आउटिंग

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ललिता ने अपने पति मदन को टिफिन देकर विदा किया। उसके बाद वह खुद तैयार होकर निकल गई। आज उसके लिए खास दिन था। वह अपने पहले आर्डर का पहला पेमेंट लेने के लिए जा रही थी।

तीन महीने पहले ही उसने कपड़ों की सिलाई के लिए एक छोटा सा कारखाना डाला था। शुरुआत में छोटे छोटे काम मिलते थे। पर ललिता अपने कारखाने को आगे बढ़ाने के लिए जी जान से जुटी थी। 

वह अपने कारखाने के लिए आर्डर जुटाने के लिए खूब भाग दौड़ करती थी। जहँ भी आर्डर मिलने की संभावना होती थी वहीं ‌जाकर कोशिश करती थी। अंततः उसे रेडीमेड कपड़ों के एक व्यापारी की तरफ से छोटे बच्चों के कपड़े सिलने का मौका मिला। 

पहले उसने कुछ सैंपल बना कर दिए। वो पसंद आने पर उसे एक बड़ा आर्डर मिला था। उसने समय पर आर्डर पूरा कर भेज दिया था।

बीते कुछ सालों से घर की ज़िम्मेदारियां बढ़ती जा रही थीं। उसके पति मदन के लिए अकेले उन्हें उठाना कठिन हो रहा था। तब ललिता ने तय किया था कि वह इन ज़िम्मेदारियों में अपना सहयोग भी देगी। 

उसने सिलाई का कोर्स किया था। वह खुद अपनी ड्रेसेज़ डिजाइन करती रही थी। उसने थोड़ी सी पूँजी एकत्र कर अपना कारखाना शुरू कर दिया।

ललिता जब व्यापारी के दफ्तर पहुँची तो उसने उसके काम की खूब तारीफ की। उसे किए गए काम का पेमेंट तो मिला ही साथ ही एक नया आर्डर भी मिल गया।

पैसे लेकर जब वह व्यापारी के दफ्तर से निकली तो मदन का फोन आया।

"ललिता आज जल्दी में मैं राशन के पैसे देना भूल गया। तुमने भी याद नहीं दिलाया।"

ललिता ने हंस कर कहा।

"कोई बात नहीं, अब तो मेरे पास भी पर्स है। उसमें पैसे भी हैं। राशन लेकर ही घर जाऊँगी।"

"पैसे मिल गए। कब ट्रीट दे रही हो ?"

"आज शाम को ही तुम्हें और बच्चों को घुमाने ले चलती हूँ। बस समय पर आ जाना।"

"तो फिर पक्का रहा। मैं जल्दी आ जाऊँगा।"

ललिता खुश थी। अब वह अपने हिसाब से खर्च कर सकती थी। उसे मदन की जेब पर निर्भर नहीं रहना था।


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