कियों से नाता तोड़ना पड़ेगा, तब मुझे बड़ा सुकून सा मिला था। मुझे लगा कि अब एक सही लड़की तुम्हें मिल गयी है। लेकिन तब तुम बहुत परेशान हो गए थे। एकदम गुमसुम से रहने लगे थे। रश्मि बहुत चिंतित थी तुम्हारे लिए। रश्मि द्वारा बहुत जोर देने पर तुमने रश्मि को अपनी समस्या बताई और रश्मि से सलाह भी मांगी तब रश्मि ने भी गुलाबो की बात का समर्थन किया था। बस इतना ही पता है। इतना ही बताया था रश्मि ने।"
रवि उसके बाद की घटना सुनाने लगा। गुलाबो के शिव मंदिर से जाने के बाद रवि एकदम से निढाल हो गया था। थके हुए कदमों से वह घर वापस आ गया। उसे अपना घर बहुत दूर लग रहा था। एक एक कदम जैसे एक एक कोस के हो गये थे। मां ने पूछा था कि तबीयत तो ठीक है न ? रवि ने "हां" कह दिया और अपने कमरे में आ गया। उसने दरवाजा बंद कर लिया। मां पुकारती ही रह गई। वह समझ नहीं पा रहा था कि उसे क्या करना चाहिए क्या नहीं ? इस स्थिति में ऐसा कौन व्यक्ति है जो उसे सही रास्ता बतलाये ? किस रास्ते पर चलना चाहिए उसे ? वह यही सोचता रहता था। अब तक वह भोग विलास के रास्ते पर चल रहा था। एक ही उद्देश्य था उसका , अधिक से अधिक लड़कियां पटाना, उन्हें भोगना। उसे लड़कियां केवल भोग का सामान लगती थीं। इस उद्देश्य में वह कामयाब भी रहा था। लड़कियों की लाइन लग गई थी उसके पास। बिना मेहनत के ही उसकी गोद में आ गिरी थीं सबकी सब। लेकिन बाद में वो लड़कियां बोझ सी लगने लगी थीं उसे। कितना पैसा खर्च करना पड़ता था इन लड़कियों पर ? कहाँ से लाता उतना पैसा ? दोस्तों से भी कब तक उधार मांगता ? जब उधारी मिलना बंद हो गई तो उसने चोरी करना शुरू कर दिया था।
वह सोचने लगा "गुलाबो ने सही तो कहा था। या तो दूसरी लड़कियां या फिर अकेली गुलाबो ? क्या अकेली गुलाबो उन सब पर भारी थी ? दिल से आवाज आई 'हां, वह सब पर भारी है'। फिर सोचने को बचा ही क्या है ? हां ये बात जरूर है कि यदि इन सब लड़कियों से पीछा छूट जायेगा तो उसे चोरी चकारी भी नहीं करनी पड़ेगी और दूसरे पाप करने से भी बच जायेगा वह। नहीं तो यह सिलसिला न जाने कब तक चलता रहता ? अंतहीन रास्ता है यह। इसकी कोई मंजिल नहीं होती है। इस दलदल से पीछा छूटने को मिल रहा था तो फिर क्यों नहीं पीछा छुड़ा लिय जाये ? और फिर गुलाबो को तो उसके बारे में सब कुछ पता है। उसके बाद भी वह उसे अपनाने को तैयार है तो इससे अच्छी बात और क्या होगी उसके लिए ?
उसने रघु से सलाह ली। अपनी आदत के अनुसार रघु ने कह दिया 'गुलाबो से भी सुंदर और बहुत सी लड़कियां मिल जायेंगी उसे। अभी तो जिंदगी की शुरुआत ही तो हुई है। बहुत लंबी जिंदगी है। न जाने कितनी लड़कियां आयेंगी रास्ते में। एक से बढ़कर एक। फिर एक से ही चिपक कर रहने से क्या फायदा '?
रश्मि और दूसरे दोस्तों से भी सलाह ली थी उसने। इन सभी का कहना था कि गुलाबो के लिए तो सारी दुनिया भी छोड़नी पड़ जाये तो कोई बुराई नहीं है। दोनों विचार बिल्कुल एक दूसरे के विपरीत थे। दोनों में से एक का चुनाव करना था उसे।
रवि ने तय कर लिया था कि उसे बाकी लड़कियों से अब कोई मतलब नहीं रखना है। इसलिए वह गुलाबो के घर के ठीक पीछे पहुंच गया था। गुलाबो ने जब उसे देखा तो वह जूही की कली की तरह से खिल गई थी। उसका प्यार जीत गया था। प्यार में वो ताकत होती है जो किसी बुरे इंसान को भी भला इंसान बना देती है। उसे रवि पर पूर्ण विश्वास था कि वह आयेगा अवश्य। उसकी तड़प को वह महसूस कर चुकी थी। वह जानती थी कि और कोई विकल्प बचा ही नहीं था रवि के पास। जिनको अपने प्यार पर विश्वास होता है उनका प्रेमी उनके पास होता है। ये गुलाबो के प्यार की ताकत ही थी जो रवि को इतनी गोपियों के बीच से खींच लाई थी।
"देख गुलाबो, मैं आ गया। मैं आ गया गुलाबो।" रवि के स्वर में कंपकंपाहट थी, विश्वास था, खुशी थी, आतुरता थी।
"मुझे विश्वास था कि तुम जरूर आओगे। ऐसा हो ही नहीं सकता था कि तुम नहीं आओ।" गुलाबो ने उसके दोनों हाथों को थाम लिया और उन्हें अपने होठों से लगा लिया।
"इस पल का मैं कब से इंतजार कर रहा था गुलाबो , शायद तुम नहीं जानती हो। मैं विगत दो रातों से सोया नहीं हूं"
"मैं जानती हूं। मेरी हालत भी तो वैसी ही थी। मैं भी कितना तरसी हूँ तुम्हारे वियोग में। मगर कभी कभी हमें जिंदगी में कठोर निर्णय लेने पड़ते हैं। तब दिल पर पत्थर रखना पड़ता है। चाहतों को दबाना पड़ता है। अरमानों को मारना पड़ता है। पत्थर दिल बनना पड़ता है। मगर ये कठोरता अपने लिये बहुत अच्छी होती है ना। नीम की तरह। कड़वी जरूर होती है लेकिन निरोग रखती है काया को। इस निर्णय पर मैंनें भी खुद को बहुत कोसा था मगर मैंने अपने आंसू पी लिये थी। दिल के घावों को किसी को नहीं दिखाया। एक कहावत है कि सब्र का फल मीठा होता है। वह कहावत आज सच साबित हो गई।" गुलाबो की आंखों से झर झर झरना बहने लगा। रवि और गुलाबो उस झरने में नहाकर निर्मल हो गए। आखिरकार प्यार की जीत हुई और वासना को मुंह की खानी पड़ी।
दरअसल कक्षा 8 से ही बच्चों में शारीरिक परिवर्तन होने शुरू हो जाते हैं। विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण बढ़ जाता है। अब ऐसी उम्र में अगर किसी लड़के को मीना भाभी जैसी कोई औरत मिल जाती है तो उस लड़के की वासना की पूर्ति हो जाती है। न केवल वासना की पूर्ति होती है अपितु वासना को बढ़ाने का काम भी करतीं हैं ये मीना भाभी जैसी औरतें। वस्तुतः वासना की पूर्ति कभी नहीं होती है। इसकी पूर्ति जितनी तेजी से होती है उससे भी तेज गति से इसकी मांग और बढ़ जाती है। जिस लड़के या लड़की में यह लत लग जाती है उसकी जिंदगी दलदल में धंसती चली जाती है। उसे वासना पूर्ति ही एकमात्र उद्देश्य लगने लगता है जिंदगी का। बस, उसकी पूर्ति के लिए ही दिल दिमाग काम करता है।
इस उम्र के बच्चे जिसे प्यार समझते हैं वह वस्तुतः शारीरिक आकर्षण है और कुछ नहीं। वह प्यार केवल शरीर के अंगों तक ही सीमित रहता है, आत्मा तक नहीं पहुंचता। सच्चा प्यार तो आत्मा तक पहुंचने वाला ही होता है। शरीर की कामना ही तो वासना है। और वासना क्या है ? जो लोग केवल शरीर से प्रेम करते हैं वे विषय वस्तु से प्रेम करने वाले होते हैं। सच्चा प्रेम करने वालों के लिए ना तो रंग रूप प्रभावित करता है और ना ही कोई फिगर। रवि अभी उस श्रेणी में नहीं आया था मगर अब उसकी प्राथमिकता केवल शारीरिक अवयव नहीं रहे।
दोनों चुपके से गुलाबो के घर से निकल कर शिव मंदिर आ गये। भगवान शिव के परिवार को साक्षी बनाकर रवि ने गुलाबो को वचन दिया कि अब वह किसी भी अन्य लड़की से कोई संबंध नहीं रखेगा। गुलाबो रवि से लिपट गई।

